शासक के रूप में पृथ्वीराज तृतीय का मूल्यांकन कीजिए।

शासक के रूप में पृथ्वीराज तृतीय का मूल्यांकन – पृथ्वीराज चौहान का शरीर बलिष्ठ, सुन्दर और व्यक्तित्व आकर्षक था। वह अपने समय का श्रेष्ठ तीरन्दाज था। मुस्लिम लेखकों ने भी उसकी शक्ति की प्रशंसा की है। परन्तु पृथ्वीराज चौहान में दूरदर्शिता का अभाव था। गोरी के गुजरात आक्रमण के बाद भी उसने राजपूत राजाओं का संघ बनाने का प्रयास नहीं किया, इसके विपरीत संकट के समय उसने चालुक्य नरेश की कोई मदद नहीं की। परमर्दिदेव के ऊपर आक्रमण और संयोगिता का अपहरण करके उसने अपने समकालीन दो शक्तिशाली राजपूत राजवंशों से शत्रुता मोल ले ली जिसके कारण उसे तराइन के युद्ध में इनसे कोई मदद नहीं मिल सकी। तराइन के प्रथम युद्ध के बाद पृथ्वीराज मुस्लिम सेना को नष्ट कर सकता था लेकिन उसने ऐसा न करके बहुत बड़ी भूल की। मुहम्मद गोरी ने तराइन के प्रथम युद्ध में पराजय के बाद पूरा समय युद्ध की तैयारी में दिया जबकि पृथ्वीराज चौहान सफलता के कारण निश्चिन्त हो गया था। उसकी पराजय न केवल चाहमान वंश के लिए अपितु सम्पूर्ण भारत के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई।

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यद्यपि पृथ्वीराज तराइन के द्वितीय युद्ध में परास्त हुआ था, फिर भी उसकी गणना भारत के महान सेनापतियों में की जाती है। तराइन के द्वितीय युद्ध से पहले उसे कोई भी शासक परास्त नहीं कर सका था जबकि स्वयं उसने अपने समकालीन कई शक्तियों को शिकस्त दी थी। पृथ्वीराज चौहान ने अनेक विद्वानों को राज्याश्रय प्रदान किया। उसकी राजसभा में चन्दबरदाई, जयानक भट्ट, विश्वरूप जनार्दन, विद्यापति और पृथ्वीभट्ट जैसे लोग निवास करते थे।

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