सीरामपुर त्रिमूर्ति पर टिप्पणी लिखिए।

सीरामपुर त्रिमूर्ति पर टिप्पणी

ब्रिटिश मिशनरियों ने बंगाल को ईसाई धर्म प्रचार का प्रमुख केन्द्र बनाया। यहाँ के सीरामपुर नामक स्थान के तीन मिशनरी विलियम कैरी (William Carey), विलियम वार्ड (Wiliam Ward), जोसुवा मार्शमैन (Joshava Marshman), जो सीरामपुर (Serampore Trio) के नाम से प्रसिद्ध थे, ईसाई धर्म के प्रचार में अत्याधिक प्रयासरत थे। दरअसल इंग्लैण्ड से आये वैप्टिस्ट मिशनरियों की यह त्रिमूर्ति कलकत्ता में धर्म प्रचार का कार्य करना चाहती थी। परन्तु गवर्नर-जनरल लार्ड वेलेजली ने इन्हें विध्वंसकारी तथा शान्ति व्यवस्था के लिए खतरा बताकर कलकत्ता में प्रवेश की अनुमति नहीं दी तब विवश होकर इस त्रिमूर्ति को डेनमार्क के नियन्त्रण याली मस्ती सीरामपुर में शरण लेने को विवश होना पड़ा।

गोत्र की प्रमुख विशेषतायें बताइये।

इन्होंने सीरामपुर (बंगाल) में छापाखाना खोला तथा सन् 1808 में हिन्दुओं और मुसलमानों के नाम संदेश (Addresses to Hindus Muslims) नामक एक पुस्तिका का प्रकाशन तथा वितरण किया। इस पुस्तिका में उन्होंने हिन्दू धर्म को अज्ञान, आडम्बर तथा मिथ्या से परिपूर्ण बताया एवन मुहम्मद साहब को झूठा पैगम्बर कहा। इसके अतिरिक्त उन्होंने पाश्चात्य ढंग के अनेक स्कूल भी खोलें। उनके इन कार्यों का हिन्दुओं और मुसलमानों ने कसकर विरोध किया। हिन्दुओं और मुसलमानों की क्रोधाग्नि को शांत करने के लिए तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर लाई मिटों (Lord Minto) ने इन तीनों पादरियों को बंद करा दिया तथा मिशनरियों के द्वारा धर्म प्रचार के कार्य पर रोक लगा दी। ऐसा लगता है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अनुभव होने लगा था कि धर्म प्रचार की नीति उसके राजनैतिक व व्यापारिक हितों की दृष्टि से पातक है। जिसके फलस्वरूप उसने धार्मिक तटस्थता की नीति को अपनाना शुरू कर दिया। ईसाई पादरियों का साथ देने से उन्हें डर था कि भारत में रहने वाले हिन्दू तथा मुसलमान उनसे रुष्ट हो जायेंगे।

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