सरकारिया आयोग(sarkaria commission)

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सरकारिया आयोग राज्यों की स्वायत्तता की मांग के सन्दर्भ में मार्च, 1983 में केन्द्रीय सरकार ने केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के पुनर्निरीक्षण के उद्देश्य से एक आयोग की स्थापना की। न्यायमूर्ति सरकारिया इस आयोग के अध्यक्ष थे और इसमें दो और सदस्य थे। नवम्बर, 1987 में सरकारिया आयोग ने अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को सौंप दी। सरकारिया आयोग रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं

  1. सरकारिया आयोग ने प्रारम्भ में ही यह स्पष्ट कर दिया कि देश की अखण्डता तथा एकता की रक्षा के लिए केन्द्र का शक्तिशाली होना आवश्यक है।
  2. आयोग ने यह भी सिफारिश की कि आपातकालीन उपबन्धों के अन्तर्गत अनुच्छेद 356 का उपयोग राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए, अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाए। आयोग के अनुसार राज्यों में राष्ट्रपति शासन तभी लागू किया जाए जब इनका अन्य कोई विकल्प नहीं हो।
  3. आयोग के अनुसार सम्बन्धित राज्य की विधानसभा को तभी भंग किया जाए जब अनुच्छेद 356 की उद्घोषणा का अनुमोदन संसद दो माह के भीतर कर दे।
  4. आयोग ने सुझाव दिया कि समवर्ती विषयों पर विधि-निर्माण के क्षेत्र में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य विचार-विनिमय होना चाहिए।
  5. आयोग ने योजना आयोग तथा वित्त आयोग के मध्य अधिक समन्वय पर बल दिया। साथ ही इसने यह भी सुझाव दिया कि राज्यों को केन्द्रीय ऋण देने की पद्धति पर पुनर्विचार किया जाए।
  6. राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बलों की नियुक्ति के सम्बन्ध में सरकारिया आयोग ने केन्द्र को पूर्ण स्वतंत्रता देने का सुझाव दिया।
  7. आयोग ने कुछ नई अखिल भारतीय सेवायें गठित करने का भी सुझाव दिया।
  8. आयोग के अनुसार राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council) को और सशक्त और अधिक सक्रिय बनाने की आवश्यकता है।
  9. आयोग का एक अन्य सुझाव यह भी था कि प्रधानमंत्री, सभी केन्द्रीय मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सम्मिलित कर एक उच्च स्तरीय मंत्रिपरिषद् का गठन किया जाए और केन्द्र-राज्यों से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करे।
  10. आयोग ने अन्तर्राज्य परिषदों (Inter-State Councils) की स्थापना तथा उन्हें अधिक सशक्त तथा सक्रिय बनाने पर भी जोर दिया।
  11. आयोग के अनुसार राज्यपाल के पद पर किसी निष्पक्ष और विशिष्ट व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिए और यह नियुक्ति राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह से हो।

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