संयुक्त परिवार पर नगरीकरण – नगरों के विकास से एक नगरीय मनोवृत्ति का विकास हुआ। नगरीय मनोवृत्ति वह है जिसमें व्यक्ति परिवार का स्वागत करता है. व्यक्तियों से उतना ही सम्बन्ध रखता है जितने से उसे लाभ मिल सके, आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए सदैव स्थान परिवर्तन करता रहता है तथा उन नियमों को स्वीकार नहीं करता जिन्हें तर्क के द्वारा न समझा जा सकता हो। यह सभी विशेषताएँ संयुक्त परिवार के ढाँचे को विघटित करने लगीं। दूसरी बात यह है कि नगरीकरण से औद्योगिक नगरों में जनसंख्या का दबाव इतना बढ़ गया है कि अधिकांश व्यक्ति किराए के मकानों में रहने लगे। ऐसे मकानों में स्थान का अभाव होने के कारण यह सम्भव नहीं था कि वहाँ संयुक्त परिवार के सभी सदस्य साथ-साथ रह सकें। इसके फलस्वरूप संयुक्त परिवार एकाकी परिवार के रूप में बदलने लगे। नगरों का वातावरण भी संयुक्त परिवार की स्थिरता में बाधक सिद्ध हुआ। नगरों में व्यक्ति को मनोरंजन के वे व्यावसायिक साधन उपलब्ध होने लगे जो स्वतन्त्र जीवन के पक्ष में थे। यहाँ व्यक्ति को प्राप्त होने वाली शिक्षा तथा भौतिक आकर्षण उसे संयुक्त परिवार के परम्परागत जीवन से दूर ले जाने लगे। इस प्रकार संयुक्त परिवारों को विघटित करने में नगरीकरण की प्रक्रिया ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
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