संयुक्त परिवार के महत्व – संयुक्त परिवार से हमारा अर्थ उस परिवार से होता है जिसमें कई पीढ़ियों के सदस्य एक दूसरे से बंधे होते हैं।
संयुक्त परिवार के गुण अथवा महत्व :
(1) घर के बर्जुगों की सुरक्षा
संयुक्त परिवार में बड़े लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए चिन्ता नहीं करनी पड़ती है क्योंकि वे जानते है कि परिवार के अन्य सदस्य उनकी देखा-रेख करेंगें। संयुक्त परिवार विधवाओं तथा अनाथों को द्वार द्वार ठोकर खाने से बचा लेता है पति की मृत्यु के बाद विधवा को अपनी तथा बच्चों के पालन पोषण की चिन्ता नहीं करनी पड़ती है। इसी प्रकार अनेक माता पिता होन अनाथ बच्चों का जीवन संयुक्त परिवार के कारण ही बर्बाद होने से बचा रहता है।
(2) चरित्र का निर्माण
संयुक्त परिवार कई मूल परिवार के सदस्यों के साथ-साथ रहने से बनता है अतः इस व्यवस्था को अच्छी तरह से चलाने के लिये सभी सदस्यों में पारस्पारिक सहयोग, सहानुभूति और त्याग की भावना का होना आवश्यक होता है। अतः संयुक्त परिवार अपने सदस्यों में ऐसा वातावरण उत्पन्न कर देता है जिससे कि उसके सदस्यों में सहिष्णुता सेवा सहयोग, सद्भाव और आज्ञाकारिता जैसे सद्गुण स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं अपने लिये नहीं, दूसरी के लिए जीवित रहे, यह पाठ अपने सदस्यों को संयुक्त परिवार ही पढ़ाता है। इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र निर्माण संयुक्त परिवार का महत्वपूर्ण योगदान है।
(3) व्यक्तिवादिता पर अंकुश
संयुक्त परिवार की एक विशेषता यह है कि इनके व्यक्ति विशेष के स्वार्थ पूर्ति के लिए नहीं वरन सबके सामान्य हितों की रक्षा के लिए कार्य और प्रयत्न होते है। सहयोग, त्याग और सहनशीलता सुयुक्त परिवार का महामन्त्र या आधारभूत सिद्धान्त है। इसीलिए उस वातावरण से व्यक्तिवादी भावनायें पनप ही नहीं पाती है।
(4) परम्पराओं की रक्षा
संयुक्त परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के एक साथ रहने से तथा प्रत्येक सामाजिक व धार्मिक कार्यों, उत्सव तथा त्योहारों में सम्मिलित रूप में भाग लेने में, परिवार के धार्मिक व सामाजिक आचार, प्रथायें, नियम व परम्परायें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती है और इस प्रकार उनकी रक्षा होती है।
(5) आय में वृद्धि
संयुक्त परिवार में अधिक आय की सम्भावना होती है। न केवल किसान वर्ग में यह सम्भावना अधिक होती है बल्कि कारीगर वर्गों जैसे जुलाओं, लोहारों बढ़ड़यों आदि में भी यह सम्भावना सामान्य रूप से पायी जाती है। परिवार के सभी सदस्य सम्मिलित रूप से एक उत्पादक ईकाई के रूप में कार्य करते हैं और बाहर के श्रमिकों को बहुत कम काम में लगाया जाता है। इसके फलस्वरूप उस उत्पादक कार्य से प्राप्त होने वाला सारा लाभ परिवार का ही रहता है। इससे परिवार की सम्मिलित आय अधिक होती है।
(6) श्रमिक कुशलता में वृद्धि
संयुक्त परिवार प्रणाली में सम्मिलित आय अधिक होने का एक कारण यह भी है कि इस प्रकार के परिवार से साधारण एक ही व्यापार था पेशा लोग पीढ़ी दर पीढ़ी से करते चले आते हैं। अतः इसके सदस्य उस कार्य में अधिक कुशलता प्राप्त कर लेते हैं।
(7) सामाजिक बीमा
संयुक्त परिवार का संगठन हो कुछ इस प्रकार होता है कि यह अपने सदस्यों के लिए एक बीमा कम्पनी के रूप में कार्य करता है। उदाहरण के लिए यदि किसी सदस्य की नौकरी छूट जाये या कोई दुर्घटना हो जाये तो संयुक्त परिवार आके भोजन, कपड़े आदि की व्यवस्था करता है, यदि कोई बीमार पड़ जाये तो चिकित्सा की व्यवस्था करता है और यदि कोई सदस्य मर जाये वे उसकी बीवी-बच्चों को पालन पोषण करता है।
(8) खर्च की बचत
सुयुक्त परिवार एक सम्मिलित और सहयोगी उपभोक्ता इकाई है। इसकी एक सम्मिलित आय होती है जिसे कि सबके हित के लिये खर्च किया जाता है। सम्मिलित खर्च से बचत होना स्वाभाविक ही है।
(9) कृषकों को लाभ
सुयुक्त परिवार प्रणाली किसानों के लिये वास्तव में एक वरदान है। उसके लिए संयुक्त परिवार प्रणाली के दो लाभ उल्लेखनीय है। प्रथम तो यह है कि संयुक्त परिवार से उन्हें कृषि कार्य के लिए आवश्यक श्रम-शक्ति स्वाभाविक रूप में ही मिल जाती है और चूँकि यह सभी श्रमिक एक दूसरे के निकट के नाते निश्तेदार होते हैं। इस कारण वे तन-मन लगाकर कृषि में उन्नति करने तथा पैदावार बढ़ाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहते हैं। दूसरे संयुक्त परिवार में सम्मिलित सम्पत्ति होती है और किसान वर्ग की सबसे बड़ी सम्पत्ति खेत है। यह खेत जब अविभाजित रूप में रहता है तो इसका आकार बड़ा होता है। और बड़े आकार के खेत में उत्पादन अधिक होता है और खेती में भी अनेक सुधार व उन्नति करना सम्भव होता है।
संयुक्त परिवार के दोष:
संयुक्त परिवार में निम्नलिखित दोष देखने को मिलते हैं
(1) स्त्रियों की दयनीय दशा
संयुक्त परिवार में स्त्रियों की दशा अत्यन्त दयनीय हो जाती है। उन्हें अपने पति का वास्तविक सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। स्त्री का जीवन केवल घर के काम-काज में बीतता रहता है। सास-सुसर के कारण वे अपने पति से खुलकर बातचीत भी नहीं कर पाती हैं और न ही कभी वे घर के बाहर जा सकती हैं। उनका जीवन घर की चहारदीवारी में बीत जाता है। संतानों की
(2) संतानों की अधिकता
परिवार की संयुक्त सम्पत्ति व खर्च होने से इसमें अधिकता रहती है जिससे बच्चों का कल्याण व विकास नहीं हो पाता है।
(3) गोपनीय स्थान का अभाव
संयुक्त परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक होने से गोपनीय स्थानों का अभाव होता है। नव दम्पत्तियों के लिए इस प्रकार की कठिनाई उत्पन्न होता है।
(4) औपचारिक संबंध-
संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने की वजह से आपस में संबंध घनिष्ठ न होकर औपचारिक रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप आपस में आत्मीयता का अभाव रहता है।
(5) व्यक्ति के विकास में बाधा
परिवार की संख्या की अधिकता के कारण व्यक्तिगत ध्यान किसी की ओर नहीं दिया जा सकता है। ऐसी अवस्था में व्यक्तित्व के विकास का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
(6) अकर्मण्यता का बाहुल्य
संयुक्त परिवार की व्यवस्था के कारण अकर्मण्यता को बढ़ावा मिलता है। बहुत से व्यक्ति इसलिए कार्य नहीं करते क्योंकि उन्हें बिना कार्य किए सब सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कमाने वालों की संख्या दिनोंदिन कम होती जाती है और संयुक्त परिवार आर्थिक संकट से घिर जाता है।
(7) कमाने वालों में असंतोष
संयुक्त परिवार के कमाने वाले सदस्यों में अधिकांशतः असन्तोष बना रहता है क्योंकि उनकी गाढ़ी कमाई दूसरों पर व्यय होती है तथा वे निठल्ले आनन्द करते हैं। कई बार तो कमाने वाले सदस्य भी परिश्रम कम करने लगते हैं क्योंकि उस कमाई का फल उन्हें नहीं मिलता।
(8) मुखिया की सत्ता का दुरुपयोग-
संयुक्त परिवार के सभी सदस्य मुखिया के आदेशानुसार कार्य करते हैं। स्वयं की इच्छा से कुछ भी नहीं कर सकते। उन्हें मुखिया की स्वेच्छाचारिता के आगे नतमस्तक होना पड़ता है।
(9) अप्राकृतिक-
संयुक्त परिवार अप्राकृतिक प्रतीत होता है क्योंकि जो प्रेम बच्चों के प्रति माता-पिता का होता है, वह दूसरों के प्रति नहीं है परन्तु संयुक्त परिवार में सदस्यों को इस बात के लिए परिस्थितियाँ विवश करती है। ये अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर पाते हैं।
(10) आपसी द्वेष एवं कलह-
संयुक्त परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक होने की वजह से आए दिन आपस में झगड़े होते रहते हैं। छोटी-मोटी बातों को लेकर कभी-कभी सास-बहु ननद-भाभी और भाई-भाई में झगड़े हो जाया करते हैं और परिवार एक शान्ति स्थल न होकर युद्ध क्षेत्र बन जाता है।
(11) आलस्यता में वृद्धि-
चूँकि संयुक्त परिवार में सभी लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है इसलिए अनेक लोग काम करने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं।
(12) श्रमिकों की गतिशीलता में बाधक
संयुक्त परिवार में व्यक्ति को अधिक सुरक्षा प्राप्त होती है तथा वह परिवार के लोगों से प्रेम और स्नेह की भावना से बँधा रहता है। परिवार से अलग होकर दूर जाने में उसे कष्ट होता है। इस प्रकार यह व्यवस्था श्रमिकों की गतिशीलता में बाधक है।
समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
(13) कामचोरी की प्रवृत्ति
संयुक्त परिवार के अधिकांश सदस्य आर्थिक दृष्टि से परिवार पर निर्भर रहते हैं। इसका स्वाभाविक फल यह होता है कि लोग कामचोरी का स्वभाव बना लेते हैं। इस प्रकार संयुक्त परिवार जहाँ सामूहिक कल्याण पर आधारित है वहाँ व्यक्तिगत स्वार्थ में वृद्धि हो जाने से उसके लाभ समाप्त हो रहे हैं तथा यह प्रथा विघटन की ओर मुड़ रही है।
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