संविधान के मौलिक ढाँचा
संविधान के मौलिक ढाँचा – भारतीय संविधान की कुछ मौलिक विशेषतायें हैं जिसके आधार पर इसे विश्व के अन्य देशों के संविधान से पृथक किया जाता है। ये विशेषतायें निम्नलिखित हैं
(1) विशालतम् संविधान
आइवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को विश्व का सबसे बड़ा एवं विस्तृत संविधान कहा है जो कि उचित ही है। मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद थे जो 22 भागों में विभाजित थे और कुल 8 अनुसूचियाँ थी। परन्तु 86वें संविधान संशोधन 2002 के पश्चात् संविधान में कुल 446 अनुच्छेद हो गये और यह 26 भागों में विभाजित हो गया साथ ही इसमें कुल 12 अनुसूचियां हो गयी।
(2) प्रभुसत्ता सम्पन्न, लोकतन्त्रात्मक, धर्म-निरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य की स्थापना
(i) प्रभुसत्ता सम्पन्न
वह राज्य जो बाह्य नियन्त्रण से सर्वथा मुक्त हो और अपनी आन्तरिक तथा विदेशी नीतियों को स्वयं ही निर्धारित करता हो, प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य कहलाता है। भारत पूर्णतया स्वतन्त्र एवं प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य है।
(ii) लोकतन्त्रात्मक
भारत की सरकार का समूचा प्राधिकार भारत की जनता में निहित है जो कि जनता के लिए ही जनता द्वारा स्थापित किया गया है।
(iii) धर्म-निरपेक्ष भारत एक धर्म-
निरपेक्ष राज्य है। यहाँ सभी धर्मों को बराबर दृष्टि से देखा जाता है।
(iv) समाजवाद भारतीय
संविधान एक लोकतान्त्रिक समाजवाद की स्थापना की परिकल्पना करता है न कि समाजवादी समाज की।
(3) संसदीय ढंग की सरकार
इस प्रकार की सरकार होने का प्रमुख कारण यह है कि भारत में इसकी नींव वर्तमान संविधान के लागू होने के पहले ही पड़ चुकी थी और हम इसके अभ्यस्त हो चुके थे।
(4) लिखित संविधान
भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसके लिखित होने के दो कारण हैं। प्रथम तो यह है कि परिसंघात्मक संविधान लिखित होता है, क्योंकि परिसंघ तथा इसकी इकाइयों के अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित कर देना आवश्यक होता है भारतीय संविधान द्वारा भारत में परिसंघात्मक राज्य की स्थापना की गयी है। अतः इसका लिखित होना अनिवार्य था दूसरा कारण यह था कि देश में भिन्न-भिन्न जातियाँ निवास करती हैं जिनके हितों की रक्षा करना आवश्यक था। इसलिए इसे लिखित बनाकर सभी के हितों की रक्षा की व्यवस्था की गयी है।
(5) उद्देशिका
संविधान में उद्देशिका में यह घोषणा की गयी है कि भारत के लोग संविधान द्वारा सम्पूर्ण प्रभुत्व समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य की स्थापना करते हैं। यह उद्देशिका इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करती है कि भारत की प्रभुता जनता में निहित है।
(6) मूल अधिकार
भारतीय संविधान के भाग 3 में नागरिकों के मूल अधिकारों की घोषणा की गयी है। प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था के अन्तर्गत मूल अधिकारों की घोषणा संविधान की एक मुख्य विशेषता होती है। वास्तव में लोकतन्त्र का आधार ही जनता के अधिकारों का संरक्षण है। व्यक्ति के बहुमुखी विकास के लिए जन अधिकारों का होना आवश्यक है, उन्हें हम मूल अधिकार कहते हैं।
कतिपय निम्नलिखित मौलिक अधिकार नागरिकों को प्रदान किये गये हैं
- (1) समता का अधिकार।
- (2) स्वतन्त्रता का अधिकार
- (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार।
- (4) धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार ।।
- (5) संस्कृति एवं शिक्षा के अधिकार
- (6) संवैधानिक उपचारों के अधिकार
(7) राज्य के नीति निर्देशक तत्व
इस प्रकार के सिद्धान्त निर्देशक के रूप में हैं। जो विधान मण्डल तथा कार्यकारिणी के पथ-प्रदर्शन के लिए संविधान में उपबन्धित किये गये हैं। इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से धन तथा उत्पादन के साधनों का न्यायोचित विवरण, बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका का पृथक्करण, देश के लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा का प्रयास करना तथा ग्राम पंचायतों का भी संगठन आदि शामिल है।
(8) कठोरता तथा नम्यता का समन्वय
भारतीय संविधान नम्यता तथा कठोरता का अनोखा सम्मिश्रण है। इसे नम्य संविधान इसलिए कहा जाता है क्योंकि संविधान में विधि निर्माण की साधारण प्रक्रिया के आधार पर संशोधन किया जा सकता है, परन्तु कठोर संविधान में संवैधानिक संशोधन के लिए साधारण कानून निर्माण से भिन्न तथा जटिल प्रक्रिया को अपनाया जाता है। भारतीय संविधान के अनुसार कुछ विषयों में संसद के समस्त सदस्यों के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के अतिरिक्त कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं द्वारा समर्थन भी आवश्यक है।
(9) संसदीय प्रभुता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय
भारत में संसदात्मक व्यवस्था को अपनाकर संसद की सर्वोच्चता को स्वीकार किया गया है। साथ ही संघात्मक व्यवस्था के आदर्श के अनुरूप न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने तथा उन विधियों तथा आदेशों को अवैध घोषित करने का अधिकार दिया गया है कि वह न्यायालय की शक्तियों को आवश्यकता के अनुसार सीमित कर सकती है।
(10) एकल नागरिकता
भारतीय संविधान के द्वारा संघात्मक शासन की स्थापन की गयी है। भारतीय संविधान के निर्माताओं का विचार है कि दोहरी नागरिकता भारत की एकता को बनाये रखने में बाधक हो सकती है, अतः संविधान निर्माताओं द्वारा संघ राज्य की स्थापना करते हुए दोहरी नागरिकता के बजाय एकल नागरिकता को ही अपनाया गया है।
(11) नागरिकों के मूल कर्तव्य
भारतीय संविधान के अन्तर्गत एक नया भाग 4 ‘क’ 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 ई. के द्वारा जोड़ा गया है। इसके अन्तर्गत नागरिको के 10 मूल कर्तव्यों को समाविष्ट किया गया है।
(12) स्वतन्त्र न्यायपालिका
भारतीय संविधान में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी, सारे देश के लिए न्याय प्रशासन की एक ही व्यवस्था करता है जिसके शिखर पर उच्चतम न्यायालय विद्यमान है। उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय देश के समस्त न्यायालयों के ऊपर बाध्यकारी होते हैं।
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(13) वयस्क मताधिकार
प्रजातन्त्रात्मक सरकार जनता की सरकार है। देश का प्रशासन जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु संविधान प्रत्येक वयस्क को मताधिकार का अधिकार प्रदान करता है जिसका प्रयोग करके वह अपने प्रतिनिधियों को देश का प्रशासन चलाने के लिए संसद तथा राज्य विधानमण्डलों में भेजता है। भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक को, वह चाहे स्त्री या पुरुष, यदि 21 वर्ष की आयु का हो चुका है तो उसे निर्वाचन में मतदान करने का अधिकार प्राप्त है।
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