संवैधानिक शिक्षा व्यवस्था
हमारे देश के भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 में स्पष्ट रूप से राज्य को निर्देश दिए गए थे कि यह 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रावधान करेगा। संविधान की दृष्टि से शिक्षा के सार्वभौमीकरण (Universalization of Education)) पर थीं, लेकिन संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद भी प्राथमिक शिक्षा के सार्वमीमीकरण की स्थिति निराशाजनक ही रही। यद्यपि संविधान के 83 वें संशोधन अधिनियम में शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया, इस अधिनियम से प्रेरित होकर सर्वशिक्षा अभियान की योजना विकसित की गयी और संसद द्वारा पारित संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम, 2002 के अनुसार भी 6-14 वर्ष आयु वर्ग के लिए प्राथमिक शिक्षा मौलिक अधिकार (Fundamental Right) मानी गयी और सर्वशिक्षा अभियान की रचना इसी आधार पर की गयी। सर्वशिक्षा अभियान भी अपने समय सीमा बद्ध (Time Bound) लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाया। अतः संसद को शिक्षा का अधिकार (Right of Education of RTE Act) अधिनिमय पारित करना पड़ा। ‘शिक्षा का अधिकार वास्तव में एक मानवाधिकार है। आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (International Convernant on Economic Social and Cultural Rights) के अनुसार, “शिक्षा के अधिकार’ के अन्तर्गत सभी के लिए निःशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार निहित है।” शिक्षा के अधिकार को मूर्त रूप देने के लिए संविधान के 86 वें संशोधन अधिनियम, 2002 में एक नया अनुच्छेद (21-A जोड़ा गया जिसमें राज्य को जिम्मेदारी देते हुए निम्न प्रावधान किया गया, “राज्य कानून के दायरे में 6 वर्ष से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।”
राज्य से यह अपेक्षा की गई थी कि इस संविधान के लागू होने के 10 वर्ष के अन्दर ही राज्य सभी बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था तब तक करेगा जब तक वे 14 वर्ष आयु के नहीं हो जाते। इसी क्रम में भारतीय संसद ने 4 अगस्त, 2009 को शिक्षा का अधिकार पारित कर दिया जो विश्व का पहला विधान (Legislation) है जिसने सरकार पर यह जिम्मेदारी
सीप दी कि वह 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों का प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन (Enrolement).. उपस्थिति (Attendence) और प्राथमिक शिक्षा के समापन (Completion of Primary Education) को सुनिश्चित करे।
शिक्षा का अधिकार अधिनिमय ( RTE Act) अप्रैल, 2010 से प्रभावी हो गया है, यह अधिनियम (RTE Act) 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए विभिन्न शैक्षिक प्रावधान प्रस्तुत कराता है जो निम्न प्रकार हैं
- राज्य के द्वारा निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है।
- किसी बच्चे को विद्यालय में न तो रोका जा सकता है, न तो विद्यालय से निकाला जा सकता है और न ही उसे बोर्ड परीक्षा में सफल होना जरूरी है जब तक कि यह प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं कर लेता है।
- विद्यालय छोड़ने वाले (Drop Outs) बच्चों के लिए विशेष शिक्षण का प्रावधान होना चाहिये जिससे कि वे अपने हम उम्र बच्चों के साथ विद्यालय आ सकें व शिक्षा ग्रहण कर सकें।
- इस अधिनियम (RTE Act) के अध्याय 3 (Chapger I11) में सरकारों को, स्थानीय निकायों (Local Authorities) को तथा अभिभावकों को यह कार्यभार सौंपा गया है कि ये बच्चों के नामांकन, उपस्थिति तथा प्राथमिक शिक्षा की पूर्णता को सुनिश्चित करेंगे
- सरकार व स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वे आस-पड़ोस में विद्यालय (Neighbourhood School) स्थापित करें और उसके वित्तीय दायित्व में सहयोग (Financial resposibility) में सहयोग करें, बच्चों के अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति को सुनिश्चित करें, उपयुक्त विद्यालय भवन व अन्य भौतिक सुविधाओं की व्यवस्था करें।
- सरकार व स्थानीय अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि कमजोर वर्ग या वंचित समूह के किसी बच्चे के साथ कोई भेदभाव तो नहीं हो रहा है? कहीं ऐसे बच्चों को प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने से रोका तो नहीं जा रहा है?
- प्रत्येक माता-पिता व अभिभावक की जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चे का प्रवेश पड़ोस के विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा हेतु कराये।
- यह अधिनियम विद्यालय और शिक्षकों को भी बच्चों के प्रति जिम्मेदारी प्रदान करता है।
- इस अधिनियम के लागू होने पर 3 वर्ष के अन्दर ही उपयुक्त सरकार (Appropriate Government) तथा स्थानीय अधिकारियों (Local Authorities) को विद्यालय स्थापित करने होंगे।
- केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकार की इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक आर्थिक सहयोग की समवर्ती जिम्मेदारी (Concurrent Responsibility) होगी। दोनों सरकारें वित्तीय व अन्य जिम्मेदारियों के लिए भागीदार होंगे।
- स्थानीय अधिकारियों का यह कर्तव्य होगा कि ये शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएँ।
मानव अधिकार के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
अधिक बल दिया गया है। कृषि उत्पादकता के विकास के लिए उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक दवाएँ (Pesticides) तथा कृषि के अधिक विकसित तरीकों को अपनाने पर बल दिया गया है। अतः ग्राम विकास कार्यक्रमों का पहला और महत्वपूर्ण चरण ‘कृषि’ में सुधार तथा उससे सम्बन्धित सेवाएँ प्रदान करना है। विकास के अन्तर्गत ग्रामों में विभिन्न प्रकार के गुणात्मक तथा संख्यात्मक परिवर्तन करने हैं जिसके फलस्वरूप प्रत्येक व्यक्ति समाज या समुदाय का सदस्य होते हुए अपना विकास कर सके। एक सामूहिक रचनात्मक, अन्वेषण की भावना, जीवन की समस्याओं को सुलझाने की प्रवृत्ति तथा अन्तिम रूप से सामूहिक शक्ति में विश्वास उत्पन्न करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, विकास कार्यक्रम तथा विकास प्रक्रियाओं के निर्धारण से पहले उपर्युक्त बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।
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