संस्कारों के महत्व – संस्कारों का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान था। प्राचीन समय में जीवन विभिन्न खण्डों में विभाजित नहीं बल्कि सादा था सामाजिक विश्वास कला और विज्ञान एक दूसरों से सम्बन्धित थे। संस्कारों का महत्व हिन्दू धर्म में इस कारण था कि उनके द्वारा ऐसा वातावरण पैदा किया जाता था, जिससे व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके। हिन्दुओं ने जीवन के तीन निश्चित मार्गों को मान्यता प्रदान की- 1. कर्ममार्ग 2. भक्ति मार्ग 3. ज्ञान मार्ग। यद्यपि मूलतः संस्कार अपने क्षेत्र की दृष्टि से अत्यन्त व्यापक थे किन्तु आगे चलकर उनका समावेश कर्म मार्ग में किया जाने लगा। वे एक प्रकार से भक्ति मार्ग तथा ज्ञान मार्ग के लिए भी तैयारी के साधन थे।
कुछ मनीषियों ने संस्कारों का उपहास किया है क्योंकि उनका सम्बन्ध सांसारिक कार्यों से था। उनके अनुसार संस्कारों द्वारा इस संसार सागर को पार नहीं किया जा सकता। साथ में हिन्दू विचारकों ने यह भी अनुभव किया है कि बिना संस्कारों के लोग नहीं रह सकते। आधार शिला के रूप में स्वतन्त्र विधि विधान तथा परम्परागत न होने से चार्वाक मत का अन्त हो गया। यही कारण था कि जिससे जैन और बौद्धों को भी अपने स्वतन्त्र कर्मकाण्ड विकसित करने पड़े। पौराणिक हिन्दू धर्म के साथ वैदिक धर्म का हास हुआ।
धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र Secular Republic.
इसके परिणामस्वरूप जो संस्कार घर पर होते थे,वे अब मन्दिरों और तीर्थ स्थानों पर किए जाने लगे। यद्यपि तीर्थ तथा विस्तृत यज्ञ प्रचलित नहीं रहे किन्तु संस्कार जैसे यज्ञोपवीत तथा चूड़ाकरण, कुछ परिवर्तन के साथ चलते रहे।