संस्कार का अर्थ – संस्कार का साधारणतः अर्थ शुद्धि अथवा स्वच्छता से हैं। संस्कार के अनुपालन में मनुष्य का शारीरिक, बौद्धिक और वैयक्तिक उत्कर्ष ही नहीं होता, बल्कि उसका सामाजिक और धार्मिक जीवन भी उन्नत होता है। संस्कार शब्द कृभ् धातु में ‘ध’ प्रत्यय के योग में व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ शुद्धता से हैं। इसका प्रयोग शिक्षा, संस्कृति, सौजन्य, व्याकरण की शुद्धि, शिक्षा, संस्करण शोभा और आभूषण इत्यादि अनेक अर्थों में किया गया है। शाब्दिक दृष्टि से शिक्षा, संस्कृति, प्रशिक्षण, व्याकरण सम्बन्धी शुद्धि संस्कार बुद्धि, परिष्करण, पूर्ण करना, स्मृति चिन्ह तथा पवित्र करने वाले अनुष्ठान संस्कार के अर्थ है। धार्मिक तथा दार्शनिक दृष्टि से संस्कार का अभिप्राय उस धार्मिक क्रिया अथवा अनुष्ठान से हैं जो मनुष्य की शुद्धता तथा शारीरिक और बौद्धिक परिष्कार के लिए किया जाता है।
क्षैतिज और उदग्र सामाजिक गतिशीलता में अन्तर बताइये?
वस्तुतः मनुष्य के व्यक्तित्व का परिष्करण और शुद्धिकरण संस्कार से ही सम्भव है। संस्कार हिन्दू समाज के सदस्यों के लिए अत्यन्त अनिवार्य धार्मिक विधान रहे हैं। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तथा अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए विभिन्न संस्कारों की प्रतिष्ठा की गई। इस प्रकार व्यक्ति को पवित्र बनाने वाले विभिन्न अनुष्ठानों अथवा प्रतीकात्मक क्रिया-कलापों को संस्कार कहा जा सकता है।