हर्ष के कार्यों का मूल्यांकन
हर्ष के कार्यों का मूल्यांकन – सम्राट हर्ष ने मात्र 16 वर्ष की आयु में सिंहासन सम्भाला। इस समय उसकी परिस्थितियां बहुत विषम थीं लेकिन उसने संयम और साहस से काम लिया। उसने न केवल अपने पैतृक राज्य की रक्षा की बल्कि साम्राज्य का विस्तार भी किया। हर्ष एक कर्तव्य-परायण सम्राट था। उसने न केवल अपने भाई और बहनोई के हत्यारों से बदला लिया बल्कि अपनी बहन राज्यश्री की रक्षा भी की।
हर्ष एक महान विजेता था। वह केवल चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय से पराजित हुआ। इसके अतिरिक्त वह अपने समस्त शत्रुओं को पराजित करने में सफल रहा। हर्ष एक महान साम्राज्य निर्माता भी था। चीनी यात्री स्वेनसांग के अनुसार ‘पंच भारत’ (पंजाब, कान्यकुब्ज, गौड़, मिथिला एवं उड़िया) का राजा बन गया। हर्षचरितम् में हर्ष को 18 द्वीपों का स्वामी कहा गया है।
माण्टेसरी शिक्षा पद्धति की विवेचना कीजिए।
हर्ष एक महान दानी शासक था। उस समय भारत में उसके समान कोई दानी व्यक्ति नहीं था। वह हर पांचवें वर्ष प्रयाग में दानोत्सव करता था। वह इतना अधिक दान करता था कि उसका खजाना खाली हो जाता था। हर्ष स्वयं एक विद्वान था, साथ ही साथ वह विद्वानों का आश्रयदाता भी था। उसका राजकवि बाणभट्ट था जिसने हर्ष चरितम् की रचना की स्वयं हर्ष ने ‘प्रियदर्शिक’ ‘रत्नावली’ एवं ‘नागानन्द’ नाटकों की रचना की। हर्ष एक महान शासन प्रबन्धक था। उसका शासन लगभग गुप्त शासन पद्धति पर ही आधारित था। गुप्त शासन पद्धति की ही भाँति हर्ष ने भी अपने केन्द्रीय शासन को अनेक भुक्तियों में तथा प्रत्येक मुक्ति को अनेक विषयों में बांट दिया था।