सम्प्रेषण के सिद्धान्त की संक्षिप्त विवेचना
सम्प्रेषण के सिद्धान्त सामान्यतया शिक्षण का अभिप्राय कुछ कहने, प्रदर्शन करने, कौशल, अभिवृत्ति तथा सूचनाओं को देने से लगाया जाता है। शिक्षण का यह अर्थ इस पर आधारित है कि शिक्षक के पास अधिक ज्ञान व सूचनाएँ होती हैं, जिन्हें छात्र नहीं जानता है और छात्र के लिए इस ज्ञान सामग्री को सीखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि शिक्षक को कुछ जानना है और जो कुछ वह छात्रों को बताना चाहता है, उसे उनके समक्ष प्रस्तुत करे, स्पष्ट करे। शिक्षक छात्रों के समक्ष इसको सम्प्रेषण के माध्यम से ही प्रस्तुत करते हैं। इसे ही शिक्षण का सम्प्रेषण सिद्धान्त कहते हैं। सम्प्रेषण के बिना शिक्षण सम्भव नहीं है।
सम्प्रेषण- सिद्धान्त का मुख्य सम्बन्ध छात्रों को दी जाने वाली विषय सामग्री के चुनाव, संगठन तथा प्रस्तुतीकरण से है। इसका मूल आधार हरबार्ट द्वारा प्रस्तावित शिक्षण की सामान्य रूपरेखा, विश्लेषण, संश्लेषण, सम्बन्ध, सिस्टम तथा विधि में है। हरबार्ट की इस रूपरेखा के क्रमशः पाँच सोपान हैं- प्रस्तावना, प्रस्तुतीकरण, तुलना व सम्बन्ध, सामान्यीकरण तथा प्रयोग। इसका परिष्कृत रूप मॉरीसन ने दिया, उसने पाँच सोपानों को इसी क्रम में रखा है अन्वेषण, प्रस्तुतिकरण, परिपाक, व्याख्या तथा वर्णन |
इस बहुप्रयुक्त विधि को शिक्षण की इकाई योजना के रूप में जाना जाता है और यह चक्र पाठ्यवस्तु की प्रत्येक इकाई के साथ दोहराया जाता है। शिक्षक सामग्री को संगठित करता है और छात्रों के सम्मुख करता है। अन्त में छात्र ने जो कुछ भी सीखा है, वह उसे शिक्षक को व अन्य छात्रों को बताता है। और इस प्रकार सम्प्रेषण के द्वारा वह अपने सीखे हुए ज्ञान को संगठित तथा स्पष्ट कर लेता है।
सीखने की एक नवीनतम विधि अभिक्रमित है, जिसमें टीचिंग मशीन का प्रयोग भी करते हैं, जिसका प्रत्यक्षतः कोई सम्बन्ध सम्प्रेषण से दृष्टिगोचर नहीं होता परन्तु इसे नियन्त्रित सम्प्रेषण (Controlled Communication) कहा जा सकता है। इसमें शिक्षक सम्प्रेषण का अप्रत्यक्ष माध्यम है। वह पढ़ाई जाने वाली विषय सामग्री का नियन्त्रण करता है। इस विधि में नियन्त्रण अधिक रहता है, अपेक्षाकृत उस विधि के, जिसमें शिक्षक स्वयं कक्षा में छात्रों को पढ़ाता है।
ब्रिटिश शासन के प्रारम्भिक वर्षों में शिक्षा के महत्व को बताइये।
इस सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं—
- विषय सामग्री (जो कुछ छात्रों को पढ़ाया जाता है) छात्रों को बाहर से दी जाने वाली वस्तु है।
- सम्प्रेषण सिद्धान्त के लिए अधिगम का ज्ञानात्मक सिद्धान्त (Cognitive) आवश्यक है, जो सीखने के लिए छात्र के सजग प्रत्यक्षीकरण को महत्व देता है।
- मुख्य विधि उपदेशात्मक (Didactic) है, इसमें रूपों में कथन, प्रदर्शन प्रस्तुतीकरण सम्मिलित है।
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