समानता का अधिकार
समानता का अधिकार- समानता की भावना प्रजातन्त्रीय व्यवस्था का आधार है और इसलिए भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता के अधिकार का वर्णन किया गया है। समानता के अधिकार के अन्तर्गत निम्न व्यवस्थाएं की गई हैं
- अनुच्छेद 14 के अनुसार, प्रत्येक नागरिक को विधि के सम्मुख समान संरक्षण का अधिकार दिया गया है।
- अनुच्छेद 15 के अनुसार, राज्य धर्म, जाति, लिंग, जन्म-स्थान आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा और इन्हीं आधारों पर सार्वजनिक स्थलों में प्रवेश पर कोई प्रतिबन्ध नहीं रहेगा।
- अनुच्छेद 16 सभी नागरिकों के सार्वजनिक पदों को प्राप्त करने के क्षेत्र में अवसर की समानता प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 17 छुआ-छूत के भेदभाव को समाप्त करने की घोषणा करता है।
- अनुच्छेद 18 शिक्षा तथा सैन्य पदयियों के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार की पदवियाँ राज्य द्वारा प्रदान करने का निषेध करता है।
इस अधिकार के बाद भी संविधान राज्य को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह संरक्षित तथा पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए विशेष व्यवस्था कर सके।
सम्पत्ति का अधिकार
संविधान ने मूल रूप में सम्पत्ति के अधिकार को एक मूल अधिकार के रूप में स्वीकार किया था। इसके अन्तर्गत अनुच्छेद 19 के द्वारा प्रत्येक नागरिक को सम्पत्ति अर्जित करने, धारण तथा उपभोग करने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई थी। अनुच्छेद 31 में यह प्रावधान था कि किसी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति से केवल कानून के अनुसार मुआवजा देकर ही वंचित किया जा सकता है। बाद में संवैधानिक संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था भी की गई कि न्यायालय मुआवजे की राशि के औचित्य के सम्बन्ध में निर्णय नहीं ले सकते। परन्तु संविधान के चौवालिसवें संशोधन के अन्तर्गत सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार के 19 और 31वें अनुच्छेदों को निरस्त कर दिया गया।
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इनके स्थान पर संविधान के भाग 12 में एक नया अध्याय, अध्याय 4 जोड़ दिया 5 गया है जिसमें सम्पत्ति के अधिकार की चर्चा है। परिणामस्वरूप, सम्पत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार न होकर केवल एक वैधानिक अधिकार मात्र रह गया है।
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