समाजशास्त्र एवं इतिहास के मध्य सम्बन्ध तथा अंतर पर प्रकाश डालिए।

0
45

समाजशास्त्र एवं इतिहास के मध्य सम्बन्ध

समाजशास्त्र एवं इतिहास के मध्य सम्बन्ध इतनी नजदीकिया है कि दोनों को पृथक-पृथक करके अध्ययन करना एक दुष्कर कार्य होगा। पिछले लगभग 25-30 वर्षों से विद्वानों में इस प्रश्न पर जोरदार चर्चाएँ हुई हैं। अब ऐसा समझा जा रहा है कि इतिहास केवल विभिन्न साम्राज्यों के उत्थान एवं पतन की कहानी ही नहीं है बल्कि उन सामाजिक स्थितियों की विवेचना भी है जो इतिहास के विभिन्न चरणों में सक्रिय होती रही है। आधुनिक इतिहासकार अब सामाजिक इतिहास की चर्चा अधिक करते हैं। इरफान हबीब, आर०एस० शर्मा आदि इतिहासकारों के योगदान इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इरफान हबीब की प्रसिद्ध पुस्तक द एग्रेरियन सिस्टम ऑव मुगल इंडिया केवल इतिहास के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि समाजशास्त्रियों के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है उसी प्रकार, प्रोफेसर आर०एस० शर्मा ने प्राचीन भारत की सामाजिक व्यवस्था का जो चित्रण प्रस्तुत किया है वह समाजशास्त्रियों के लिए भी अतिशय उपादेय है।

मार्क्स का समाजशास्त्रीय सिद्धांत मुख्य रूप से इतिहास की व्याख्या पर आधृत है। ऑर्नल्ड ऑयनबी की प्रसिद्ध कृति ए स्टडी ऑव हिस्ट्री समाजशास्त्र के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। इस प्रकार उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इतिहास एवं समाजशास्त्र में अत्यन्त निकटतम सम्बन्ध है।

महात्मा गाँधी ने वर्धा सम्मेलन योजना में कौन-कौन से सुझाव पारित किये?

अन्तर- इतिहास एवं समाजशास्त्र के मध्य निकटतम सम्बन्धों के बावजूद इनमें कतिपय विषमताएं भी हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. इतिहास में वर्णित घटनाओं का पुनः परीक्षण संभव नहीं है क्योंकि सामान्यतः ये एक बार घटती है अतः इनके निष्कर्षों का भी पुनः परीक्षण कठिन है। जबकि समाजशास्त्र में निष्कर्षो का परीक्षण एवं पुनः परीक्षण संभव है।
  2. समाजशास्त्र और इतिहास की अध्ययन पद्धति के स्तर भी भिन्न हैं। समाजशास्त्रीय विश्लेषण एवं निष्कर्षो में वैज्ञानिकता लाने के लिए अनेक विधियों का उपयोग किया जाता है, जो इतिहास में नहीं होता।
  3. इतिहास का सम्बन्ध मुख्यतः भूतकाल से है, जबकि समाजशास्त्र का वर्तमान काल से। (4) इतिहास मूल रूप से वर्णानात्मक है, जबकि समाजशास्त्र विश्लेषणात्मक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here