समाज में जेण्डर के समाजीकरण
परिवार की भांति समाज भी शिक्षा का एक प्रभावशाली अभिकरण होता है। कोई समाज कितना भी छोटा क्यों न हो, परन्तु यह परिवार से बड़ा होता है। परिवार से निकल कर जब बच्चा बाहर के संसार में पाँव रखता है तो वह समाज के अनेक व्यक्तियों तथा संस्थाओं के सम्पर्क में आता है और उनका अनुकरण कर अनेक बातें सीखता है। समाज में बच्चे अपने परिवार में सीखे हुए ज्ञान में परिमार्जन करते हैं और इस प्रकार उनका समाजीकरण होता है।
समाज में बालकों का समाजीकरण पास पड़ौस मित्र मण्डली एवं धार्मिक संस्थाओं के द्वारा भी होता है क्योंकि ये सभी समाज की औपचारिक एवं अनौपचारिक संस्थाएँ हैं। बालक अपने आस-पास के वातावरण, उसके आस-पास के लोगों के व्यवहार व दृष्टिकोण से निरन्तर प्रभावित होता है उसके चारों ओर से पर्यावरण में निम्न संस्थाएँ या अभिकरण हैं जिनसे बालक सर्वाधिक प्रभावित होता है
(क) औपचारिक संगठन (Formal Organisation) (I) शिक्षण संस्थाएँ (2) धार्मिक संस्थाएँ (3) राजनैतिक संस्थाएं (4) सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाएँ (5) आर्थिक एवं स्वास्थ्य संस्थाएँ (6) कला एवं मनोरंजन के साधन जैसे आकाशवाणी, चलचित्रों, दूरदर्शन आदि ।
(ख) अनौपचारिक संगठन (Informal Organisation) (1) परिवार (2) पास पीस, मित्र-मण्डली (3) रिश्तेदार (4) सांस्कृतिक संस्थाएँ (5) विभिन्न प्रकार के उत्सव (6) रीति-रिवाज और सामाजिक प्रथाएँ।
इस प्रकार बालक दोनों स्रोतों के मध्य में केन्द्र बिन्दु के रूप में रहता है तथा ये दोनों स्रोत विभिन्न प्रकार से बालक को प्रभावित करते हैं। इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है कि बालक सर्वप्रथम जन्म लेता है तथा अपने माता-पिता, भाई-बहन व अन्य सदस्यों से सीखता है तथा उसके व्यवहार में कुछ परिवर्तन मित्रों व पड़ोसियों द्वारा आता है। परिवार में होने वाले उत्सव, जैसे विवाह इत्यादि में सम्मिलित होकर वह उन नियमों व परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त करता है तथा विद्यालय व विभिन्न धार्मिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा अन्य सामाजिक आवश्यकताओं व परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त करता है।
लड़का या लड़की होना किसी की भी एक महत्वपूर्ण पहचान है, उसकी अस्मिता है। समाज हमें सिखाता है कि लड़के और लड़कियों का कैसा व्यवहार स्वीकार करने योग्य है। उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। हम प्रायः यही सोचते हुए बड़े होते हैं कि ये बातें सब जगह बिल्कुल एक-सी हैं। शारीरिक रचना के कारण औरतों को माहवारी होती है, वे बच्चे पैदा करती है, उन्हें दूध पिलाती हैं लेकिन सब औरतें बच्चे पैदा नहीं करतीं। और वैसे भी प्रजनन के अलावा ऐसा कुछ नहीं है जो औरतें कर सकती हैं पर मर्द नहीं कर सकते या मर्द कर सकते हैं और औरतें नहीं कर सकतीं। और बच्चे पैदा करने का यह मतलब नहीं है कि सिर्फ औरतें ही उन्हें पाल सकती है या उन्हें ही बच्चों को पालना चाहिए। पालन-पोषण मर्द भी उसी तरह कर सकते हैं। इसलिए नर या मादा शरीर के साथ पैदा होने का यह अर्थ नहीं कि महिलाओं का स्वभाव, बर्ताव, भूमिकाएँ यहाँ तक कि भाग्य भी उन्हीं के आधार पर निश्चित कर दिया जाए, परन्तु सच्चाई यह है कि, क्या प्राकृतिक या कुदरत का दिया है और क्या समाज द्वारा सिखाया गया है, इसे साबित करना बहुत मुश्किल है क्योंकि जेण्डरीकरण या समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार और समाज द्वारा बच्चे के जन्म के साथ ही शुरू कर दी जाती है। अनेक दक्षिण एशियाई संस्कृतियों में बेटे के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है जबकि बेटी की पैदाइश पर मातम, बेटों – को प्यार, इज्जत, बेहतर खान-पान, बेहतर देखभाल और इलाज मिलता है। बेटों को प्रोत्साहित किया जाता है कि ये ताकतवर मजबूत और बाहर घूमने वाले बने, जबकि लड़कियों को शर्मीली और परघुस्सु बनने की शिक्षा दी जाती है।
लड़की की शारीरिक बनावट में ऐसा कुछ नहीं है कि जिसकी वजह से वह नेकर न पहन सके या पेड़ों पर न चढ़ सके या साइकिल न चला पाए। वैसे ही लड़कों के शरीर में भी ऐसा कुछ नहीं है कि जिसके कारण वे गुड़ियों से न खेल सकते हों या अपने छोटे बहन को संभालने, खाना पकाने और घर साफ करने में मदद न कर सकते हों। ये सभी जेण्डर के अन्तर हैं, जिन्हें समाज ने बनाया है। जेण्डर सामाजिक व सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं, प्राकृतिक नहीं, यह इसी बात से साबित हो जाता है कि वे समय के साथ-साथ, अलग-अलग जगहों पर तथा विभिन्न सामाजिक समूहों में भिन्न-भिन्न होती हैं।
लड़कों की पढ़ाई पर अधिक ध्यान दिया जाता है। परिवार भी उन्हें बेहतर स्कूल भेजने की कोशिश करते हैं। तकनीकी के प्रशिक्षण, शिक्षा और प्रोफेशनल नौकरी के विचार से विषय चुनने की कोशिश की जाती हैं। पढ़ाई पूरी कर लेते हैं तो कम्पाउंडर, मैकेनिक, बिक्री के कार्य इत्यादि में लगकर बेहतर कमाई करते हैं।
राजपूतों की उत्पत्ति का अग्निकुण्ड सिद्धान्त।
समाज भी उन्हें परिवार का मुखिया मानता है। उन पर दबाव होता है कि कमाई करें, कठोर बने, परिवार में दबदबा बनाए रखें। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे रोएंगे नहीं इससे वे अपनी भावनाओं को दबा देते हैं वरना सभी उन्हें चिढ़ाएंगे।
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