समाज दर्शन के क्षेत्र- समाजदर्शन के अन्तर्गत विविध सामाजिक प्रक्रियाओं व सामाजिक संस्थाओं से सम्बन्धित विभिन्न प्रश्नों और समस्याओं का अध्ययन किया जाता है तथा उनका समुचित समाधान ढूंढ़ने का प्रयास किया जाता है। जिन प्रमुख प्रश्नों का अध्ययन समाजदर्शन के अन्तर्गत किया जाता है, उनमें से कुछ निम्नवत् उल्लेखनीय हैं-व्यक्ति किसी एक प्रकार के समाज की अपेक्षा दूसरे प्रकार के समाज को क्यों अच्छा मानता है? राजनीतिक संगठनों का मुख्य ध्येय क्या होना चाहिए? किन सामाजिक मानकों के आधार पर राजनीतिक संस्थाओं का मूल्यांकन किया जाये ?
सोलह संस्कार के विषय में संक्षेप में लिखिए।
किसी राज्य या सरकार के प्रति कोई व्यक्ति कहां तक अपने दायित्व का निर्वाह करे या किन परिस्थितियों में ऐसा करना आवश्यक नहीं है? समाज के परिप्रेक्ष्य में उठने वाले इन विविध प्रश्नों और समस्याओं की व्याख्या विभिन्न समाज दार्शनिकों ने प्रायः दो दृष्टिकोणों से की है- (1) मूल्यात्मक (Evaluative) और (2) विश्लेषणात्मक (Analytic) दृष्टिकोण।
भारतीय समाज में धर्म की क्या भूमिका है?
प्रथम दृष्टिकोण के अन्तर्गत सामाजिक समस्याओं का मूल्यांकन नियमों, सिद्धान्तों, मूल्यों व आदर्शों के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। दूसरे दृष्टिकोण के अन्तर्गत विशिष्ट संस्थाओं और व्यावहारिक सिद्धान्तों के पक्ष में प्रदत्त तर्कों का विश्लेषण किया जाता है। इस प्रकार समाज दर्शन सामाजिक प्रक्रियाओं, प्रणालियों व सिद्धान्तों का अध्ययन करने वाली दार्शनिक विधा है।