सल्तनत कालीन स्थापत्य कला – भारत में तुर्की साम्राज्य की स्थापना के साथ ही कला के विकास का काल प्रारम्भ हुआ। इस काल में जिस कला का सबसे ज्यादा विकास हुआ वह कला थीं स्थापत्य कला । तुर्कशासक भारत में जो स्थापत्य कला लेकर आये थे उस इस्लामी स्थापत्य कला को मेहराब परम्परा का नाम दिया जा सकता है। भारतीय और इस्लामी कला एक दूसरे से प्रभावित हुई। दिल्ली के प्रारम्भिक मुल्तानों ने प्रारम्भ में जिन इमारतों को निर्माण कराया उनमें ‘बीच में एक खुला सहन’ जिसके चारो ओर खम्भों वाले बरामदे और मक्का की ओर मुँह किये हुये एक बन्द दीवार अर्थात किबला लिवान था। इस पश्चिमी दीवार में कई मेहराबें बनायी जाती थीं। इसमें बीच की मेहराव मुख्य होती थीं। इस मेहराब के साथ ही कुछ सीढ़ियाँ एक चबूतरे (मिम्बर) तक जाती थी। इस पर खड़े होकर इमाम जुमे का खतना पढ़ते थे मस्जिद के अंदर ही ‘वजू’ के लिए एक हौज और साथ ही एक मीनार होती थी जिस पर खड़े होकर मुअज्जिन अज्ञान (दैनिक नमाज के लिए बुलावा देता था मस्जिद का यही मूलरूप छोटे-छोटे परिवर्तन के साथ सभी मस्जिदों में दिखाई देता है।
इसी प्रकार सल्तनत कालीन इमारतों में कुरान की आयतों को बड़ी सुन्दरता से उत्कीर्ण किया गया है। इसका सबसे सुन्दर उदाहरण कुतुब मीनार में देखा जा सकता हैं इस काल की इमारतों में मस्जिदें, महल मकबरें प्रमुख हैं। इनमें कुरान की आयतों के साथ-साथ फूल-पत्तियों को उकेरा गया है। इस काल के हिन्दू शासको की इमारतों की प्रमुख विशेषता निम्न थी- (1) इमारत विशाल होती थी। (2) बीच में एक बड़ा सहन होता था। (3) सहन के चारो ओर बरामदे बने होते थे जो बड़े और कलात्मक खम्बों पर खड़े होते थे। (4) इमारतों को विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों से अलंकृत किया जाता था। अलंकरण मुस्लिम इमारतों में भी होता था। लेकिन इन इमारतों में अलंकरण समानान्तर, वर्ण, त्रिकोण बनाकर अथवा रेखाओं को काटकर अथवा कुरान की आयतों को लिखकर या चमकदार और विभिन्न रंगों के पत्थर का प्रयोग करके किया जाता था। परंतु दोनों ही वर्गों की भावना की थी। इस प्रकार विभिन्न कारणों से हिन्दू कला ने इस युग की कला को बड़ी मात्रा में प्रभावित किया और एक मिश्रित कला का जन्म हुआ। जिसे इण्टों इस्लामी स्थापत्य कला कहा जाता है। सल्तनत कालीन विभिन्न वंशों की स्थापत्य कला का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
गुलामवंश की स्थापत्य कला-कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में राय पिथौरा के किले के निकट ‘कुन उत्त-इस्लाम’ नाम की मस्जिद तथा अजमेर में ‘ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद को बनवाया था। कुतुबुद्दीन के द्वारा बनवायी गयी मस्जिदों में से प्रथम एक मंदिर के स्थान पर और द्वितीय एक संस्कृत विद्यालय के स्थान पर बनवायी गयी। इनकी रूपरेखा में परिवर्तन करके इन्हें मस्जिदों का स्वरूप दिया गया था। इल्तुतमिश ने ‘कुवत-उल-इस्लाम को बहुत बड़ा किया। कुतुबमीनार का मूल योजना इस्लामी है। आरम्भ में इसका प्रयोग ‘अजान’ (नामक के लिए बुलाना) के लिए किया जाता था परंतु बाद में इस कीर्ति स्तम्भ के रूप में स्वीकार किया गया। कुतुबुद्दीन के समय में इसकी नींव पड़ी थी इस्तुतमिश ने इसे 225 फीट ऊंची चार मंजिलों की निर्मित करायी। फिरोज तुगलक के समय में बिजली गिर जाने के कारण इनकी चौथी मंजिल नह हो गयी जिसके कारण फिरोज ने इसमें दो छोटी मंजिले और निर्मित करायी थी। इस कारण यह पांच मंजिल की निर्मित है। इसकी ऊंचाई 234 फीट हो गयी है इसकी एक के ऊपर एक खड़ी हुई पांच मंजिले नीचे से ऊपर की ओर पतली हो गयी है और इसकी ऊंचाई भव्य है। इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार को पूरा कराया था। इसके अतिरिक्त उसने “कुतुबमीनार से 5 किमी. दूर मलकपुर गाँव में अपने सबसे बड़े पुत्र नासिरुदीन मुहम्मद का मकबरा ‘सुल्तानगढ़ी’, कुतुबमीनार के निकट एक कमरा जो संभवता स्वयं का मकबरा या होजए-शम्सी, शम्सी ईदगाह, बदायूँ की जामा मस्जिद और नागौर (आधुनिक जोधपुर) का ‘अतरकीन का दरवाज्य निर्मित करवाया था। बलबन ने राय पिथौरा के किले के निकट अपना स्वयं का मकबरा और “लाल महल बनवाया था जो इस्लामी कला का एक श्रेष्ठ नमूना है।
खिलजी वंश की स्थापत्य कला
अलाउद्दीन खिलजी एक महान् निर्माता था। उसकी इमारते पूर्णतया इस्लामी विचारधारा के अनुकूल बनवायी गयी थी। ये कला की दृष्टि से श्रेष्ठतम स्वीकार की जाती हैं। उसने सीरी का नगर निर्मित कराया जिसमें हजार खम्भों वाला महल ‘हजार सिनून महल’ बनवाया, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के अन्तर्गत जमायतखाना मस्जिद और कुलुबमीनार के निकट अलाई दरवाजा’ बनवाया। जमायतखाना मस्जिद और अलाई दरवाजा इस्लामी कला के सुन्दरतम नमूने माने गये हैं। मार्शल ने लिखा है कि “अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य कला के खजाने का सबसे सुन्दर हीरा है।” सीसा के शहर (दिल्ली का नवीन नगर) के निकट अलाउद्दीन ने प्रायः 70 एकड़ के क्षेत्रफल का एक तालाब ‘हौज-ए-अलाई’ अथवा हौज- ए-खास भी बनवाया था।
तुगलक काल की स्थापत्य कला
तुगलक काल में भी स्थापत्य कला का विकास देखने को मिलता है। इस काल में अनेक इमारतों का निर्माण हुआ। गियासुद्दीन तुगलक ने कुतुबमीनार के पूर्व में एक नवीन नगर तुगलकाबाद में अपना स्वयं का मकबरा और अपना महल बनवाया था। उसका मकबरा एक लाल पत्थर के बने छोटे गढ़ का आभास देता है जो दृढ़ तो है परंतु शानदार नहीं। मुहम्मद तुगलक ने ‘जहाँ पनाह’ नाम का नवीन नगर दिल्ली के निकट बनवाया था। तुगलकाबाद के निकट आदिलाबाद का किला बनवाया था। परंतु यह इमारत अब नष्ट हो चुकी है। उनमें से सबपलाह बाँध और बिजाई मण्डल नामक दो इमारतों के अवशेष प्राप्त होते हैं। फिरोज तुगलक के द्वारा निर्मित इमारतों में दिल्ली के निकट फिरोजाबाद में फिरोजशाह कोटला का नगर और किला, जामा मस्जिद प्रमुख है। इसके अतिरिक्त उसने काली मस्जिद, खिड़की मस्जिद, बेगमपुरी मस्जिद, केलान मस्जिद, खाने जहाँ तेलगांनी का मकबरा और स्वयं का मकबरा भी निर्मित कराया जो स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं।
सैय्यद काल की स्थापत्य कला
इस काल की इमारतों में मुबारक शाह और मुहम्मद शाह का मकबरा प्रमुख है। मुबारक शाह का मकबरा अपने ऊंचे गुम्बद के लिए प्रसिद्ध है. जबकि मुहम्मद शाह का मकबरा अष्टभुजी अकृति में बना है।
लोदी काल की स्थापत्य कला
लोदी कांल की सबसे प्रसिद्ध इमारत सिकंदर लोदी का मकबरा है। इस मकबरें पर दोहरे गुम्बद है। गुम्बद के चारों ओर आठ खम्बों की छतरी लगी है। इस काल में अनेक गुम्बदों का निर्माण हुआ जिनमें बरां खाँ का गुम्बद, दादा का गुम्बद, बड़ा गुम्बद, छोटे खों का गुम्बद, ताज खाँ का गुम्बद प्रमुख हैं।
सल्तनत कालीन प्रान्तीय स्थापत्य कला
शाही स्थापत्य कला के अतिरिक्त इस काल में प्रान्तीय स्थापत्य कला का भी विकास हुआ। जौनपुर के शर्की सुल्तान स्थापत्य कला के प्रेमी • थे शर्डी सुल्तानों द्वारा निर्मित प्रमुख इमारते थी जीनपुर की अटाला मस्जिद, लाल दरवाजा, मालवा में मोहू की किला, इसमें निर्मित जामा मस्जिद, हिन्दोला महल तथा अशफी महल इसी तरह गुजरात में कैम्बे की मस्जिद, अहमदाबाद की जामा मस्जिद, अहमदशाह का मकबरा, चम्पानेर की जामा मस्जिद भी इस काल की प्रसिद्ध इमारते हैं।
इस काल में विजयनगर और राजस्थान में भी स्थापत्य कला का विकास हुआ। कृष्ण देवराय द्वारा निर्मित ‘विलस्वामी का मन्दिर और गोपुरम प्रमुख है राजस्थान में राणा कुम्भा द्वारा निर्मित कुम्भलगढ़ का किला, चित्तौड़ का कीर्ति स्तम्भ जैन स्तर बहुत ही उत्कृष्ट है।
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इस युग की मुस्लिम इमारतों में अधिकांश मस्जिदें, महल मकबरें तथा किले थे। जिनमें मुख्य रूप से गुम्बद मीनारें, मेहराबे तथा तहखाने आदि थे। हिन्दू शासकों ने मुख्य रूप से मन्दिर किले गोपुरम और मण्डप बनवाये। इसमें हिन्दू और मुसलमानों शासकों ने सजावट करायी। हिन्दुओं ने अपनी इमारतों को विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों से अलंकृत किया वहीं ने उसे कुरान की आयात्, बेलबूटों, विकोण फूल पतियों के चित्रों से अलंकृत करवाया।
इस काल की स्थापत्य कला इण्डो इस्लामी स्थापत्य कला कहीं जाती है क्योंकि इस काल की हिन्दू इमारतों में मुस्लिम कला का प्रभाव तथा मुस्लिम इमारतों में भारतीय स्थापत्य कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।