सल्तनत कालीन प्रशासनिक व्यवस्था- सल्तनत कालीन प्रशासनिक व्यवस्था को हम निम्न भागों में विभाजित कर सकते हैं-
(अ) सल्तनत कालीन केन्द्रीय प्रशासन
सल्तनत कालीन केन्द्रीय मंत्रिमण्डल का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
(1) सुल्तान
केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में सुल्तान का पद सर्वोच्च होता था। वह निरंकुश और सर्वशक्तिमान होता था उसे सभी प्रशासनिक, सैनिक और धार्मिक अधिकार प्राप्त थे। ” सुल्तान का कार्य साम्राज्य में शान्ति स्थापना, प्रजा की रक्षा करना, न्याय करना, प्रजा की सुख सुविधाओं का ध्यान रखना और धर्मानुसार आचरण करना था। उपरोक्त कार्यों को करने हेतु सुल्तान के पास अनेक राजकीय पदाधिकारी होते थे। जिनके अपने पृथक विभाग होते थे।
(2) दीवान-ए-विजारत
केन्द्रीय प्रशासन का प्रमुख विभाग दीवान-ए-विजारत होता था, जिसका अध्यक्ष वजीर कहलाता था, मुस्लिम राजनीतिक विचारधारा ने वजीर के पद को अत्यधिक महत्व प्रदान किया है। वह सुल्तान व उसकी प्रजा के बीच की कड़ी का काम करता था वजीर का पद ऐसा था कि सुल्तान व उसमें तालमेल होना आवश्यक होता था। सुल्तान से पूर्ण सहयोग व प्रतिष्ठा देते थे। किन्तु जब सुल्तान व वजीर के बीच मतभेद उत्पन्न हो जाता था तो राजनीतिक संकट उपस्थित हो जाता था। सुल्तान सदैव ऐसे व्यक्तियों को अपना वजीर नियुक्त करता था, जिसे प्रशासन की बारीकियों का ज्ञान हो, जो सौम्य, उदार, अनुशासनप्रिय, साहसी, बुद्धिमान, दूरदर्शी व कर्तव्यनिष्ठ तथा मृदुभाषी होता था। वजीर की सहायता के लिए नायाब ए वजीर, मुशरिक-ए-ममालिक व मुस्तौफी-ए-ममालिक तथा अनेक कर्मचारी होते थे, मुशरिक-ए-ममालिक लेखा विभाग देखता था व मुस्तौफी-ए-ममालिक लेखा परीक्षक होता था। इल्तुतमिश के काल में वजीर को राजस्व व्यवस्था के अलावा सैन्य अभियान के अधिकार थे।
(3) दीवान-ए-इंशा
यह एक प्रकार का लेखा विभाग था जो कि शाही फरमान पत्र इत्यादि तैयार करता था, इस विभाग का अध्यक्ष दबीर-ए-खास होता था जिसकी सहायता के लिए कुशल दबीर होते थे जो पत्र लेखन कला व शैली में प्रवीण होते थे। सुल्तान के सभी पत्र व आदेश जो कि अन्य राज्यों के शासकों, अधीनस्थ राज्यों, अधिकारियों आदि को भेजे जाते थे, इसी विभाग में तैयार किये जाते थे। वह विभाग गुप्त रूप से वजीर व अन्य अधिकारियों के सम्बन्ध में सूचनायें भी एकत्र करता था। इस प्रकार यह एक महत्वपूर्ण विभाग था।
(4) दीवाने-ए-आरिज
यह सैन्य विभाग था इसका अध्यक्ष आरिज-ए-मुमालिक कहलाता था। इसका प्रमुख कार्य था सेनापतियों एवंम सैनिकों की भर्ती, युद्ध में सेना की तैयारी घोड़ों, हाथियों एवम अस्त्र शस्त्रों की व्यवस्था एवं सेना का निरीक्षण आदि।
(5) मजलिस-ए-खलबत
यह विभाग सुल्तान को महत्वपूर्ण विषयों में परामर्श के लिए होता था। इसमें कुछ विशेष पदाधिकारी, सुल्तान के कुछ विश्वास पात्र लोग और उलेमा होते थे।
(6) दीवाने रिसालत
इस विभाग के विषय में विद्वानों में मतभेद है कुछ इसे धार्मिक मामलों से सम्बन्धित मानते हैं जबकि कुछ इसे विदेश विभाग मानते हैं।
(7) दीवान-ए-कोही (कृषि विभाग )
मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि में नवीन प्रयोग करने के लिए दीवान-ए-कोही या कृषि विभाग की स्थापना की थी। इस विभाग में दीवान- ए-अमीर कोही की मदद के लिए बहुत से पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई।
(8) दीवाने मुस्तखराज
यह विभाग बकाया कर वसूल करने वाला विभाग था। किसानों आदि पर राज्य का जो कर बकाया रहता था उन करों को वसूल करना इस विभाग का कार्य था।.
(9) दीवाने-ए-खैरात
इस विभाग की स्थापना फिरोजशाह तुगलक के काल में हुई इसका मुख्य कार्य गरीब लड़कियों के विवाह के लिए मुसलमान माता-पिता को वित्तीय सहायत देना था।
(10) दीवाने बन्दगान अथवा दास विभाग
इस विभाग की स्थापना दासों की बढ़ती हु संख्या को देखकर की गई। फीरोज शाह तुगलक ने दासों को कार्य दिलाने की ओर ध्यान दिया। उसने दासों को उपयुक्त प्रशिक्षण देने व उसके कार्यों व योग्यतानुसार वेतन, भोजन, वस्व देने बी व्यवस्था की। इस विभाग के प्रमुख अधिकारी चौश-ए-धूरी तथा दीवान हुआ करते थे। इस विभाग के लिए पृथक राजकोष होता था और एक पृथक मजमुआदार भी होता था।
(11) दीवाने
बरीद या गुप्तचर विभाग केन्द्रीय प्रशासन में एक अन्य महत्वपूर्ण विर गुप्तचर विभाग होता था जो कि सुल्तान को विभिन्न प्रकार की सूचनायें व खबरें दिया करता था, इस विभाग का अध्यक्ष बरीद-ए-मुमालिक होता था। वह राज्य में होने वाली घटनाओं तथा अमीरों व अधिकारियों के बारे में सूचनायें एकत्र करता था और सुल्तान को उससे अवगत कराता था। इसके अन्तर्गत राज्य की सभी प्रशासनिक इकाइयों में बरीद (गुप्तचर) रहते थे जो उसे बराबर खबरें भेजते रहते थे। अत्यन्त योग्य व निष्ठावान लोगों को ही बरीद के पद पर नियुक्त किया जाता था। यदि वे किसी अपराध की सही सूचना या अधिकारियों की क्रूरता व विद्रोहात्मक रूख की सही सूचना नहीं देते थे उन्हें दण्डित भी किया जाता था।
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(ब) प्रान्तीय अथवा इक्ताओं का प्रशासन
शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए साम्राज्य को इक्ताओं (प्रान्तों) में विभक्त किया गया था। इक्ता अथवा प्रान्त के प्रधान को मुक्ती, वली अथवा नाइब सुल्तान कहा जाता था। मुक्ती आन्तरिक मामलों में स्वतन्त्र होते थे। उन्हें प्रान्त में वही अधिकार प्राप्त थे जो केन्द्र में सुल्तान को होते थे। मुक्ती का कार्य लगान की वसूली करना और प्रान्त में शान्ति स्थापित करना था। मुक्ती सुल्तान को आय व्यय का ब्योरा देते थे और शेष लगान (कर) सुल्तान के पास भेजते थे। मुक्ती भी अपने प्रान्त में सैन्य व्यवस्था बनाये रखते थे और आवश्यकता पड़ने पर सुल्तान की सहायता करते थे। मुक्ती के नीचे प्रान्तों में भी अनेक अधिकारी होते थे जो मुक्ती की शासन व्यवस्था में सहायता करते थे।
(स) स्थानीय प्रशासन व्यवस्था
सल्तनत काल में इक्ताओं (प्रान्तों) को शिकों (जिलों) में विभाजित किया गया था जिसका शासन शिकदार के हाथों में होता था। शिकदार के नीचे आमित था जो परगना का शासन देखता था। गाँव सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई थी। परगने के प्रबन्ध का कार्य चौधरी करता था। जबकि गाँव का प्रबन्ध मुकद्दम के हाथों में होता था।