सल्तनत काल में हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ – अरबी, फारसी और संस्कृत के अतिरिक्त हिंदी, उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचनाएँ हुई। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में खड़ी बोली और ब्रजभाषा हिंदी के विकास का आधार बनी। हिंदी-साहित्य कथानक और विषयवस्तु के आधार पर रासो साहित्य, सिद्ध साहित्य, जैनसाहित्य, नाथ साहित्य, लौकिक एवं गद्य साहित्य में विभक्त किया गया है। रात्री साहित्य की प्रसिद्ध कृतियाँ हैं- पृथ्वीराजरासो, खुमाणरासो, परमालरासो, बीसलदेवरासो इत्यादि । हम्मीरकाव्य और अलाहखंड भी वीर रस से सम्बद्ध रचनाएँ हैं मैथिली के सबसे बड़े विद्वान और कवि विद्यापति हुए। भक्ति आंदोलन के नेताओं ने हिंदी, उर्दू, खड़ी बोली एवं प्रांतीय भाषाओं में अनेक छंदों, लोकोक्तियों एवं पदों की रचना की।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थलों के नाम लिखिये।
बंगला भाषा एवं साहित्य के विकास में चंडीदास, नरहरि सरकार, माणिक दत्त आदि का मूल्यवान योगदान है। इसी काल में बंगला में रामायण और महाभारत का अनुवाद हुआ। इसी प्रकार, अवधी, राजस्थानी, सिंधी, पंजाबी, कश्मीरी, उड़िया, असमिया, गुजराती एवं दक्षिणभारतीय भाषाओं में भी अनेक मौलिक रचनाएँ लिखी गई।