सैन्धव सभ्यता में योगिक तत्व तत्वों की प्रधानता थी। इसकी पुष्टि उत्खनन से प्राप्त कुछ साक्ष्यों से होती है। उत्खनन से प्राप्त एक मोहर (सील) पर तीन मुखों वाले एक देवता का चित्र उत्कीर्ण है। उसके प्रत्येक मुख पर तीन-तीन आँखें दर्शायी गयी है तथा यह देवता पशुओं से घिरे हुए एक साधारण से भारतीय मंच पर योगी की मुद्रा में आसीन हैं। विद्वानों ने इस चित्र को ‘ऐतिहासिक शिव का योगिराज स्वरूप’ माना है। योगी की आकृति के सिर पर सींग भी है, जिससे पता चलता है कि यह किसी देवता का चित्र है। इस चित्र के चारों ओर पशुओं की उपस्थिति शिव के ‘पशुपति‘ नाम को सार्थक सिद्ध करती है। इस प्रकार सिन्धु घाटी में विभिन्न स्थानों की खुदाई से जो हमें साक्ष्य प्राप्त हुए है उससे हमें ज्ञात होता है कि संधिव सभ्यता में यौगिक तत्वों की प्रधानता थी।