सैन्धव सभ्यता में मातृ-देवी – सिन्धु घाटी के निवासी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे मूर्ति पूजा के साथ-साथ अन्य अनेक चीजो की भी पूजा करते थे परन्तु उनके धार्मिक जीवन में सबसे अधिक महत्व मातृदेवी का था। सिन्धु घाटी के उत्खनन में प्राप्त अनेक प्रकार की नारी की मूर्तियों से विदित होता है कि सिन्धु समाज में मातृदेवी की उपासना की जाती थी। सिन्धु समाज में मातृदेवी को कई रूपों में प्रदर्शित किया गया है। नारी की कुछ ऐसी मूर्तियाँ प्राप्त हुई है जो शिशु को स्तनपान करा रही है। यह मातृदेवी को कई रूपों में प्रदर्शित किया गया है।
नारी की कुछ ऐसी मूर्तियाँ प्राप्त हुई है जो शिशु को स्तनपान करा रही है। यह जननी का देवीकरण था। इसी तरह की नारी की एक मूर्ति के गर्भ से वृक्ष निकलता हुआ दिखाया गया है। यह वनस्पति जगत के सृष्टि करण का प्रतीक थी। मानवीय जगत एवं वनस्पति जगत की भाँति पाश्विक जगत के ऊपर भी मातृदेवी का आधिपत्य था। पाश्विक जगत से सम्बन्धित एवं नारी की मूर्ति जो कि मोहनजोदड़ों से प्राप्त हुई है। इस मूर्ति के सिर पर पक्षी पंख फैलाये बैठा है। इस प्रकार मातृदेवी की पूजा का सैन्धव निवासियों में अत्यधिक महत्व था ।
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