सभ्यता संस्कृति का पर्यावरण – सभ्यता और संस्कृति इस कारण भी एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं कि जैसे-जैसे सभ्यता में विकास होता है, हमारी संस्कृति भी अधिक उपयोगी बनने लगती है। उदाहरण के लिए, सभ्यता के रूप में जब बैलगाड़ी परिवहन का मुख्य साधन थी, हथकरघों के द्वारा कपड़े बुने जाते थे तथा हल-बैल के द्वारा भूमि की जुताई की जाती थी, तब संस्कृति का रूप भी बहुत परम्परागत था। उस समय सभी प्रथाएँ लोकाचार, विश्वास और नैतिक नियम प्राकृतिक विश्वासों पर आधारित थे। इसके बाद जैसे-जैसे औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा नए-नए आविष्कारों में वृद्धि होती गयी, हम संस्कृति के उन तत्वों को रूढ़ियों, मिथ्याचार और पाखण्ड मानने लगे जिन्हें कुछ समय पहले तक समाज के आदर्श नियमों के रूप में देखा जाता था। इसका तात्पर्य यह है कि संस्कृति की प्रकृति किस तरह की होगी, इसका निर्धारण एक बड़ी सीमा तक सभ्यता की विशेषताओं से ही होता है।
आज एक नयी संस्कृति के रूप में समताकारी मूल्यों का महत्व बढ़ा है, धार्मिक कट्टरता को अच्छा नहीं समझा जाता तथा विवाह, परिवार, नैतिकता और प्रथाओं के बारे में हमारे विचार अधिक तार्किक एवं उदार बनने लगे हैं। यह परिवर्तन सभ्यता की प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का ही परिणाम है।