सात्मीकरण को प्रोत्साहन देने वाली दशा
विभिन्न समूहों के बीच सात्मीकरण की प्रक्रिया समान रूप से कार्य नहीं करती। किसी समाज में थोड़े समय में ही सात्मीकरण बहुत अधिक हो जाता है, जबकि कुछ समाजों में सैकड़ों वर्षों के बाद भी विभिन्न समूहों की मनोवृत्तियाँ और विचार एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न बने रहते हैं। इसका कारण कुछ ऐसी दशाएँ हैं जो सात्मीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देने में सहायक होती हैं। यदि ये दशाएँ समाज में विद्यमान न हों तो सात्मीकरण की प्रक्रिया क्रियाशील नहीं हो पाती
(1 ) सहिष्णुता
सात्मीकरण के लिए व्यक्तियों में सहिष्णुता होनी सबसे अधिक आवश्यक है। यही गुण व्यक्तियों को दूसरों की विशेषताओं को सहानुभूति से समझने और हठवादिता को छोड़ने की आदत प्रदान करता है। इसके फलस्वरूप सभी समूह एक-दूसरे की। सामाजिक व सांस्कृतिक विशेषताओं को समझकर उन्हें ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं।
(2) सामाजिक सम्पर्क
सात्मीकरण की प्रक्रिया तब तक कार्य नहीं कर सकती जब तक दो या दो से अधिक समूह एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में न आएँ। निकट सम्पर्क के कारण ही उनके बीच सामाजिक सम्बन्ध बढ़ते हैं और जैसे-जैसे विभिन्न समूहों के बीच अन्तर्क्रियाओं में वृद्धि होती है, सात्मीकरण को भी प्रोत्साहन मिलने लगता है। इसका तात्पर्य है। कि एक-दूसरे से सदैव दूर रहने वाले समूह सात्मीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत नहीं आ सकते।
(3) आर्थिक तथा सांस्कृतिक
दशाओं में समानता जिन समूहों की आर्थिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ एक-दूसरे के लगभग समान होती हैं, उनके बीच सात्मीकरण की प्रक्रिया सरलता से विकसित हो जाती है। समाज में यदि एक समूह बहुत धनी और दूसरा बहुत निर्धन हो अथवा एक ही संस्कृति बहुत विकसित और दूसरे की बहुत पिछड़ी हुई हो तो उनके बीच सात्मीकरण की सम्भावना नहीं की जा सकती।
(4) प्रजातीय मिश्रण
सात्मीकरण की प्रक्रिया उन समाजों में सबसे कम देखने को मिलती है जहाँ विभिन्न प्रजातियों का मिश्रण बहुत कम हुआ हो। इसका कारण यह है कि ऐसे समाजों में प्रत्येक समूह अपने को प्रजातीय रूप से बहुत विशुद्ध समझकर स्वयं को दूसरे समूहों से दूर रखने का प्रयत्न करते हैं। इसके विपरीत, जिन स्थानों में अनेक प्रजातियों के लोगों के बीच काफी मिश्रण हो जाता है, वहाँ व्यक्ति दूसरे समूह के गुणों को अपनाने के हर सम्भव प्रयत्न करते हैं। इसके फलस्वरूप सात्मीकरण की प्रक्रिया जल्दी ही क्रियाशील हो जाती है।
( 5 ) संस्कृतिकरण
संस्कृतिकरण एक ऐसी स्थिति है जिसमें दो समूहों की संस्कृतियों में इतना अधिक मिश्रण हो जाता है कि किसी भी समूह की संस्कृति को दूसरे से पूर्णतया पृथक् न किया जा सके। यह स्थिति सात्मीकरण की पूर्ण दशा है। उदाहरण के लिए, हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों में संस्कृतिकरण हो जाने के कारण ही इन दोनों के बीच सात्मीकरण की प्रक्रिया को इतमा प्रोत्साहन मिल सका। दूसरी ओर, फिलिस्तीन में यहूदियों और ईसाईयों की संस्कृति एक दूसरे से सदैव पृथक् रहने के कारण सैकड़ों वर्षों के बाद भी उनके बीच सात्मीकरण की प्रक्रिया उत्पन्न नहीं हो सकी।
( 6 ) परिवहन और संचार के उन्नत साधन
परिवहन और संचार के उन्नत साधन विभिन्न समूहों को एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आने का अवसर प्रदान करते हैं। इसके फलस्वरूप विभिन्न समूहों के विचारों, भावनाओं और मनोवृत्तियों में समानता आ जाने की सम्भावना हो जाती है। इसी प्रकार परिवहन और संचार सामाजिक सम्पर्क को प्रोत्साहन देकर सात्मीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि करते हैं।
( 7 ) समान समस्याएँ
यदि विभिन्न समूहों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याएँ एक-दूसरे के बहुत कुछ समान होती हैं तो सात्मीकरण की प्रक्रिया जल्दी ही क्रियाशील हो जाती है। समान समस्याओं से समान मनोवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है और समान मनोवृत्तियाँ एक मानसिक एकता को जन्म देती है। विभिन्न समाजों में यह दशा सात्मीकरण के सलिए अत्यधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं।
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इस प्रकार, स्पष्ट होता है कि सामाजिक एकीकरण की दशा में सात्मीकरण सबसे प्रभावपूर्ण प्रक्रिया है। आज सरकार, कल्याण संगठनों तथा स्वयंसेवी समितियों का प्रमुख उद्देश्य सात्मीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि करके सामाजिक संगठन को सुदृढ़ बनाना ही होता है।
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