सामाजिक समझौते का सिद्धान्त-हॉब्स ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार समाज के जन्म से पहले मनुष्यों की दशा बहुत खराब थी। ये एक भूखे भेड़िये की तरह थे। उसके जीवन में कोई साथी नहीं था। वह गरीब और दुःखी था। उसका जीवन बहुत कम था।
हॉब्स के अनुसार, “मनुष्य का जीवन एकाकी, होन, घृणास्पद, जंगली एवं अल्पकालीन था।” मनुष्य ऐसी स्थिति में अधिक समय नहीं रह सकता था। उसने सुरक्षा, शांति और समृद्धि के लिए आपस में समझौता करना आवश्यक समझा। यहीं से समाज का जन्म हुआ। इस प्रकार मनुष्यों द्वारा बना हुआ एक संगठन है। मनुष्य ने समाज को बनाया और अपने सब अधिकार समाज को दे दिये।
भारतीय समाज के दार्शनिक आधार की विवेचना कीजिए।
इस सिद्धान्त पर टिप्पणी करते हुए मैकाइवर ने लिखा है कि-“इस प्रकार के सिद्धान्त समाज को व्यक्तियों के बीच में या व्यक्तियों और समाज के बीच किये गये किसी मौलिक समझौते पर आधारित मानते हैं।” इस सिद्धान्त के अनुयायियों का यह कहना है कि व्यक्ति ने समान से अपनी सुरक्षा चाही।