सामाजिक प्रतिमान का अर्थ तथा विशेषताएँ
समाज विज्ञानों में प्रतिमान (Nome) शब्द का प्रयोग काफी नया है। वास्तव में, अंग्रेजी का शब्द (Norm) लैटिन भाषा के शब्द (Nome) से बना है जिसका अर्थ है ‘बढ़ई का पैमाना या रूल। इसका तात्पर्य है कि जिस तरह बढ़ई अपने पैमाने की सहायता से ही विभिन्न आकार की लकड़ियाँ बनाकर उनसे विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करता है, उसी तरह सामाजिक जीवन में व्यक्ति द्वारा अपने सामाजिक प्रतिमानों के पालन से ही इस बात का निर्धारण किया जाता है कि कोई व्यक्ति कितना कम या अधिक सामाजिक है। दूसरे शब्दों में, प्रतिमान समाज में रहने और व्यवहार करने के नियम हैं। सामाजिक प्रतिमान ही किसी समाज की सामाजिक संरचना की प्रकृति को स्पष्ट करते हैं तथा सामाजिक संरचना को संतुलित बनाये रखते हैं। सामाजिक प्रतिमानों की प्रकृति को कुछ प्रमुख परिभाषाओं की सहायता से निम्न प्रकार समझा जा सकता है
किंग्सले डेविस के अनुसार, “सामाजिक प्रतिमान एक प्रकार के नियंत्रण है। इनके माध्यम से समाज अपने सदस्यों के व्यवहारों को इस तरह नियंत्रित रखता है। कि वह अपनी जैविकीय इच्छाओं को दबाकर सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न क्रियाएँ करें।” इस प्रकार जन्मजात प्रेरणाओं के प्रभाव को कम करके पारस्परिक सहयोग को बढ़ाना और सामाजिक जीवन को नियमबद्ध बनाये रखना ही सामाजिक प्रतिमानों का मुख्य उद्देश्य होता है।
बीरस्टीड ने सामाजिक प्रतिमान को परिभाषित करते हुए लिखा है, “सामाजिक प्रतिमान एक प्रमाणित कार्य प्रणाली है, यह किसी कार्य को करने का एक ऐसा तरीका है जो समाज द्वारा स्वीकृत होता है।” बीरस्टीड ने आगे लिखा है, “सामाजिक प्रतिमान वे आदर्श नियम हैं जो एक विशेष परिस्थिति में हमारे आचरण का रूप निर्धारित करते हैं। यह एक सामाजिक प्रत्याशा है जो हमसे एक विशेष प्रकार के व्यवहार की आशा रखती है। सामाजिक प्रतिमान एक विशेष तरह के सांस्कृतिक निर्देश है जो समाज में हमारे व्यवहारों को व्यवस्थित बनाते हैं। यह कार्यों को पूरा करने का एक तरीका है जिसे स्वयं हमारे समाज द्वारा निर्धारित किया जाता है।”
वुड्स के शब्दों में, “सामाजिक प्रतिमान का तात्पर्य उन नियमों से है जो सांस्कृतिक आधार पर मानव व्यवहारों को नियंत्रित करते हैं, सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में सहयोग देते हैं तथा किसी विशेष दशा में व्यक्ति के व्यवहारों का पूर्वानुमान करने में सहायक होते हैं।”
एक समाज के सभी लोग जब समान प्रतिमानों के अनुसार आचरण करते हैं तो उनके व्यवहारों को समझना सरल हो जाता है। इसी आधार पर किम्बाल यंग ने लिखा है कि “सामाजिक प्रतिमान व्यक्ति के प्रति समूह की प्रत्याशाएँ हैं।”
इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामाजिक प्रतिमान का तात्पर्य उन सभी सामाजिक और सांस्कृतिक मानदण्डों से है जो समाज के नियमों के अनुसार व्यक्ति के व्यवहारों को प्रभावित करते हैं।
विशेषतायें
(1) सामाजिक प्रतिमान का तात्पर्य व्यवहार के उन नियमों से है जिन्हें सम्पूर्ण समूह की स्वीकृति मिली होती है।
(2) सामाजिक प्रतिमानों में नैतिकता की भावना का समावेश होता है। किसी सामाजिक प्रतिमान की अवहेलना करने पर व्यक्ति को कोई औपचारिक दण्ड नहीं दिया जाता है, लेकिन व्यक्ति अपने समाज के प्रतिमानों का पालन करना अपना नैतिक दायित्व मानते हैं।
(3) सामाजिक प्रतिमानों विकास एक लम्बी अवधि में होता है। व्यवहार का कोई तरीका जब अनेक पीढ़ियों तक उपयोगी माना जाता रहा हैं, तभी उसे एक सामाजिक प्रतिमान का रूप मिल पाता है।
(4) प्रत्येक सामाजिक प्रतिमान अनेक उप-नियमों में विभाजित होता है। उदाहरण के लिए प्रथा एक सामाजिक प्रतिमान है, लेकिन एक ही समूह में प्रथाओं की संख्या और उनसे सम्बन्धित व्यवहार के तरीके काफी अधिक हो सकते हैं तथा व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि वह अपने समूह की सभी प्रथाओं का पालन करें।
(5) सामाजिक प्रतिमानों की प्रकृति परम्परावादी होती है, क्योंकि सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन हुए बिना इनमें किसी तरह के परिवर्तन की अनुमति नहीं दी जाती।
(6) सामाजिक प्रतिमान व्यवहार के सरल तरीके हैं इनसे सम्बन्धित नियमों का पालन करने के लिए किसी विशेष प्रयत्न या बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती। साधारणतया व्यक्ति एक आदत के रूप में अपने सामाजिक प्रतिमानों के अनुसार व्यवहार करते रहते हैं।
(7) विभिन्न संस्कृतियों में सामाजिक प्रतिमानों की प्रकृति एक-दूसरे से कुछ भिन्न होती हैं। इसका कारण विभिन्न स्थानों अथवा समाजों की भौतिक परिस्थितियों और आवश्यकताओं में कुछ भिन्नता होना है। यही कारण है कि किसी समाज में बहुपत्नी विवाह एक सामाजिक प्रतिमान है तो दूसरे समाज में इसे एक अपराध के रूप में देखा जाता है। विभिन्न संस्कृतियों में एक ही प्रतिमान का पालन करने के तरीके भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, स्त्रियों और वृद्धों का सम्मान करना एक विशेष प्रतिमान है लेकिन विभिन्न समूहों में सम्मान देने का तरीका एक-दूसरे से भिन्न हो सकता है।
(8) अधिकांश सामाजिक प्रतिमान मौखिक रूप से सामाजिक सीख के द्वारा एक पीढ़ी से आगामी पीढ़ियों को हस्तांतरित होते रहते हैं। कुछ सामाजिक प्रतिमान लिखित भी होते हैं, लेकिन तुलनात्मक रूप से ऐसे प्रतिमानों की संख्या बहुत कम होती है।
(9) सामाजिक प्रतिमानों में उपयोगिता का समावेश होता है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक सामाजिक प्रतिमान समूह के सदस्यों की किसी-न-किसी आवश्यकता को पूरा करता है।
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(10) सामाजिक प्रतिमानों का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। हमारे जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं होता जो किसी-न-किसी प्रतिमान के द्वारा प्रभावित न होता हो। परिवार, पड़ोस, खेल के मैदान, कक्षा, विवाह, कार्यालय, धर्म, राजनीति, क्लब तथा आर्थिक जीवन से सम्बन्धित प्रत्येक व्यवहार किसी-न-किसी प्रतिमान के द्वारा नियमित किया जाता है। यहाँ तक कि खाने-पीने, उठने-बैठने, आदर-सत्कार करने, लिखने, बोलने, स्वागत करने और विदाई देने के भी अपने कुछ प्रतिमान होते हैं। इससे पुनः यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक प्रतिमान जीवन के सभी क्षेत्रों में व्यवहार करने के मान्यता प्राप्त तरीके हैं तथा जो व्यक्ति अपने सामाजिक प्रतिमानों का जितना अधिक पालन करता है, उसका व्यक्तित्व उतना ही अधिक सामाजिक समझा जाता है।
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