सामाजिक गतिशीलता का अर्थ
सामाजिक गतिशीलता की अवधारणा को सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है। सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य उन परिवर्तनों से है जो सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संरचना तथा सामाजिक संस्थाओं और मूल्यों में उत्पन्न होते हैं। इसके विपरीत, सामाजिक गतिशीलता को परिभाषित करते हुए सोरोकिन ने लिखा है, “सामाजिक गतिशीलता का अर्थ एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में किसी व्यक्ति, सामाजिक तथ्य अथवा सामाजिक मूल्य का संक्रमण होना है। “
इससे स्पष्ट होता है कि सामाजिक गतिशीलता का सम्बन्ध मुख्य रूप से दो दशाओं में होने वाले परिवर्तन से है- 1. विभिन्न व्यक्तियों अथवा समूहों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन होना तथा (2) विभिन्न दशाओं के प्रभाव से सामाजिक मूल्यों में इस तरह परिवर्तन हो जाना जिससे व्यक्तियों की प्रस्थिति में परिवर्तन होने लगे। उदाहरण के लिए, भारत में निम्न जातियों, स्त्रियों तथा श्रमिकों की सामाजिक और आर्थिक प्रस्थिति में होने वाला सुधार पहली दशा को स्पष्ट करता है। दूसरी दशा को औद्योगिक विकास के सन्दर्भ में समझा जा सकता है। इसे स्पष्ट करते। हुए डेनिस चैपमैन ने लिखा है कि औद्योगीकरण का विकास होने से समाज में एक नया ऐसा संस्तरण विकसित हुआ जिसमें, सम्पत्ति, शिक्षा, व्यक्तिगत योग्यता तथा आर्थिक शक्ति के आधार पर व्यक्ति को समाज में एक नई प्रस्थिति तथा सम्मान प्राप्त होने लगा। इसके फलस्वरूप परम्परागत रूप से जिन लोगों को सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में अधिक शक्तियाँ मिली हुई थीं, उनमें बहुत कमी हो गई तथा यह शक्तियाँ उन लोगों को प्राप्त होने लगी जो कुछ समय पहले तक सामाजिक और आर्थिक अधिकारों से वंचित थे।
हार्टन तथा हन्ट ने सोरोकिन के विचारों का ही समर्थन करते हुए लिखा है, “सामाजिक गतिशीलता का अर्थ व्यक्तियों का पहले की तुलना में उच्च या निम्न सामाजिक प्रस्थितियों में गमन करता है।” इससे यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक गतिशीलता वह दशा है। जिसमें विभिन्न व्यक्तियों या समूहों की प्रस्थिति पहले की तुलना में ऊंची या नीची हो जाती है।
फिचर के शब्दों में, “सामाजिक गतिशीलता किसी व्यक्ति, समूह या श्रेणी द्वारा एक सामाजिक पद या प्रस्थिति समूह से दूसरे में प्रवेश करना है।”
प्रोफेसर पीटर ने लिखा है, “एक समाज के अन्तर्गत विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के जीवन में होने वाली प्रस्थिति, व्यवसाय तथा निवास स्थान सम्बन्धी परिवर्तन को ही सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है।”
विशेषताएँ
उपर्युक्त परिभाषाओं से सामाजिक गतिशीलता की चार प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
- (1) सामाजिक गतिशीलता वह दशा है जिसमें कुछ व्यक्तियों या समूहों की प्रस्थिति में परिवर्तन हो जाता है
- (2) प्रस्थिति में होने वाला यह परिवर्तन एक विशेष सामाजिक संरचना के अन्तर्गत ही होता है
- (3) सामाजिक गतिशीलता की कोई निश्चित दिशा नहीं होती, यह ऊपर या नीचे की ओर होने के साथ कभी-2 समानांतर प्रकृति की भी हो सकती है। एक श्रमिक द्वारा चुनाव जीतकर मंत्री बन जाना ऊपर की ओर होने वाला परिवर्तन है, जबकि किसी उद्योगपति या नेता की आर्थिक या राजनीतिक शक्ति समाप्त हो जाने के कारण उसका जीवन सामान्य नागरिक के रूप में बदल जाना नीचे की ओर और होने वाले परिवर्तन को स्पष्ट करता है। समानांतर परिवर्तन वह है जब किसी व्यक्ति द्वारा एक व्यवसाय को छोड़कर दूसरे व्यवसाय में जाने के बाद भी उसकी सामाजिक तथा आर्थिक प्रस्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता
- (4) एक बन्द सामाजिक संरचना वाले समाजों की तुलना में खुली सामाजिक संरचना वाले समाजों में सामाजिक गतिशीलता अधिक पायी जाती है।
यूजीसी की स्थापना, संगठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
यदि हम भारत का उदाहरण लें तो स्पष्ट होता है कि यहाँ लोकतंत्र की स्थापना के बाद जब निम्न जातियों की निर्योग्यताओं को समाप्त करके उन्हें विकास के विभिन्न अवसर दिये जाने लगे तो उनकी परम्परागत प्रस्थिति में व्यापक सुधार हो गया। दूसरी ओर जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो जाने से जमींदार वर्ग का बड़ा हिस्सा अपने भरण-पोषण तक की सुविधाएँ पाने से भी वंचित हो गया तथा उसकी सामाजिक-आर्थिक प्रस्थिति बहुत निम्न हो गई। परिवहन के साधनों का विकास होने से बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने स्थान परिवर्तन करना आरम्भ किया, यद्यपि इनमें से अधिकांश लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक प्रस्थिति पहले के ही समान बनी रही।
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