रूसो की सामान्य इच्छा हॉब्स की शीर्षविहीन विद्याधन है। विवेचना कीजिये।

0
19

रूसो की सामान्य इच्छा हॉब्स की शीर्षविहीन रूसो की सामान्य इच्छा के प्रतिपादन का उद्देश्य तो जनता के अधिकारों की रक्षा है। लेकिन यह धारणा व्यवहार में निरंकुश और अत्याचारी राज्य का पोषक भी बन सकती है। एक विशेष समय पर सामान्य इच्छा क्या है यह निश्चित करने की शक्ति रूसो शासक को सौंप देता है तथा यदि शासक दुराचारी है तो वह अपने स्वार्थ को ही सामान्य इच्छा का रूप दे सकता है। इसके अतिरिक्त रूसो के सिद्धान्त में जनता द्वारा अपने समस्त अधिकारों का समर्पण कर दिया गया है और जनता को किसी भी परिस्थिति में राज्य के विरोध का अधिकार नहीं है। इस संदर्भ में जोन्स का कथन है,

सर्वोच्च न्यायालय का कार्यकाल वर्णन कीजिए ।

“रूसो के सामान्य इच्छा विषयक सिद्धान्त में कुछ ऐसे अस्थिर तत्त्व हैं जो उसे जनतंत्र के समर्थन से हटाकर निरंकुश शासन के समर्थन की ओर ले जाते हैं।” जबकि एडाइड का कहना है कि, “रूसो सामान्य इच्छा की ओट में बहुमत की निरंकुशता का प्रतिपादन तथा समर्थन करता है।” वाहन ने तो यहाँ तक कहा है, “रूसो ने अपने समष्टिवादी विचारधारा से व्यक्ति को शून्य बना दिया है।”

इस संदर्भ में एक लेखक ने कहा है, “रूसो की सामान्य इच्छा हॉब्स की शीर्षविहीन लेवियायन है।” रसेल, आइवर, ब्राउन और मुरे ने भी रूसो की विचारधारा पर निरंकुशवाद और अधिनायकवाद के पोषण का आरोप लगाया है।

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here