रूसो के सामाजिक समझौते का सिद्धान्त- रूसो के सामाजिक समझौते के सिद्धान्त को निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है-
(1 ) मानवीय स्वभाव
रूसो के विचार में- “मनुष्य मलाई चाहता है, परन्तु कभी-कभी वह बुराई भी करता है।” दूसरे शब्दों में- “मनुष्य स्वभावतः सुखी, परोपकारी, एकान्तप्रिय एवं शान्तिप्रेमी होता है, पाप, भ्रष्टाचार एवं दुष्टता आदि गलत एवं भ्रष्ट सामाजिक संस्थाओं की देन है। गलत कार्य मनुष्य अकेला नहीं करता।” सेबाइन के अनुसार- “रूसो ने आदिम मानव को पशु तुल्य, निष्पाप, निर्दोष और स्वाभाविक रूप से अच्छा माना है। वह सहज भावना के काम करने वाला बुद्धिहीन, नैतिकता के विचारों से रहित और सम्पत्ति शून्य था। मानवीय स्वभाव व उसकी सामाजिक स्थिति पर टिप्पणी करते हुए रूसो ने लिखा है कि व्यक्ति स्वतंत्र उत्पन्न हुआ। है, किन्तु सभी ओर वह जंजीरों से जकड़ा हुआ है।
(2) प्राकृतिक स्वभाव- रूसो के विचार में प्राकृतिक अवस्था का मनुष्य भला असभ्य जीव था, जो सरलता एवं स्वतंत्रता का जीवन जीता था। वह स्वार्थ की भावना से दूर, संतुष्ट, आत्मतृप्त, निर्भय एवं स्वस्थ था। प्रो० डनिंग के अनुसार- “प्राकृतिक मनुष्य एकाकी, भला, असभ्य जीव, पशुओं जैसा संतुष्ट और चिन्ता रहित जीवन व्यतीत करता था। उसका अनिश्चित निवास स्थान था। उसकी कोई ऐसी आवश्यकतायें और इच्छायें नहीं थीं, जिन्हें वह पूरा करने में असमर्थ हो।” इस प्रकार कहा जा सकता है कि रूसो की प्राकृतिक अवस्था हॉब्स एवं लॉक से भिन्न है। परन्तु यह आदर्श प्राकृतिक अवस्था जनसंख्या में वृद्धि एवं व्यक्तिगत सम्पत्ति के कारण दुःखमय हो गयी, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ उद्योग-धन्धों का विकास हुआ और श्रम विभाजन की समस्या सामने आयी। आर्थिक उन्नति से स्थायी विकास, परिवार एवं व्यक्तिगत सम्पत्ति का भी विकास हुआ। प्राकृतिक अवस्था की अवनति पर प्रकाश डालते हुये रूसो ने लिखा है कि- “वह प्रथम व्यक्ति ‘नागरिक समाज’ (राज्य) का जन्मदाता था, जिसने किसी जमीन के टुकड़े को घेर कर, सबसे पहले यह कहा कि यह मेरा है और जिसने दूसरों को इतना सीधा पाया कि उन्होंने उस व्यक्ति का विश्वास भी कर लिया।’
(3) सामाजिक समझौता
प्राकृतिक अवस्था की अवनति के बाद मानव के सामने यह प्रश्न आया कि वह शान्ति तथा सुख को पुनः कैसे स्थापित करे? उसका जीवन सामाजिक रूप से बहुत विकसित हो गया था। इस कारण प्राकृतिक अवस्था में जाना असम्भव था। परिणामतः उन्होंने आपसी समझौते द्वारा राज्य की स्थापना करने का विचार किया। रूसो के शब्दों में व्यक्तियों ने समझौते को इस प्रकार व्यक्त किया- “हममें से प्रत्येक अपने व्यक्तित्व एवं अपने समस्त अधिकारों के सामान्य प्रयोग के लिये, सामान्य इच्छा से सर्वोत्तम निर्देशन के अन्तर्गत एक समूह में केन्द्रित कर देता है तथा हममें से प्रत्येक व्यक्ति उस समूह (समाज) के अभित्र अंग के रूप में उनसे अपने व्यक्तित्व और अधिकतर प्राप्त कर लेता है।” रूसो ने आगे भी लिखा है कि- “समझौता करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तिगत व्यक्तित्व के स्थान पर समूह बनाने की इस प्रक्रिया में एकदम नैतिक तथा सामूहिक निकाय का जन्म होता है, जो कि उतने ही सदस्यों से मिलकर निर्मित है, जितने कि उसमें मत होते हैं। समुदाय बनाने के इस कार्य से ही निकाय को अपनी एकता, अपनी सामान्य सत्ता, अपना जीवन तथा अपनी इच्छा प्राप्त होती है। समस्त व्यक्तियों के संगठन से बने हुए इस सार्वजनिक व्यक्ति समूह को पहले ‘नगर’ कहते थे, अब उसे ‘गणराज्य’ या ‘राजनीतिक समाज कहते हैं। जब वह निष्क्रिय रहता है तो उसे राज्य कहते हैं और जब सक्रिय होता है तो उसे ‘सम्प्रभु’ कहते हैं।” इस समझौते की प्रमुख विशेषताओं को निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है-
- प्राकृतिक अवस्था से उत्पन्न दोषों को दूर करने के लिये समझौता अनिवार्य था।
- रूसो के अनुसार, “मनुष्य ने अपने अधिकारों का त्याग किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज के प्रति किया।”
- इसकी सम्प्रभु शक्ति समाज या सामान्य इच्छा में निहित है।
- इसके परिणामस्वरूप पूर्ण एकता की स्थापना हुई।
- इस सिद्धान्त में ‘सामान्य इच्छा का मौलिक सिद्धान्त’ प्रतिपादित किया गया है।
- व्यक्ति को इस समझौते से कोई हानि नहीं हुई, क्योंकि उसने एक हाथ से कुछ दिया, दूसरे हाथ से समाज के अभिन्न अंग के रूप में प्राप्त कर लिया।
- समझौता सिद्धान्त में राज्य का स्वरूप ‘सावयवी माना गया है। (viii) रूसो ने एक ही समझौते का उल्लेख किया है, जिसमें दो पक्ष है- एक ओर व्यक्ति और दूसरी ओर समाज।
रूस राष्ट्रवाद का उद्घोषक था।’ वर्णन कीजिए।
सामाजिक समझौते की आलोचना
विद्वानों ने रूसो के ‘समझौता सिद्धान्त’ की आलोचना इस प्रकार की है-
- रूसो द्वारा वर्णित प्राकृतिक अवस्था अनैतिहासिक एवं पूर्णतया काल्पनिक है।
- रूसी समझौते द्वारा राज्य की उत्पत्ति मानते हैं जो असत्य है।
- रूसो के विचार परस्पर विरोधी हैं, क्योंकि एक ओर जहाँ समझौता व्यक्ति और समाज के बीच होता है यहाँ दूसरी ओर समाज स्वयं समझौते का परिणाम है।
- विद्वानों के अनुसार ‘रूसो के भोले-भाले लोगों को समझौते का ख्याल कैसे आया?’ समझ में नहीं आता।
- रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त इतना काल्पनिक और स्पष्ट है कि अमान्य है।