रूस राष्ट्रवाद का उद्घोषक – रूसो ने समूह की एकता और दृढ़ता की भावनाओं पर बल देकर राष्ट्रभक्ति को एक आदर्श रूप दिया। रूस ने अपने सामान्य इच्छा के सिद्धान्त द्वारा राष्ट्रवाद के नैतिक पक्ष को पुष्ट किया। रूसो के प्रभाव की सबसे बड़ी यह विशेषता है कि उसके दर्शन में आधुनिककाल की सभी प्रमुख विचारधाराओं- समाजवाद, व्यक्तिवाद और अधिनायकवाद के बीज मिलते हैं। बार्कर ने उसे व्यक्तिवाद का प्राण माना है। जर्मन और ब्रिटिश आदर्शवाद का तो वह अग्रदूत ही है। फ्रांस की राज्य क्रान्ति का श्रेय भी रूसो के क्रान्तिकारी विचारों को जाता है। फ्रेंच क्रान्तिकारियों के बारे में बार्कर ने लिखा है कि, “रूसो ही उनकी बाइबिल है, उसे ही वे पढ़ते हैं, मनन करते हैं।” अमरीकन तथा अन्य संविधानों में आरम्भ के शब्द “हम लोग” रूसो की आवाज है।
स्विस संविधान के गणतंत्रवादी स्वरूप का वर्णन कीजिए।
कोल ने ठीक ही लिखा है, “रूसो की रचना ‘सोशल कान्ट्रेक्ट’ राजनीतिशास्त्र की एक सर्वोत्तम पाठ्य- पुस्तक है।” रूसो का उद्देश्य सत्ता और स्वतंत्रता का तालमेल स्थापित करना था। रूसो के बाद आने वाले तानाशाहों ने रूसो का दुरुपयोग किया, जिन्होंने जनता के हित की दुहाई देते हुए अनुशासन, शान्ति-व्यवस्था के नाम पर अपनी इच्छा को सामान्य इच्छा बताते हुए नागरिकों के अधिकारों को समेट कर अपनी शक्ति की भूख मिटाई।