रोजगार विश्लेषण की विधियों निम्नलिखित हैं
(1) वैयक्तिक मनोलेखन विधि
इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम व्यवसाय के तथाकथित सफल व्यक्तियों के गुणों की सूची बताई जाती है। सफल व्यक्ति के पारिवारिक इतिहास, व्यक्तिगत विकास, स्मृति, भाषा कुशलता आदि पर विचार करते हुए उसकी मानसिक प्रक्रियाओं तथा मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का विश्लेषण किया जाता है विश्लेषण की पूरी प्रक्रिया में साक्षात्कार, प्रेक्षपण तथा परीक्षण आदि का प्रयोग होता है तथा प्रमुख व्यक्तियों की विशेषताओं को चित्रित करने वाले मनोलेख निर्मित किए जाते हैं।
(2) प्रश्नावली विधि
व्यवसाय से सम्बन्धित कार्यो, दायित्वों एवं आवश्यकताओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रश्नावली विधि को सबसे अधिक उपयोगी समझा जाता है। कार्य-विश्लेषण हेतु प्रश्नावली विधि के प्रयोग का श्रेय उलरिच को दिया जाता है जिन्होंने अपनी प्रश्नावली को व्यक्ति कर्मचारियों के संगठनों तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण में लगे लोगों को दिया। इसके अन्तर्गत 121 व्यवसायों में कार्य करने वाले व्यक्ति का अध्ययन किया गया। इसमें पूछे गये प्रश्न इस प्रकार के थे
- क्या आपके व्यवसाय के लिए अमुक गुण या विशेषता आवश्यक या अनावश्यक हैं ?
- क्या अमुक गुण प्रायः यदा-कदा या बिल्कुल आवश्यक नहीं है।
- क्या अमुक गुण का परीक्षण के द्वारा अच्छी तरह बहुत कम, बिल्कुल नहीं विकसित किया जा सकता है।
(3 ) कार्य मनोलेखन विधि
व्यावसायिक योग्यताओं को वैज्ञानिक अध्ययन करने की दृष्टि से तीन बातों पर ध्यान देना पड़ता है। प्रथम, विशिष्ट मानसिक योग्यताओं का साधारण वर्गीकरण जिसमें मानकीकृत परीक्षाओं का प्रयोग होता है। द्वितीय, रेटिंग की मानक तकनीकी जिसमें कुछ विशेष बिन्दुओं पर रोजगार के लिए अपेक्षित गुणों का निर्धारण होता हैं। तृतीय प्रशिक्षित प्रेक्षपको द्वारा रोजगार में निहित क्रियाओं का प्रत्यक्ष रूप से जाँच जिसमें यह पूरी कोशिश होती है कि कार्य की क्रियाओं को विस्तृत विवरण प्राप्त कर लिया जाए।
(4) परीक्षण द्वारा कार्य विश्लेषण
विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए अपेक्षित मानसिक योग्यताओं का विश्लेषण प्रायः किया गया है। लिंक ने इस सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण परीक्षाओं का गठन किया है। परीक्षाओं के निर्माण से पूर्व उन्होंने कार्यों का विश्लेषण किया और ऐसे परीक्षणों का चयन किया जो कार्य से सम्बन्धित योग्यता का मापन करते थे।
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(5) क्रिया द्वारा कार्य-विश्लेषण
इसके अन्तर्गत व्यवसाय में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इस विधि का प्रयोग चार्टर्स तथा हिटले ने सचिवीय कार्यों में निहित विशेषताओं तथा उत्तरदायित्वों के विश्लेषण हेतु किया कुछ समय बाद स्ट्रांग तथा उरबैक ने प्रेस में छपाई करने वाले कर्मचारियों का अध्ययन किया और यह देखा कि उन्हें प्रायः बीस से लेकर तीस क्रियायें करनी पड़ती है। इसी प्रकार किट्सन ने प्रूफ पढ़ने में प्रूफ रीडर की आँखों की गतियों का अध्ययन किया। इस तरह के कार्य विश्लेषण से कार्य में की जाने वाली वास्तविक क्रियाओं का पता चल जाता है जिससे व्यावसायिक निर्देशन का कार्य सरल हो जाता है।
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