राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या
राष्ट्रीय एकीकरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक अथवा राष्ट्रीय एकता की प्रमुख बाधायें निम्नलिखित हैं
(1) साम्प्रदायकिता की समस्या :-
राष्ट्रीय एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा साम्प्रदायिकता की समस्या है। अंग्रेजी शासनकाल में सर्वप्रथम यह समस्या उत्पन्न हुई, जो अभी तक विद्वमान है। अंग्रेजों ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का अनुसरण किया, जिसके फलस्वरूप भारत का विभाजन हुआ। इस विभाजन के दौरान पूरे देश में दंगे, मार-काट, आगजनी, लूट, हत्याएं तथा बलात्कार आदि योभत्सं घटनाएं घटी। स्वतन्त्रता के बाद भी भारत में सम्प्रदायवाद की समस्या यथावत बनी है। भारत मैं साम्प्रदायिक तनाव केवल मात्र हिन्दू-मुसलमान में ही नहीं, अपितु एक ही धर्म के मानने वाले अन्य सम्प्रदायों में भी पाया जाना है। इस्लाम में शिया-सुन्नी, सिक्खों में अकाली तथा निरंकारी, जैनियों में तेरापंथी और बाइसपंथी तथा स्वयं हिन्दुओं में शैव, वैष्णव, कबरीपंथी और रैदासपंथी समूहों में टकराव होते रहते हैं। आजादी के पश्चात देश में मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, आगरा, जमशेदपुर, राँची, इन्दौर, भिवानी, अलीगढ़, इलाहाबाद, मेरठ, हैदराबाद आदि नगरों में साम्प्रदायिक दंगे हुये जिनमें अपार जन धन की हानि हुई। सन् 1988-89 ई0 में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद से उत्पन्न हुए साम्प्रदायिक दंगों ने तो पूरे देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक दिया था। इन दंगों के प्रमुख कारण राजनीतिक दलों की साम्प्रदायिक विचार रहे हैं।
(2) धार्मिक पूर्वाग्रह-
भारत में विभिन्न धर्मानुयायी रहते हैं किन्तु हिन्दू और मुसलमानों में प्रायः छोटे-छोटे स्वार्थो को लेकर तनाव, संघर्ष तथा टकराव होते रहते हैं। हिन्दू लोग मुसलमानों को म्लेच्छ तथा मुसलमान हिन्दुओं को काफिर कहते हैं। लेकिन इन विचारों को फैलाने वाले अंग्रेज थे और अभी भी भारत के राजनैतिक दलों में ये अंग्रेजों के एजेन्ट साम्प्रदायिकता का जहर भर रहे हैं।
(3) जातीयता –
भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद या जातीयता की भावना भी राष्ट्रीय एकीकरण के मार्ग में बाधक है। एक जाति जब अन्य जातियों की तुलना में अपनी जाति को अधिक श्रेष्ठ समझती है, तथा अन्य जातियों के हितों की उपेक्षा करके अपनी ही जाति के लोगों के हितों की सुरक्षा करती है, तो हम उसके इस कार्य को जातिवाद कहते हैं। भारत में जातिवाद के दुष्परिणामों को सरकारी पदों के चुनावों, अधिकारी की नियुक्ति और अन्य कार्यों तथा आम चुनावों आदि में स्पष्टतः देखा जा सकता है। जातिवाद की भावना ने हमारे समाज और राष्ट्र को सदैव हानि पहुंचायी है। जातिवाद की भावना के कारण आज भी ग्रामीण समुदायों में बहुधा संघर्ष होते रहते हैं। ये राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत बड़ी बाधा है।
(4) क्षेत्रवाद
क्षेत्रवाद भी राष्ट्रीय एकीकरण की बहुत बड़ी बाधा है। क्षेत्रीयता के प्रभाववश विभिन्न राजनीतिक दलों में वैमनस्यता पनपी है तथा क्षेत्रीय पक्षपात की भावना, अन्तक्षेत्रीय तनाव और संघर्ष, भाषावाद तथा राजनीतिक और आर्थिक हितों को लेकर टकराव भी उत्पन्न हुए हैं। इस भावना के फलस्वरूप कई प्रान्तों ने अधिकाधिक स्वायत्तता और अधिकारों की मांगें प्रस्तुत की हैं। इसके कारण राष्ट्रीय सम्प्रभुता और एकता को खतरा उत्पन्न हुआ है। महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद के कारण ही बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ दुव्यवहार किया जाता है।
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(5) भाषावाद-
स्वतन्त्रोपरान्त भारत में भाषा सम्बन्धी विवाद ने राष्ट्रीय एकता को बड़ी क्षति पहुंचाई है, क्योंकि भाषावाद के आधार पर ही भारत का पुनर्गठन किया गया था। भारत में भाषा का विवाद मुसलमानों तथा ईसाईयों (अंग्रेजो) के भारत आने के बाद प्रारम्भ हुआ। मुसलमानों ने फारसी को तथा अंग्रेजों ने अंग्रेजी को सरकारी भाषा बनाया। आजादी के बाद मद्रास, आन्ध्र, मैसूर, केरल, गुजरात, तथा महाराष्ट्र सहित कई प्रान्तों का पुनर्गठन किया गया, जिसने सीमा विवाद को जन्म दिया। आन्ध्र में तेलगु भाषी लोगों ने पृथक तेलंगाना राज्य की तथा पंजाब में पृथक पंजाबी सूबे की मांग की गयी। इसके लिए भूख-हड़ताल और आत्मदाह तक हुए, जिससे विवश होकर सरकार को पंजाब का विभाजन करके पंजाब तथा हरियाणा दो राज्य बनाने पड़े।
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