राष्ट्रीय भाषा हिन्दी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए(निबन्ध)

0
28

प्रस्तावना – जिस प्रकार एक मनुष्य दूसरे से भिन्न होता है, एक समाज दूसरे समाज से भिन्न होता है, एक देश दूसरे देश से भिन्न होता है, उसी प्रकार हर राष्ट्र की भाषा दूसरे राष्ट्र की भाषा से भिन्न होती है। भारत वर्ष की राष्ट्रीय भाषा ‘हिन्दी’ है तथा इसके महत्त्व को समझते हुए इसको विकसित करना हम सभी भारतीयों का धर्म भी है तथा कर्तव्य भी है। हिन्दी साहित्य को समृद्ध करना हिन्दी साहित्यकारों का दायित्व है तथा दैनिक जीवन में इसका प्रयोग करना हमारा उत्तरदायित्व है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व हिन्दी का स्वरूप-

15 अगस्त, 1947 से पूर्व हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था इसलिए हमारे देश में उन्हीं के रीति-रिवाज, सभ्यता तथा संस्कृति को प्राथमिकता दी जाती थी। राज्य के समस्त कार्य अंग्रेजी भाषा में ही किए जाते थे। हर तरफ अंग्रेजी का बोलवाला था। हिन्दी में लिखे गए प्रार्थना-पत्रों तक को फाड़कर रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता था। मजबूरीवश भारतीयों को मन मारकर अच्छी नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी बोलना तथा लिखना पढ़ता था। कुछ भारतीय ऐसे भी थे, जो अंग्रेजी बोलने-लिखने में अपना गौरव समझते थे।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी का स्वरूप

15 अगस्त 1947 को हम भारतवासियों के भाग्य ने करवट पलटी और हम अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त हो गए। जब देश का संविधान बनने लगा तो यह विचार किया गया कि देश की राष्ट्रभाषा कौन सी हो? अनेक पहलूओ पर विचार करने के पश्चात् राष्ट्रभाषा के रूप में ‘हिन्दी’ को स्वीकार किया गया। आज हमारे देश में सी से भी अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं जिनमे हिन्दी का स्थान सर्वोपरि है तथा उर्दू, मराठी, पंजाबी, बंगाली, तेलगू, तमिल आदि अन्य भाषाओं का स्थान हिन्दी के बाद आता है।

हिन्दी भाषा के गुण

हिन्दी भाषा को ऐसे ही राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया गया वरन् अनेक तर्क इसके पक्ष में प्रस्तुत किए गए सर्वप्रथम तो यह एक भारतीय भाषा है दूसरी बात यह कि यह बोलने तथा लिखने में बहुत सरल है इसलिए सबसे अधिक भारतीय हिन्दी भाषी है। तीसरी मुख्य बात यह है कि चाहे हिन्दी बोलने वाले लोग कम है लेकिन समझने वाले सबसे ज्यादा है। हिन्दी की लिपि, जो कि ‘देवनागिरी है, बहुत ही वैज्ञानिक तथा सुबोध है जिसे जैसे बोला जाता है, वैसे ही लिखा भी जाता है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसमें राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा शैक्षणिक सभी प्रकार के कार्य व्यवसरों के संचालन की पूर्ण क्षमता है।

हिन्दी की उन्नति की शर्त

हिन्दी भाषा की उन्नति तभी सम्भव है जब हिन्दी की मौलिकता को बनाए रखा जाए। हिन्दी के विकास के लिए हमें सरकार, साहित्यकारों, जनता तथा हिन्दी प्रेमियों के सहयोग की अति आवश्यकता है। हिन्दी की प्रगति तभी सम्भव है जब हिन्दी के साहित्यकार तथा हिन्दी-प्रेमी इसके प्रति सेवा तथा निष्ठा की भावना रखें। ये गर्व से हिन्दी बोलें न कि अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करें इसके लिए हिन्दी साहित्य का सशक्त होना आवश्यक है।

हिन्दी की उन्नति के लिए यह भी आवश्यक है कि हिन्दी में हो रहे अव्यवहारिक तथा गलत प्रयोग पर अंकुश लगाया जाए। अन्य भाषाओं की भाँति हिन्दी ज्ञाताओं को भी हिन्दी शब्दकोश में नए-नए शब्दों का समन्वय करना चाहिए, जिससे लोगों की रुचि बनी रहे। हिन्दी भाषा के माध्यम से अपनी आजीविका कमाने वाले हिन्दी अध्यापको, प्राध्यापको, अधिकारियों, लेखकों तथा सम्पादकों को हिन्दी के विकास में अपना यथासंभव योगदान देना चाहिए।

कविवर सूरदास का जीवन परिचाए (निबन्ध)

हिन्दी भाषा के विकास के दूसरे उपाय

हिन्दी भाषा के विकास के लिए हमें हर सम्भव प्रयत्न करने होंगे। सर्वप्रथम अहिन्दी भाषी प्रान्तों से पत्र-व्यवहार हिन्दी भाषा में ही हो। ऐसे प्रान्तों तथा विश्व के राष्ट्रों में महत्त्वपूर्ण तथा ज्ञानवर्धक हिन्दी भाषी पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएँ मुफ्त उपलब्ध करायी जानी चाहिए। सबसे अधिक अपहेलना हमारी राष्ट्रीय भाषा की दक्षिण भारत में होती है। दक्षिण भारतीय लोग हिन्दी को ‘राष्ट्र भाषा’ के रूप में स्वीकार नहीं करते। वे सोचते है कि उन पर यह भाषा थोपी जा रही है। इस भ्रान्ति को दूर करने के लिए हिन्दी के ज्ञाताओं तथा पत्रकारों को अहिन्दी भाषियों के साथ घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। यदि ऐसा हो जाता है तो हिन्दी पूरे राष्ट्र की भाषा बन जाएगी। दूसरे सरकारी दफ्तरों तथा व्यक्तिगत दफ्तरों में भी सम्पूर्ण कार्य हिन्दी भाषा मे ही होना चाहिए। विभाग, संस्थान तथा अधिकारियों के नामों की सूची हिन्दी में होनी चाहिए।

उपसंहार-हिन्दी भाषा को विकसित करने के लिए अनेक नेताओं ने भारत के बाहर जाकर हिन्दी में भाषण दिए तथा हिन्दी में ही वार्तालाप किया। लेकिन सभी नेता ऐसा नहीं सोचते, वे तो हिन्दी में बोलना, लिखना अपनी शान के खिलाफ मानते हैं। यह सब देखकर हमें बहुत दुख होता है कि राष्ट्रभाषा के होते हुए भी हम विदेशी भाषा को अधिक महत्त्व दे रहे हैं। भारतीय होने के नाते हमारा यह कर्त्तव्य है राष्ट्रभाषा ‘हिन्दी’ को सच्चे हृदय से अपनाएँ, तभी निश्चय ही हिन्दी का सर्वागीण विकास होगा तथा हम गर्व से कह सकेंगे कि हम भारतीयों की राष्ट्रीय भाषा ‘हिन्दी’ है।

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here