राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE)
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की स्थापना शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के एक संकल्प द्वारा मई, 1973 में हुई। भारत में ‘अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इसकी स्थापना की थी।
इस परिषद् को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है, लेकिन इसको केन्द्र द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। राज्यों को अध्यापक शिक्षा के विकास हेतु अनुदान देने का अधिकार प्राप्त है। इस परिषद् की संस्तुति पर ही उपरोक्त केन्द्रीय साधनों से आर्थिक सहायता दी जाती है।
इसका मुख्य कार्य व उद्देश्य देश की अध्यापक शिक्षा से सम्बन्धित रहा है। राज्यों में अध्यापक शिक्षा की बेहतरी के लिए उचित कदम उठाने के लिए यह परिषद् कार्य करती है। इस परिषद् में निम्नलिखित चार प्रमुख अकादमिक समितियाँ है
- संचालन समिति।
- स्कूल पूर्व और प्रारम्भिक अध्यापन शिक्षा समिति ।
- माध्यमिक और कॉलेज अध्यापक शिक्षा समिति।
- शारीरिक रूप से विकलांगों और मानसिक रूप से अवरुद्धों के लिए विशेष स्कूलों के अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु समिति माध्यमिक स्तर पर के सभी प्रकार के शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर माध्यमिक
और कॉलेज राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् द्वारा नियंत्रित होते हैं। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की बंगलौर, भोपाल, भुवनेश्वर और जयपुर में चार क्षेत्रीय समितियों हैं। सन् 1993 में अपने 73वें अधिनियम के रूप में भारतीय संसद में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् एक्ट पारित किया।
विशेषताएँ
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं
- अध्यापक शिक्षा का तात्पर्य पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण या शोध से है।
- अध्यापक शिक्षा योग्यता जिस किसी विश्वविद्यालय या प्रशिक्षण संस्था को प्रदान किया हो वह एक्ट के अनुसार मान्यता प्राप्त हो।
- अध्यापक शिक्षा के नियोजन विकास के लिए तथा स्तर बनाए रखने के लिए।
- राज्य सरकारों एवं केन्द्र सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को अध्यापक शिक्षा के कार्यक्रम एवं योजनाओं के विषय में समय-समय पर संस्तुतियाँ प्रदान करना।
- शिक्षक शिक्षा की संस्थाओं को मान्यता प्रदान करना।
- नया पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने की अनुमति प्रदान करना।
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कार्य
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के मुख्य कार्य निम्न है
- अध्यापक शिक्षा संस्थानों को मान्यता प्रदान करना।
- ये संस्थान खोलने के लिए दिशा-निर्देश प्रस्तुत करना।
- अध्यापक शिक्षा की प्रगति में समन्वयन स्थापित करना।
- विशिष्ठ पाठयक्रमों के संचालन को प्रोत्साहित, अनुमोदित एवं विकसित करना।
- शिक्षण के मानदण्ड निर्धारित करना।
- परीक्षा के मानदण्ड एवं इसकी प्रणालियों नियोजित करना।
- शुल्क के विषय में दिशा-निर्देश देना।
- अध्यापक शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार और शोध को प्रोत्साहित करना।
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