राष्ट्रीय आयोग
राष्ट्रीय आयोग भारतवर्ष में उपभोक्ताओं के विवादों को हल करने वाली यह एक स्वतन्त्र एवं वैधानिक संस्था है। इसे राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission) भी कहा जाता है।
(1) स्थापना एवं गठन ) –
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 9 (c)) के अन्तर्गत, केन्द्रीय सरकार राजपत्र (Gazeetee) में अधिसूचना (Notification) जारी करके इस आयोग की स्थापना कर सकती है। वर्तमान में इस आयोग की स्थापना नई दिल्ली में की गई है। राष्ट्रीय आयोग में कुल पाँच सदस्य होते हैं। जिनमें एक सभापति (Chairman) तथा चार अन्य सदस्य होते हैं। इनकी योग्यताएँ इस प्रकार से अधिसूचित की गई हैं
(क) सभापति
भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश से परामर्श के पश्चात् केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति सभापति के पद पर की जाती है जो कि उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो अथवा रह चुका हो।
(ख) चार सदस्य
इन सदस्यों में एक महिला सदस्य अनिवार्य रूप से होगी तथा ये सभी सदस्य पर्याप्त योग्यताधारी, ख्याति प्राप्त, अनुभवी, आर्थिक, वाणिज्यिक, लेखाकर्म, कानून तथा लोक प्रशासन से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण करने में निपुण व्यक्ति होने आवश्यक हैं। उपरोक्त चारों सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
(2) चयन समिति का गठन
राष्ट्रीय आयोग में सदस्यों का चयन करने के लिए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को ही चयन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। दो अन्य सदस्यों का चयन भारत सरकार के विधि-विभाग (Law Department) तथा उपभोक्ता विभाग के सचिवों के नामांकन के रूप में किया जाता है।
(3) वेतन तथा अन्य भत्ते
राष्ट्रीय आयोग के सदस्यों का वेतन, भत्ते तथा सेवा की समस्त शर्तें केन्द्रीय सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं। धारा 20 (2)
4.सदस्यों का कार्यकाल
इस आयोग के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल अधिकतम पाँच वर्ष या सत्तर वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो, तक ही रहता है। धारा 20 (3)
5. क्षेत्राधिकार
यह आयोग केवल उन दावों की सुनवाई करता है
- (i) जिनमें वस्तुओं, सेवाओं अथवा क्षतिपूर्ति की राशि 20 लाख रुपए से अधिक होती है,
- (ii) राज्य आयोग के निर्णय के विरुद्ध की गई अपील पर पुनर्विचार करके निर्णय देता है, तथा
- (ii) राज्य आयोग के द्वारा क्षेत्राधिकार का पालन नहीं किया जाता है अथवा कोई असंवैधानिक कार्य किया जाता है तो ऐसे कार्यों के मामले में यह रिकार्ड मांग सकता है। (धारा 21)
(6) अधिकार / शक्तियाँ (Powers)
राष्ट्रीय आयोग को जनपद न्यायालय (धारा 13) की तथा आदेश प्रसारित करने की समस्त शक्तियाँ (धारा 14 (1) तथा धारा 22 ) प्राप्त हैं। इन शक्तियों के आधार पर यह आयोग किसी भी गवाह का ‘बुलावा पत्र’ (Summon) भेजकर बुलवा सकता है, शपथ ले सकता है तथा साक्ष्य प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए आदेश दे सकता। है और उनके आधार पर निर्णय’ प्रतिपादित कर सकता है। [धारा 22 (2))
(7) कार्य विधि (Procedure)
राष्ट्रीय आयोग, केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुरूप शिकायतों का समाधान करने की प्रक्रिया को अपनाता है। (धारा 22 )
(8) अपील (Appeal) –
यदि कोई उपभोक्ता, राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रतिपादित निर्णय स सन्तुष्ट नहीं होता है तो वह निर्णय की तिथि से 30 दिन के भीतर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है। यदि उच्चतम न्यायालय इस अवधि के पश्चात् अपील करने के कारणों से सन्तुष्ट हो जाता है तो वह अपील को स्वीकार कर सकता है। (धारा 23)
शिकायत निवारण की प्रक्रिया
उपभोक्ता संरक्षण नियम, 1987 के अनुरूप, केन्द्रीय सरकार के द्वारा राष्ट्रीय आयोग के कुछ नियमों का प्रतिपादन किया गया है कि जिनके आधार पर यह आयोग शिकायतों का लिए निवारण कर सकता है।
(1) शिकायतों का प्रस्तुतीकरण
नियम 14 (1) में यह स्पष्ट किया गया है कि शिकायतकर्त्ता स्वयं या एजेण्ट के माध्यम से शिकायत प्रस्तुत कर सकता है। प्रार्थना पत्र में शिकायतकर्त्ता का नाम, पता, विवरण, विरोधी पक्षकार का नाम, पता, विवरण, शिकायत से सम्बन्धित विभिन्न तथ्य, आरोपों को पुष्ट करने वाले तथ्यों / साक्ष्यों का सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया जाना आवश्यक होता है।
(2) निवारण प्रक्रिया
राष्ट्रीय आयोग द्वारा शिकायत निवारण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 13 (1) एवं 13(2) के अन्तर्गत जिला मंच द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को ही आधार माना गया है। धारा 14 (2)
(3) सुनवाई की तिथि पर उपस्थिति
आयोग के समक्ष अपील करने वाले प्रत्येक पक्षकार एजेण्ट का यह कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि वह सुनवाई की तिथि पर आयोग के समक्ष उपस्थित होवे अन्यथा किसी भी पक्ष के अनुपस्थित रहने पर राष्ट्रीय आयोग मुकदमे के गुण-दोषों के आधार पर एकपक्षीय ‘निर्णय’ की घोषणा कर सकता है। [धारा 14 (2)]
(4) निर्णय का स्थगन एवं समयावधि
नियम 14 (4) में उक्त तथ्यों के बारे में यह स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया है कि यदि शिकायत की वस्तु की जाँच अथवा विश्लेषण की आवश्यकता नहीं हैं तो राष्ट्रीय आयोग 90 दिन के भीतर निर्णय प्रस्तुत करेगा, परन्तु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यदि आयोग उचित समझता है तो वह निर्णय को आगामी किसी भी तिथि के लिए स्थगित कर सकता है।
(5) आदेश प्रसारित करना
सन् 1993 में किए गए एक संशोधन के अनुरूप जब राष्ट्रीय आयोग सुनवाई पूर्ण होने के पश्चात् शिकायत में लगाए गए आरोपों से सन्तुष्ट हो जाता है तो वह विरोधी पक्षकार को यह आदेश प्रदान कर सकता है कि
- (क) वह माल के उन दोषों को दूर करे जो कि प्रयोगशाला में जाँच के दौरान पाए गए थे,
- (ख) उपभोक्ता को स्वयं विरोधी पक्ष की लापरवाही से हुई क्षति की पूर्ति करे,
- (ग) भविष्य में खतरनाक माल को बेचने का प्रस्तावना नहीं करे,
- (घ) शिकायतकर्त्ता द्वारा चुकाए गए मूल्य को वापस लौटाए,
- (ङ) अनुचित व्यापार-व्यवहार नहीं करे। [नियम 14 (1) संधोधित)]
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के उसके अधिकारों का वर्णन कीजिये।
(6) अपील (Appeal)
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 23 में इस तथ्य की पुष्टि की गई है कि पीड़ित पक्षकार राष्ट्रीय ओग के आदेश के विरुद्ध 30 दिन के भीतर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है या उच्चतम न्यायालय द्वारा बढ़ाई गई अवधि में अपील कर सकता है।
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