राज्य की परिभाषा – सामान्यतया राज्य का अर्थ शासन व्यवस्था से लगाया जाता है। कुछ व्यक्ति राष्ट्र, समाज, देश आदि शब्द भी राज्य के ही अर्थ में प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग एक अमूर्त संस्था के रूप में भी किया जाता है। यदि राज्य द्वारा यातायात पर नियंत्रण, राज्य द्वारा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण, अजितों को राजकीय सहायता आदि वाक्यों का प्रयोग किया जाता है तो राज्य शब्द का अर्थ एक विशेष प्रकार की शासन व्यवस्था से होता है उसी प्रकार प्रजातंत्रात्मक राज्य अथवा तानाशाही राज्य आदि शब्दों में भी राज्य का यही अर्थ निहित है। किन्तु राज्य के ये सभी अर्थ साधारण हैं विशिष्ट नहीं। विभिन्न विद्वानों ने राज्य को इस प्रकार परिभाषित किया है-
गिलिन एवं गिलिन के अनुसार, “राज्य मनुष्यों का एक ऐसा प्रभुता सम्पन्न राजनैतिक संगठन है जो कि निश्चित भू-भाग में बसा हो।” अरस्तू के अनुसार, “राज्य परिवारों तथा गाँवों का एक संघ है जिसका लक्ष्य पूर्ण तथा आत्मनिर्भर जीवन की प्राप्ति है।”
मैकाइवर के अनुसार, “राज्य ऐसी समिति है जो कानून और राज्पाधिकार के द्वारा कार्य करती है तथा जिसे एक निश्चित भू-भाग के अन्दर सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के सर्वोच्च अधिकार होते हैं।”
गार्नर के अनुसार, “राज्य व्यक्तियों का यह समूह है जो एक निश्चित भू-भाग से सम्बन्धित होता है, बाहरी नियंत्रण से पूरी तरह स्वतन्त्र होता है जिसका अपना एक शासन-तन्त्र होता है तथा स्वभाव से ही व्यक्तियों में इस शासन तंत्र के प्रति आज्ञापालन की भावना होती है।”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि राज्य वह समुदाय है जिसका कि एक निश्चित भू-भाग हो साथ ही उसकी एक प्रभुतासम्पन्न ऐसी सरकार गठित हो जो कि बाह्य नियंत्रण से स्वतन्त्र हो तथा उसमें जनसंख्या निश्चित भू-भाग, सरकार अथवा शासन तंत्र तथा प्रभुसत्ता जैसे तत्व विद्यमान हो।
राज्य के प्रकार
(1) नगर राज्य (City State)
ऐसे राज्य बहुत छोटे होते थे। इसका मुखिया कोई सरकार, सामन्त, राजा होता था, ये निरंकुश राज्य थे जिनमें राजा के आदेश ही कानून थे तथा राज्य की सम्पूर्ण सत्ता राजा के हाथों में रहती थी। इन राज्यों के ऊपर धर्म और प्रथा का प्रभाव अधिक था।
(2) साम्राज्य (Empires )
साम्राज्य का अर्थ ऐसे राज्य से है जो बहुत से छोटे-छोटे राज्यों से मिलकर बनता था। साम्राज्य इस अर्थ में नगर राज्य से अलग थे कि प्रत्येक नगर राज्य का राजा एक साम्राज्य की अधीनता स्वीकार करके अपने-अपने राज्य से उसे एक निश्चित धन देता रहता था। साम्राज्य का मुख्य काम अपने क्षेत्र की जनता को केवल बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित करना तथा आवश्यक सुविधाएँ देकर उनसे विभिन्न प्रकार के कर वसूलना था। ऐसे साम्राज्य भी अधिनायवादी थे क्योंकि राज्य की सम्पूर्ण सत्ता राजा के हाथों में केन्द्रित थी।
(3) उपनिवेशवादी राज्य (Colonial States)
ऐसे राज्य एशियाई और अफ्रीकी देश हैं जिनके आपसी संघर्षों का लाभ उठाकर इंग्लैण्ड, फ्रांस और पुर्तगाल आदि ने उन्हें अपने उपनिवेश के रूप में बदल दिया। ऐसे राज्यों के कानूनों, प्रशासन की नीतियों तथा नियंत्रण का कार्य विदेशी राष्ट्रों के द्वारा किया जाता था।
(4) लोकतांत्रिक राज्य (Democratic States)
लोकतांत्रिक राज्य की सत्ता तथा शासन तन्त्र का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण को बढ़ाना और जनसामान्य की आवश्यकताओं को पूरा करना है। ऐसे राज्यों में सत्ता का केन्द्रीयकरण किसी एक व्यक्ति के हाथ में न होकर जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के हाथ में होता है।
राज्य के कार्य
व्यक्ति और सम्पूर्ण समाज के लिए राज्य के कार्य को अग्रांकित रूप से समझा जा सकता है-
(1) प्रत्यक्ष कार्यों द्वारा सामाजिक नियंत्रण
प्रजातंत्रात्मक समाज में राज्य अपने प्रत्यक्ष कार्यों द्वारा समाज के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करता है। जैसे राज्य अनेक प्रकार के उद्योगों पर नियंत्रण करता है। भारत में रेल पर अधिकार इस प्रकार के नियंत्रण का एक उत्तम उदाहरण है। इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों में भी राज्य अपना अधिकार या स्वामित्व करके नियंत्रण रखता है।
(2) मौलिक अधिकारों की रक्षा
राज्य अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करके भी समाज में नियंत्रण की स्थापना करता है। मौलिक अधिकार ये होते हैं जो राज्य में रहने वाले सभी लोगों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। उदाहरणार्थ, स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचारों को प्रकट करना, विकास के समान अवसर प्राप्त करना, न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधाएँ प्राप्त करना, शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करना तथा अजीविका के लिए कार्य करना हमारे कुछ मौलिक अधिकार है। इन अधिकारों की रक्षा का उद्देश्य विभिन्न समूहों के बीच सहयोग को बढ़ाना तथा पारस्परिक संघर्षो की सम्भावना को कम करना है।
(3) आन्तरिक सुव्यवस्था एवं शान्ति
प्रत्येक समाज में ऐसे लोग होते हैं जो सामाजिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते और विद्रोह पर उतारू होते हैं। साथ ही अनेक ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि पहुँचाने की प्रवृत्ति रखते हैं, जैसे-चोर, डकैत जालसाज आदि। ऐसे लोगों को राज्य पुलिस एवं कानून आदि की मदद से नियंत्रित करता है।
(4) बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा
किसी भी समाज में राज्य नाम की समिति का यह महत्वपूर्ण कार्य है कि यह बाहरी आक्रमणों से समाज की रक्षा करता है। प्रत्येक राज्य सेना नाम की एक एजेन्सी का गठन करता है जिसका कार्य हो बाहरी आक्रमणों के प्रति चौकस रहना है।
(5) कानूनों का निर्माणराज्य की
सबसे महत्वपूर्ण संस्था सरकार अथवा व्यवस्थापिका है जिसमें नीतियों और कानूनों का निर्माण किया जाता है। सभी राज्य ऐसे कानून बनाते हैं जो सामान्यजन के हित में हो तथा जिनके द्वारा उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके। कानून परिवर्तनशील भी होते हैं अर्थात् आवश्यकतानुसार इनमें संशोधन और सुधार भी किया। जाता है।
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(6) दण्ड द्वारा नियंत्रण
राज्य के पास असीमित दण्ड की शक्ति होती है जिसका योग कार्यपालिका तथा न्यायपालिका द्वारा किया जाता है। राज्य एक ओर अपने अधिकारी-तंत्र, लिस और गुप्तचर एजेन्सियों के द्वारा कानूनों को लागू करता है तो दूसरी ओर न्यायालयों के द्वारा उन लोगों को दण्डित करता है जो कानून की अवहेलना करते हैं। राज्य के इस कार्य से सम्पूर्ण जन-जीवन अनुशासित और सुरक्षित बना रहता है।
(7) आर्थिक व्यवस्था का नियमन
राज्य का प्रमुख कर्तव्य अर्थव्यवस्था को जबूती देकर लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना तथा उत्पादन एवं वितरण का नियमन करके आर्थिक स्रोतों को बढ़ाना है। इसके लिए राज्य आर्थिक नीतियों का निर्धारण करता है, व्यवसायों के अवसरों में वृद्धि करता है तथा धन का इस प्रकार प्रयोग करता है जिससे अमीरी और गरीबी के फर्क को कम किया जा सके। आज राज्य सामाजिक और आर्थिक नियोजन के इस आर्थिक बोतों का उत्तम उपयोग करते हैं तथा क्रियाओं का नियमन करते हैं।
(8) कल्याणकारी कार्यों की व्यवस्था
आज राज्यों का एक प्रमुख कार्य पिछड़े हुए और कमजोर वर्ग के समूहों के कल्याण को प्राथमिकता देकर एक समतावादी समाज का निर्माण करना है। इन कार्यों में आवास, पीने के पानी की व्यवस्था, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा शोषण के विरुद्ध सुरक्षा आदि मुख्य हैं। इन्हीं कार्यों के फलस्वरूप वर्तमान राज्यों को कल्याणकारी राज्य कहा जाता है।