राज्य की परिभाषा एवं महत्व की विवेचना कीजिए।

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राज्य की परिभाषा- “राज्य’ शब्द अंग्रेजी के “स्टेट’ शब्द का रूपान्तर है, जो कि लैटिन भाषा के ‘स्टेटस’ शब्द से व्युत्पन्न है। ‘स्टेटस’ शब्द का शाब्दिक आशय है-“किसी व्यक्ति का समाजिक स्तर / पद / प्रस्थिति।’ धीरे-धीरे “राज्य’ शब्द का अर्थ बदलता गया। सिसरो के समय राज्य का सम्बन्ध सम्पूर्ण समाज के स्तर से माना जाने लगा। इंग्लैण्ड में “राज्य’ शब्द का प्रयोग एक प्रभुत्वशाली सांसारिक रूप में किया गया। राज्य का विश्लेषण तथा उसकी परिभाषा कई आधारों पर विद्वानों ने की है।

1. गिलक्राइस्ट के अनुसार- “राज्य उसे कहते हैं, जहाँ कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में एक सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की सम्प्रभुता को प्रकट करती है तथा बाह्य मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।

2. विलोबी ने लिखा कि- “राज्य एक ऐसा कानूनी व्यक्ति या स्वरूप है, जिसके कानून निर्माण का अधिकार प्राप्त है।

3. लॉस्की ने कहा है कि “राज्य एक ऐसा प्रादेशिक समाज है, जो कि शासन तथा जनतामें विभाजित होता है, जिसमें जनता व्यक्ति या व्यक्ति समुदाय के रूप में होती है तथा शासक सर्वोपरि बल प्रयोग पर आधारित अपनी शक्ति द्वारा जनता के साथ अपने सम्बन्ध निर्धारित करता है।”

4. बोदां के अनुसार “राज्य कुटुम्बों और उसके सामूहिक अधिकार की वस्तुओं का एक ऐसा समुदाय है, जो कि सर्वश्रेष्ठ शक्ति और तर्क-बुद्धि से शासित होता है।

” 5. गार्नर के शब्दों में- “राज्य बहुसंख्यक लोगों का एक ऐसा समुदाय है, जो किसी प्रदेश के निश्चित भाग में स्थायी रूप से रहता हो, बाह्य शक्ति के नियन्त्रण से पूर्णतः अथवा अंशतः स्वतन्त्र हो तथा जिसमें ऐसी सरकार विद्यमान हो, जिसके आदेश का पालन नागरिकों के विशाल समुदाय के द्वारा स्वाभाविक रूप से किया जाता है।

राज्य के तत्व-

राज्य के तत्व को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया गया है

(1) जनसंख्या-

बिना जनसंख्या के राज्य की कल्पना करना व्यर्थ है। यह राज्य के संगठन के निर्वाह के लिए संख्या में पर्याप्त होनी चाहिए तथा यह उपलब्ध भू-भाग तथा राज्य के साधनों से अधिक न हो ।

(2) निश्चित भू-भाग-

ब्लुशली ने कहा है, जैसे राज्य का वैयक्तिक आधार जनता है उसी प्रकार उसका भौतिक आधार है भूमि, जनता उस समय तक राज्य का रूप धारण नहीं कर सकती जब तक उसका कोई निश्चित प्रदेश न हो।” एक राज्य के पास निश्चित भूमि का आकार इतना होना चाहिए, जितना कि एक राज्य रक्षा कर सकता हो।

(3) सरकार-

किसी निश्चित भू-भाग के वाशिन्दे तब तक राज्य का रूप धारण नहीं करते जब तक कि उसका एक राजनीतिक संगठन न हो। यह राजनीतिक संगठन अथवा सरकार एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा राज्य के लक्ष्य एवं नीतियों का कार्यान्वित किया जाता है। सरकार राज्य का व्यवहारिक पहलू है।

(4) प्रभुसत्ता

यह राज्य का प्राण है जिसके अभाव में राज्य का अस्तित्व कायम नहीं रह सकता है। इसका अर्थ है आन्तरिक और बाह्य मामलों में राज्य अन्य शक्ति के अधीन नहीं है। उसे नागरिकों एवं समुदायों पर सर्वोच्च कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। राज्य पर किसी प्रकार का बाहरी नियंत्रण नहीं है।

राज्य के महत्व-

राज्य के निम्नलिखित महत्व है

(1) शान्ति एवं व्यवस्था का स्थापक

समाज में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना राज्य तथा उसकी प्रभुत्व शक्ति द्वारा ही होती है। ऐसे व्यक्ति जो समाज के विरुद्ध कार्य करते हैं, राज्य उनको दण्डित करता है। यह कार्य समाज के किसी अन्य समुदाय के सामर्थ्य के बाहर है। अरस्तु का कहना था, “राज्य मनुष्य के लिए उसी प्रकार अनिवार्य है, जिस प्रकार एक मछली के लिए जल।”

(2) अधिकारों और कर्तव्यों का रक्षक

व्यक्ति के अधिकारों का अस्तित्व राज्य में ही सम्भव है। राज्य नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखता है और कर्तव्यपालन भी लोग राज्य के कारण ही करते हैं।

(3) बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा

राज्य बाह्य आक्रमणों से देश की रक्षा कर लोगों की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखता है। यदि राज्य बाह्य आक्रमणों से देश की रक्षा न करे, तो मानव सभ्यता का विनाश तक हो सकता है।

(4) शक्तिशालियों से निर्बलों की रक्षा

राज्य निर्बल व्यक्तियों की शक्तिशालियों से रक्षा करता है। यदि राज्य निर्बलों की रक्षा न करे तो समाज में मत्स्य न्याय (जिसकी लाठी उसको पैस) स्थापित हो जाएगा और दुर्बलों का अस्तित्व मिट जाएगा। इससे देश में अराजकता और अशान्ति का बोलबाला हो जाएगा।

(5) आर्थिक उन्नति में सहायक-

राज्य मनुष्यों की आर्थिक उन्नति में सहायक होता है। राज्य सड़कों, रेल, तार, टेलीफोन, नहरों, बाँधों आदि का निर्माण करता है तथा इनके द्वारा कृषि और व्यापार का विकास होता है। राज्य विशाल कारखानों तथा औद्योगिक शिक्षा का प्रबन्ध करके भी अपने नागरिकों की आर्थिक दशा में सुधार करता है।

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सामाजिक नियन्त्रण में राज्य की भूमिका

सामाजिक नियन्त्रण में राज्य निम्न भूमिका निभाता है

  1. राज्य समाज में आन्तरिक व्यवस्था एवं शांति कायम रखता है। वह दंगे-फसादों/उपद्रवों का दमन करता है, अपराधियों को दण्डित करके उनका सुधार भी करता है। विभिन्न समूहों/समुदाय के बीच संघर्ष की रोकथाम करता है। आंतरिक शांति एवं व्यवस्था के लिए वह जेल, पुलिस, न्यायालय, सेना की सहायता लेता है।
  2. राज्य आर्थिक व्यवस्था का नियन्त्रण करता है। वह नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था करता है। राज्य उत्पत्ति, उपभोग, वितरण, विनिमय, कर, आयात-निर्यात, व्यवसाय, उद्योगादि के बारे में नीति-निर्धारण, कानून बनाकर अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है।
  3. राज्य अनेक उद्योगों की स्थापना और उनका संचालन करता है, लोगों के श्रम को शोषण से बचाता है, यातायात संचार की व्यवस्था करता है। राज्य उद्योग, व्यापार, शिक्षादि के माध्यम से समाज में प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक नियंत्रण को बनाए रखता है।
  4. राज्य व्यक्ति के कार्यों का नियन्त्रण और निर्देशन भी करता है। वह सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों को प्रतिबन्धित करता है। यह लोगों के सम्मुख नये मूल्य, आदर्श, नैतिकता प्रस्तुत करके उन्हें प्रगतिशील जीवन के प्रति प्रेरित करता है।
  5. राज्य अपंग, वृद्ध, रुग्ण, असहाय, बच्चों, स्त्रियों की सहायता की व्यवस्था करता है। नागरिकों के लिए नई-नई कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण करता है।

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