राज्य के नीति निदेशक तत्त्व ये निर्देश हैं जिन्हें संविधान ने राज्य को दिया है और उससे यह आशा की गयी है कि वह किसी बन्धन के रूप में नहीं वरन् अपने कर्त्तव्य के रूप में इन पर चलेगा तथा उनमें अन्तर्निहित लक्ष्यों को प्राप्त करेगा। भारतीय संविधान के चतुर्थ भाग में अनुच्छेद 36 से 51 तक नीति-निदेशकों का उल्लेख किया गया है। ये सिद्धान्त देश की विभिन्न सरकारों और सरकारी अभिकरणों के नाम जारी किए गए निर्देश हैं जो देश की शासन व्यवस्था के मौलिक तत्व है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, “राज्य नीति के निदेशक सिद्धान्तों का उद्देश्य जनता के कल्याण को प्रोत्साहित करने वाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है।”
उपयोगिता या महत्व
निदेशक तत्वों की उपयोगिता या महत्व निम्न है
(1) जनमत की शक्ति के प्रतीक
नीति निदेशक तत्त्वों के पीछे कोई वैधानिक न्यायिक शक्ति न होने कारण इनका महत्व समाप्त नहीं हो जाता क्योंकि इनके पीछे विशाल जनमत की शक्ति निहित है। जनमत की शक्ति प्रजातन्त्र का सबसे बड़ा न्यायालय है। अत: जनता के प्रति उत्तरदायी कोई भी सरकार इन तत्त्वों की अवहेलना का साहस नहीं कर सकता है।
(2) न्यायपालिका के मार्गदर्शक नीति
निदेशक तत्वों के पीछे कोई न्यायिक शक्ति न होते हुए भी ये न्यायपालिका का मार्ग-दर्शन करते हैं। ये तत्व न्यायालय के निर्णयों को भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते है।
(3) संघात्मक व्यवस्था में महत्वपूर्ण
भारतीय संविधानात्मक संविधान है। ऐसी स्थिति में यदि ये निदेशक तत्व नहीं होते, तो ये राज्य सरकारें भिन्न-भिन्न दिशा में कार्य करतीं तथा इससे संघात्मक व्यवस्था को आघात पहुँच सकता था।
(4) लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक
संविधान की प्रस्तावना में भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय प्रदान करने की बात कही गयी है और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ही नीति निदेशक तत्वों को संविधान में महत्व दिया गया है।
(5) नैतिक आदर्शों का महत्व
यदि निदेशक तत्वों के केवल नैतिक धारणाएँ ही मान लिया जाय, तो इस रूप में भी इनका अपार महत्व है। ब्रिटेन में मैग्नाकार्टा, फ्रांस में मानवीय तथा नागरिक अधिकारों की घोषणा तथा अमेरिकी संविधान की प्रस्तावना को कोई वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं है, फिर भी इन देशों के इतिहास पर इतना प्रभाव पड़ा है। ये तत्व जनता तथा सरकार दोनों का ध्यान नैतिक आदर्शों की ओर आकर्षित करते हैं। इनके प्रचार से ही जनता तथा सरकार का नैतिक स्तर ऊंचा हो जाता है।
(6) राजनीतिक दलों पर अंकुश
लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में जनमत के बहुमत के आधार पर विभिन्न राजनीतिक दल समय-समय पर अपनी सरकार गठित करते हैं। इन दल में कोई अत्यधिक दक्षिणपन्थी होता है तो कोई अत्यधिक वामपन्थी, परन्तु नीति-निदेशक तत्व इन दलों की नीतियों पर अंकुश लगाते हैं तथा उनके लिए एक माध्यम मार्ग की व्यवस्था करते हैं।
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(7) सामाजिक
आर्थिक क्रान्ति के साधन- सन् 1947 में भले ही हमने राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली, लेकिन राजनीतिक स्वतन्त्रता देश की सामान्य जनता की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति सुधारने का एक ही साधन है। इस प्रकार की सामाजिक, आर्थिक क्रान्ति का मार्ग निदेशक तत्वों में बताया गया है 1
इस प्रकार नीति निदेशक तत्व अनेक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनमें गांधीवादी आदर्शों को स्थान दिया गया है। इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि वैधानिक शक्ति प्राप्त न होने पर भी निदेशक तत्त्वों का अपना महत्व और उपयोगिता है।
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