राज्य के मंत्रिपरिषद् के गठन, शक्तियों एवं कार्यों पर प्रकाश डालिए।

राज्य के मंत्रिपरिषद् के गठन- केन्द्र की ही तरह राज्यों में भी संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है। इसलिए राज्य की वास्तविक कार्यपालिका मंत्रिपरिषद् ही है। जैसा कि पहले कहा कहा जा चुका है, उन कामों को छोड़कर जो राज्यपाल के विवेकाधिकारों से सम्बन्ध रखते हैं, राज्यपाल सभी कार्य मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद् के परामर्श के अनुसार करता है।

मंत्रिपरिषद की रचना (Composition of the Council of Ministers)

1. मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों की नियुक्ति (Appointment of the Chief Minister and other Ministers)

मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है, पर वास्तव में राज्यपाल बहुमत दल के नेता को ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है। यदि विधान सभा में किसी भी दल का बहुमत न हो मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। मुख्यमंत्री की सलाह से राज्यपाल अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। दूसरे शब्दों में, मुख्यमंत्री जो भी सूची राज्यपाल को देगा, उसकी स्वीकृति राज्यपाल द्वारा हो जाती है। संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार, बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा के मंत्रिमण्डलों में ऐसा मंत्री होना आवश्यक है जो आदिम कबीलों के कल्याण को देखे। उसी मंत्री को अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण की जिम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है।

2. पद व गोपनीयता की शपथ (Oath of Office and Secrecy)

प्रत्येक मंत्री को अपने पद तथा गोपनीयता की शपथ लेनी होगी। ‘पद की शपथ’ का अर्थ है कि उसे यह शपथ लेनी होती है कि संविधान के प्रति निष्ठा और भक्ति रखेगा तथा अपने सभी कर्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी व निर्भीकता के साथ करेगा।

3. मंत्रियों की श्रेणियों (Categories of Ministers)

संविधान ने न तो मंत्रियों की संख्या ही निश्चित की है और न ही उनकी श्रेणियाँ। मंत्रिपरिषद् का आकार राज्य की परिस्थिति तथा मुख्यमंत्री पद की भी व्यवस्था की जा सकती है। आमतौर पर मंत्रिपरिषद में चार तरह के मंत्री होते हैं- कैबिनेट स्तर के मंत्री (Ministers with a Cabinet Rank), राज्य मंत्री (Minister’s of State), उपमंत्री (Dupty Minister) तथा संसदीय सचिव (Parliamentary Secretaries)।

कैबिनेट स्तर तथा राज्य स्तर के मंत्री एक या एक से अधिक विभागों का कार्यभार संभालते हैं। मंत्रियों में मुख्य-मुख्य हैं- मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री, शिक्षा मंत्री, वाणिज्य व उद्योग मंत्री, कृषि व वन्य मंत्री, भूराजस्व मंत्री तथा विधि व न्याय मंत्री उपमंत्री तथा संसदीय 1 सचिव नीचे दर्जे के मंत्री होते हैं। वे कैबिनेट मंत्रियों व राज्य मंत्रियों के सहायक के रूप में कार्य करते हैं। उन्हें मंत्रिमण्डल की बैठकों में भाग लेने का अधिकार नहीं होता। मंत्रिमण्डल की बैठकों में थे तभी भाग लेते हैं जब उनके विभाग से सम्बन्धित मंत्री अनुपस्थित होता है।

4. मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री की स्थिति (Position of the Chief Minister)-

मुख्यमंत्री की प्रायः वही स्थिति है जो केन्द्र में प्रधानमंत्री की। वह मंत्रियों की सूची तैयार करता है, मंत्रिमण्डल की बैठके बुलाता है तथा बैठकों की अध्यक्षता करता है। मुख्यमंत्री ‘राज्यपाल’ व ‘मंत्रिपरिषद’ के बीच कड़ी का कार्य करता है। मंत्रिपरिषद के निर्णयों को राज्यपाल तक पहुंचाना उसी का कर्तव्य है। राज्यपाल जो नियुक्तियाँ करता है, उनके सम्बन्ध में मुख्यमंत्री का परामर्श ही महत्वपूर्ण होता है।

5. मंत्रियों का कार्यकाल (Term of Office of the Ministers)

संविधान के अनुसार सब मंत्री “राज्यसभा की इच्छापर्यन्त अपने पद पर आसीन रहेगें’ (The Ministers shall hold office during the pleasure of the Governor) पर व्यवहार में ‘राज्यपाल की इच्छा ‘का अभिप्राय ‘मुख्यमंत्री की इच्छा है। कोई भी मंत्री जिसे मुख्यमंत्री नचाहे, मंत्रिमण्डल में नहीं रह सकता। अप्रैल, 1979 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल की सिफारिश पर राज्यपाल ने चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था। मुख्यमंत्री ने इस सम्बन्ध में पत्रकारों से यह कहा कि “ऐसी स्थिति आ गई है जिसमें इन मंत्रियों के साथ रहकर शासन चलाना बहुत कठिन हो गया है।”

6. मंत्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है (Accontability of the Council of Ministers)

मंत्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है। सामूहिक उत्तरदायित्व का अर्थ यह है कि जब तक मंत्रिमण्डल को विधानमण्डल का विश्वास प्राप्त है, तब तक यह अपने पद पर कायम रह सकता है। मंत्रिमण्डल को अपने प्रति उत्तरदायी बनाये रखने के लिए विधानसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछते हैं, काम रोको प्रस्ताव पेश करते हैं, तथा अन्य प्रस्तावों के माध्यम से सरकार की भूलों पर प्रकाश डालते हैं। विधानसभा के सदस्य मंत्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पेश कर सकते हैं।

मंत्रिपरिषद के कार्य और शक्तियाँ

व्यवहार में राज्य प्रशासन मंत्रिपरिषद का ही कार्य है। उसकी निम्नलिखित शक्ति है- को चलाना

1. नीति निर्धारण (Formulation of the Policies)

मंत्रिपरिषद शासन की नीतियाँ निर्धारित करती है।जनिक स्वास्थ्य, चिकित्सा, शिक्षा, भू-राजस्व, कृषि और श्रम कल्याण के सम्बन्ध में सभी महत्वपूर्ण निर्णय उसे ही करने पड़ते हैं। इन निर्णयों को कानून का रूप देने के लिए मंत्रिगण बहुत से विधेयक विधानमंडल में पेश करते हैं। राज्यपाल विधानमण्डल के समक्ष अभिभाषण देता है। इन अभिभाषणों को मंत्रिपरिषद ही तैयार करती है। मंत्रिमण्डल इन भाषणों के माध्यम से विधानमण्डल के समक्ष अपने कार्यक्रमों को पेश करता है।

2. प्रशासन तथा सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना (To carry on the Administration and Maintenance of Public Order)

कानूनों को अमल में लाना तथा राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखना मंत्रिपरिषद् का ही कार्य है। मंत्रिपरिषद के सदस्य अपने-अपने विभागों के अध्यक्ष होते हैं। उन विभागों की नीतियों और कानूनों को लागू करने के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। प्रशासन के लिए आवश्यक नियमों व उपनियमों का भी निर्माण करते हैं। मंत्रिपरिषद का यह दायित्व है कि वह राजकीय संपत्ति की रक्षा करे।

3. नियुक्तियाँ (Appointments)

राज्यपाल बहुत से महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है, जैसे राज्य का एडवोकेट जनरल, राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य तथा राज्य विश्वविद्यालयों के उपकुलपति आदि ये नियुक्तियाँ मुख्यमंत्री अथवा मंत्रिपरिषद की सलाह से ही की जाती है।

4. विधि-निर्माण के कार्य में विधानमण्डल का नेतृत्व करना (To guide the Legisla ture)

विधानमण्डल का अधिवेशन यद्यपि राज्यपाल बुलाता है, पर जहाँ अधिवेशन की तिथि और समय का सवाल है, राज्यपाल मंत्रिपरिषद के सुझावों के अनुसार काम करता है। विधानमण्डल में अधिकांश विधेयक मंत्रियों द्वारा ही पेश किए जाते हैं। इस प्रकार मंत्रिमण्डल ही विधानमण्डल की कार्यवाही को नियंत्रित करता है। मंत्रिगण विधि-निर्माण में सक्रिय भाग लेते हैं। विधानमण्डल के सदस्यों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर मंत्रियों को देना पड़ता है।

क्षेत्र पंचायत (पंचायत समिति) के संगठन, कार्यों एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए।

5. राजकोष पर नियंत्रण (Control over the State Exchequer)

राजकोष पर मंत्रिपरिषद का नियंत्रण है। वास्तव में बजट का निर्माण, नये करों का निर्धारण तथा आय व खर्चे के अनुमान तैयार करना मंत्रिपरिषद का ही कार्य है। बजट जब पास हो जाता है तो उस धन को खर्च करने का अधिकार मंत्रियों को ही है।

6. केन्द्रीय कानूनों व निर्णयों को लागू करना (To Execute Central Laws and Decisions of the Central Government)

राज्यों को अपनी कार्यकारी शक्तियों का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए जिससे संसद के कानूनों का पालन होता रहे। राज्यों का यह भी कर्तव्य है कि वे केन्द्रीय प्रशासन में कोई बाधा उत्पन्न न होने दें। केन्द्रीय सरकार राज्यों को निर्देश दे सकती है। रेलमार्गों की सुरक्षा के लिए उचित आदेश जारी किए जा सकते हैं। मंत्रिपरिषद का दायित्व है कि यह केन्द्रीय आदेशों को लागू करे।

संक्षेप में, मंत्रिपरिषद की शक्तियाँ बहुत व्यापक हैं। वास्तविक प्रशासन वही चलाती है और वही विधानमण्डल का मार्गदर्शन करती है।

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