राज्य और चर्च के सम्बन्ध में हॉब्स के विचार- अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सेवियाधन के एक बहुत बड़े भाग को हॉब्स ने राज्य चर्च सम्बन्धों की व्याख्या करने में व्यय किया। इस सम्बन्ध में वह किसी तरह की पूर्व धारणाओं से प्रभावित नहीं है। अतः राज्य चर्च सम्बन्धों का आधार क्या होना चाहिए, इस सम्बन्ध में उसने खुले दिमाग से चिन्तन किया है और ऐसे निष्कर्ष निकाले हैं जिनके आधार पर उसे नास्तिक और शैतान तक कहा गया है।
अपने पूर्ववर्ती विचारका से भिन्न मत प्रकट करते हुए हॉब्स चर्च की राज्य से सत्ता को स्वीकार नहीं करता। यह उसे राज्य- सम्प्रभुता के अधीन मानता है और इसलिए कहता है कि चर्च को सम्प्रभु के आदेशानुसार ही अपना संगठन बनाना चाहिए और संचालन करना चाहिए। हॉब्स स्पष्ट शब्दों में यह घोषित करता है कि चर्च राज्य का एक अंग मात्र है और सामाजिक क्षेत्र में ही नहीं आध्यात्मिक क्षेत्र में भी सर्वोच्च है।
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राज्य से पृथक किसी भी रूप से चर्च की सत्ता को स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उसकी मान्यता है कि ऐसा होने पर समाज में दो सर्वोच्च शक्तियों की स्थापना हो जाएगी जिससे अव्यवस्था और अराजकता का विस्तार होगा और जिस उद्देश्य से सामाजिक समझौता किया गया है वह उद्देश्य निष्फल हो जाएगा। अतः राज्य चर्च सम्बन्धों के निर्धारण में हॉब्स मैकियावली से एक कदम आगे है। मैकियावली राज्य और चर्च को सिर्फ पृथक करता है जबकि हॉब्स चर्च को राज्य के अधीन कर देता है।