राजपूतों के विदेशी उत्पत्ति
राजपूतों के विदेशी उत्पत्ति के मत का प्रतिपादन सर्वप्रथम कर्नल जेम्स टाड ने किया। उनके अनुसार राजपूत विदेशी सीथियन जाति की सन्तान थे। इस मत का आधार सीथियन तथा राजपूत जातियों की कुछ सामाजिक तथा धार्मिक प्रथाओं में समानता है। स्मिथ ने राजपूतों की उत्पत्ति शकों तथा हूणों से मानी। गुर्जर, जो राजपूत होने का दावा करते हैं,
वस्तुतः हूणों के साथ ही भारत आये। डॉदृ भण्डारकर का कहना है कि गुर्जर विदेशी थे जो खिजर जाति के थे। इन गुर्जरों ने हूणों के साथ भारत वर्ष में प्रवेश किया था। इन विदेशियों ने भारतीयों के साथ विवाह सम्बन्ध आदि स्थापित कर लिए और तत्पश्चात् राजपूत कहलाये।
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समीक्षा- इसका कोई प्रमाण नहीं है कि गुर्जर विदेशी थे और यह खिजर जाति के थे। इसका भी उल्लेख नहीं मिलता कि खिजर जाति ने भारत पर आक्रमण किया था। गुर्जरों और खिजर की परम्पराओं और मान्यताओं में भारी अन्तर है। शरीर रचना से गुर्जर आर्य प्रतीत होते हैं। अगर यह स्वीकार कर लिया जाय कि गुर्जर हूणों के साथ ही भारत आये, तो साहित्यिक श्रोतों में हूणों के साथ ही गुर्जरों का भी उल्लेख होना चाहिए था, परन्तु ऐसा नहीं है। उदाहरण स्वरूप महाभारत में हूणों का उल्लेख है। लेकिन गुर्जरों का नहीं। अतः नस्ल एवं रीति-रिवाजों के आधार पर राजपूतों को विदेशी प्रमाणित करना अनुचित प्रतीत होता है।
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