Ancient History

राजपूत कला (स्थापत्य) की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

राजपूत कला (स्थापत्य)

राजपूत काल में अनेक राजवंशों ने स्थापत्य कला विशेषकर मन्दिरों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गुर्जर प्रतिहार शासकों ने जहाँ मथुरा में अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया, वहीं चन्देल शासकों ने खजुराहो के ऐतिहासिक मन्दिरों का निर्माण कराया। इतिहासकार उतनी का कथन है कि मथुरा की मूर्तियाँ पाँच-पाँच हाथ ऊँची है। अधिकांश मूर्तियाँ सोने से बनी थीं। एक स्वर्ण मूर्ति पर 50,000 मणियां जड़ी थीं। खजुराहो के मन्दिर नागर शैली में बनाये गये थे। खजुराहो के मन्दिर ऊँची जगह बनी चहारदीवारी में स्थित है। इन मन्दिरों का निर्माण भूमितल पर न होकर एक आधार पीठिका पर हुआ है विन्यास की दृष्टि से इन मन्दिरों के तीन भाग है- (1) गर्भगृह, (2) मण्डप एवं (3) अर्थमण्डप कुछ बड़े मन्दिरों में प्रदक्षिणापथ से संयुक्त महामण्डप भी दृष्टिगोचर होता है मन्दिरों का सर्वोच्च भाग छत है जो पृथक-पृथक कोणास्तूपाकार की है। इस काल में मन्दिर कई प्रकार के बनाये जाते थे।

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अधिकांश मन्दिर पत्थर की चट्टानों को काटकर या ईंटों को जोड़कर बनाये जाते थे गुहा मन्दिरों का निर्माण चट्टानों को खोदकर किया जाता था। इस काल के प्रसिद्ध मन्दिरों में मथुरा, धारा, उज्जैन, काशी के मन्दिरों के अतिरिक्त खजुराहो के मन्दिर हैं जिनमें कन्दरिया महादेव मन्दिर, चौसठ योगिनी मन्दिर, लक्ष्मण मन्दिर, विश्वनाथ मन्दिर, आदिनाथ मन्दिर, पार्श्वनाथ मन्दिर, वराह मन्दिर प्रमुख है।

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