पुष्यभूति के विषय में आप क्या जानते हो?

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पुष्यभूति

बाण के हर्षचरित से विदित होता है कि वर्धन वंश का आदि पुरुष पुष्यभूति था, जो भैरवाचार्य का शिष्य था। पुष्यभूति शैव मतावलम्बी था। हर्ष चरित में वर्णित है कि ‘शैवगुरू ने राजा (पुष्पभूति) को बेताल सिद्धि का आदेश दिया। राजा भी रात में अकेला तलवार लेकर नगर से बाहर उसी उद्देश्य से साधना पूर्ति को गया । यहीं पर पृथ्वी के फटने से श्रीकण्ठ नामक एक नाग, जिसके नाम पर ही वह भूखण्ड श्री कण्ठ देश कहलाता था, निकल पड़ा और राजा से युद्ध करता हुआ पराभूत हुआ। इसके बाद श्री लक्ष्मी जी प्रकट हुई और उन्होंने राजा के पराक्रम से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद तथा वर दिया, “कि इस वीरकार्य और शिव भक्ति से ही वे एक महान् राजवंश के संस्थापक होंगे तब इस वंश में पवित्रता, सौन्दर्य, सत्य, त्याग, हर्ष नामक चक्रवर्ती सम्राट त्रिलोक विजयी मान्धाता का ही अवतार होगा परन्तु तत्कालीन अभिलेखों में हर्ष के पूर्वज के नाम में पुष्यभूति का नाम नहीं मिलता है बाँसखेड़ा ताम्रपत्र लेख में हर्ष के पूर्वजों का नाम क्रमशः नरवर्धन, राज्यवर्धन आद्वित्यवर्धन एवं प्रभाकरवर्धन मिलता है।

जयसिंह सिद्धराज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।

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