प्रौढ़ शिक्षा क्या है ? इसकी प्रमुख समस्याएं क्या हैं? हम इनसे मुक्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?

प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा

प्रौढ़ शिक्षा जैसा कि नाम से ज्ञात होता है कि ऐसी शिक्षा जो प्रौढ़ों को दी जाती है। इसके माध्यम से उन व्यक्तियों को साक्षर बनाया जाता है, जो दीर्घ आयु के होते हैं या सामान्य रूप से इनकी अवस्था 18 वर्ष से कम नहीं होती है। प्रौढ़ शिक्षा के बारे में यह धारणा बहुत चर्चित है कि यह निरक्षर लोगों को साक्षर बनाती है। सीखना पढ़ना तथा गणना का ज्ञान कराना इसका मुख्य कार्य है।

समय के साथ यह शिक्षा अपने को साक्षरता तक सीमित नहीं रख पायी। इसकी अवधारणा जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने के लिए होने लगी। जैसा कि महात्मा गाँधी का कथन है कि- “साक्षरता न तो शिक्षा का अन्त है और न ही प्रारम्भ, यह तो मनुष्यों को शिक्षित करने का एक साधन है।”

अतः साक्षरता के अतिरिक्त अन्य पक्ष की ओर भी भीड़ शिक्षा का क्षेत्र बढ़ने लगा है जैसा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 1947 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की सभा में कहा था प्रौढ़ शिक्षा का उददेश्य केवल वयस्क को साक्षर बनाना मात्र नहीं, अपितु इसके अन्तर्गत वह सभी प्रकार की शिक्षा आती है, जो प्रत्येक नागरिक को जनतान्त्रिक व्यवस्था का विवेकपूर्ण सदस्य बनाये।’

इस सन्दर्भ में अनेक बार विचार शिक्षा सम्मेलनों में किया गया। यूनेस्को के माध्यम से भी साक्षरता वर्ष 1975 में प्रौढ़ को व्यावसायिक शिक्षा की संज्ञा दी गयी थी। प्रौढ़ शिक्षा के सन्दर्भ में अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये

बाइसन के अनुसार “प्रौढ़ शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के लिए सब अवसरों पर सब परिस्थितियों में शिक्षा है।”

(Adult education is education for everybody at all times and in all conditions) – I.. Bryson, Adult Eduation,

मारगन होम्स व बण्डी के शब्दों में– “प्रौढ़ शिक्षा किसी नयी बात को सीखने के लिए प्रौढ़ व्यक्ति का जान-बूझकर किया जाने वाला प्रयास है।”

(“Adult Education may be thoght as the conscious afford of a mature person to learn something new”) – Morgan Holmes Bundy Method of Adult Education.

प्रो. एस. एन. मुकर्जी के अनुसार– “प्रौढ़ शिक्षा व्यापक रूप से ऐसी शिक्षा कही जा सकती है, जिसमें यह सब प्रकार के अनुदेशन चाहे वे औपचारिक हो या अनौपचारिक आ जाते हैं, जो प्रौढ़ों को दिये जाते हैं।”

“Adult Education may be defined very boradly so as to include all instructions formal or informal imparted to adults.” – Prof. S.N. Mukerjee

इन परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रौढ़ शिक्षा किसी व्यक्ति को औपचारिक एवं अनौपचारिक रूप में दिये गये निर्देशन या अनुदेशन जो प्रौढ़ शिक्षा व्यक्तियों के जीवन में उपयोगी एवं मूल्यवान हो तथा नवीन ज्ञान को प्राप्त करने में हमें यादो को सहायता प्रदान करे, उसे ही प्रौढ़ शिक्षा कहते हैं।

भारत में प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएँ एवं उनके समाधान

भारत के प्रशासकों राजनीतिज्ञों, शिक्षाशात्रियों एवं समाजसेवकों का यह विश्वास है कि जब तक समाज का समुचित आयोजन करके भारतवासियों की निरक्षरता का अन्त नहीं किया जायेगा, तब तक देश के औद्योगिक या किसी विकास के लिए बनायी गयी योजना सफल नहीं होगी। इसके साथ-साथ आर्थिक एवं सामाजिक पुनर्निर्माण का कार्य सम्भव नहीं हो सकता है।

1. समस्याः निरक्षरता (Illiteracy)-

भारत में निरक्षरता की समस्या जटिल औरगम्भीर है जटिल इसलिए क्योंकि ग्रामों में निवास करने वाले 80 प्रतिशत व्यक्तियों में से अधिकांश निरक्षर होते हुए भी अशिक्षित नहीं है। इसकी पुष्टि में एन. ए. दूधी ने कहा है कि “यद्यपि भारतीय ग्रामवासी निरक्षर हैं, पर इसलिए यह अशिक्षित नहीं है। वह एक अर्थ में शिक्षित है, उनकी स्मृति विलक्षण है, जिसमें उन्होंने अपने देश के प्राचीन समय के विशाल ज्ञान का संचय कर रखा है।” यह समस्या गम्भीर इसलिए है कि क्योंकि विश्व के निरक्षर वयस्कों में आधे से अधिक हमारे देश में हैं।

2. समस्या : पाठ्यक्रम (Curriculum)

समाज की दूसरी सहभागी समस्या पाठयक्रम की है। आज प्रौढ़ों के पाठयक्रमों का निर्धारण इस बात को ध्यान देने की अपेक्षा उनके पाठ्क्रम में उनकी स्वयं की रुचि अभिवृत्ति एवं वयस्कों की आवश्यकताएँ जीवन सम्बन्धी धारणाएँ प्रौढ़ से भिन्न होती हैं।

कुछ वयस्क बिल्कुल निरक्षर हैं। इनके लिए पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम अक्षर ज्ञान के निर्धारण के साथ-साथ उन्हें अक्षर ज्ञान कराया जाना चाहिए।

3. समस्या : शिक्षण विधि (Method of Teaching) –

वयस्कों के लिए उपर्युक्त शिक्षण विधि का निर्धारण इतनी जटिल समस्या है कि अभी तक इनका समाधान नहीं किया जा सका है। यह समस्या जटिल इसलिए है, क्योंकि वयस्क आर्थिक एवं सामाजिक स्वतन्त्रता का उपयोग करते हैं, जिस पर वे किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं चाहते।

भारत में प्रौढ़ शिक्षा की समस्याओं का समाधान

1. कोठारी कमीशन (1964-66) ने निम्नांकित सुझाव स्पष्ट किये, जो निरक्षरता का उन्मूलन कर सकता है-

  • (i) 6 से 11 वर्ष के सब बच्चों के लिए 5 वर्ष की सार्वभौमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
  • (ii) 11 से 14 वर्ष के उन बच्चों के लिए अल्पकालीन शिक्षा की व्यवस्था की जाये, जिन्होंने किसी कारणवश बीच में विद्यालय जाना बन्द कर दिया है।

ई-लर्निंग की शैली के बारे में प्रकाश डालिए।

2. पाठ्यक्रम का निर्माण (Construction of Suitable Curriculum)

  • (i) निरक्षर, अर्द्ध-साक्षर एवं नव साक्षर वयस्कों की आवश्यकता का अध्ययन एवं इस तथ्य का निर्धारण करना कि कौन-सा पाठयक्रम किसके लिए प्रतिकूल है और किसके लिए इसको समझने की योग्यता है।
  • (ii) विभिन्न लिंगों एवं वयस्कों की रुवियों-रुझानों, प्रवृत्तियों एवं मानसिक योग्यता का अध्ययन।
  • (iii) वयस्कों के शिक्षण विधि में सर्वप्रथम यह नितान्त आवश्यक है कि उन्हें वर्णों का परिचय कराया जाये। उसके बाद वाक्य एवं शब्द में अन्तर बताया जाये।

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