प्रौढ़ शिक्षा की वर्तमान में क्या आवश्यकता है ? स्पष्ट कीजिए।

प्रौढ़ शिक्षा की वर्तमान में आवश्यकता

1. अशिक्षित वयस्कों के लिए-

देश में मौजूद अशिक्षित/निरक्षर वयस्कों में शिक्षा का प्रसार न होने से उनका विकास अवरुद्ध हो गया है। इस कारण इन वयस्कों का समाज के अन्य वर्गों द्वारा शोषण होता है या किया जा रहा है। यह भारतीय संविधान की भावना के विरुद्ध है, क्योंकि वह देश के सब नागरिकों को समानता एवं स्वतन्त्रता, समान अधिकार प्रदान करता है। अशिक्षित व्यसक इन अधिकारों का उपयोग करने से वंचित रह जाते हैं। इन अशिक्षित वयस्कों। के लिए समाज शिक्षा की आवश्यकता है, ताकि वे शिक्षित होकर समानता एवं स्वतन्त्रता के अधिकारों का उपयोग कर सकें।

2. अर्द्ध-शिक्षित वयस्कों के लिए

भारत अनेक बच्चों को आर्थिक, पारिवारिक या किसी अन्य कारण से प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम पूर्ण करने से पहले ही अपना अध्ययन स्थगित करने के लिए विवश होना पड़ता है। ये अर्द्ध-शिक्षित बच्चे वयस्क के रूप में भी अर्द्ध शिक्षित रहते हैं।

प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम पूर्ण करने वाले व्यक्तियों को ही साक्षर माना जाता है। अतः अर्द्ध-शिक्षित व्यक्तियों की शिक्षा को पूर्ण करने और उनको समझदार नागरिक बनाने के लिए समाज-शिक्षा की आवश्यकता है।

3. पूर्ण शिक्षा की आवश्यकता (Need of Complete Education)-

हमारी शिक्षा संस्थाओं में प्रदान की जाने वाली शिक्षा अपूर्ण होने के कारण दोषपूर्ण है। इसका कारण यह है कि वह व्यक्तियों के वास्तविक जीवन आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं से असम्बद्ध है। अतः जब व्यक्ति जीवन में प्रवेश करता है, तब वह अपनी शिक्षा को अपूर्ण पाता है। इस अपूर्ण शिक्षा के दोषों को दूर करने और उसे पूर्ण बनाने के लिए समाज-शिक्षा की आवश्यकता है।

4. आर्थिक आवश्यकता (Economic Need)-

भारत के असंख्य निवासियों और उनके पूर्वजों के लिए आर्थिक सम्पन्नता सपनीली बात है और रही है। ये वर्षों से नहीं अपितु शताब्दियों से आर्थिक विवशताओं के शिकार है। उनको इन विवशताओं से मुक्त करने के लिए नगरों में व्यावसायिक एवं प्राविधिक शिक्षा की और ग्रामों में कृषि एवं कुटीर उद्योगों-धन्धों की शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। समाज शिक्षा के संगठनकर्ताओं द्वारा इस व्यवस्था के लिए ही, उसकी आवश्यकता को स्वीकार किया जाता है।

निरौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ बताइए।

5. सामाजिक आवश्यकता

समाज की प्रगति का मूलाधार, उसके सदस्यों का पारिवारिक सहयोग है। सहयोग ही समाज को बल देता है, उसकी रक्षा करता है और उसके अस्तित्व को बनाये रखता है। आज के भारतीय समाज में सहयोग की अनुपस्थिति से सीधा साक्षात्कार होता है। उनके स्थान पर देखने को मिलते हैं- पारस्परिक द्वेष, संघर्ष एवं वैमनस्य, जिन्होंने देश के निवासियों के जीवन को विखलित कर दिया है।

समाज-शिक्षा देश के नागरिकों को पारस्परिक सहयोग से समुदायों एवं संस्थाओं का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए, समाज-शिक्षा की आवश्यकता का एक स्वर से अनुमोदन किया जाता है।

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