प्रौढ़ शिक्षा की अवधारणा-प्रौढ़ शिक्षा, वर्तमान समय की, भारत की ही नहीं पूरे विश्व की एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है। देश और विदेश का अब प्रत्येक नागरिक, आधुनिक जीवन पद्धति से जीने को बाध्य है। वैज्ञानिक आविष्कारों एवं तकनीकी विकास के कारण, व्यक्तियों के जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में, तीव्रता से परिवर्तन हो रहे हैं। इसका सहज प्रभाव शिक्षा पर भी पड़ा है। शिक्षा के साविधिक साधन, औपचारिक शिक्षा, बढ़े संसाधनों के साथ प्रदान तो कर रहे है, किन्तु ये लोगों की सम्पूर्ण शिक्षा की आवश्यकता की परिपूर्ति नहीं कर पा रहे है। अतएवं अनौपचारिक शिक्षा साधनों की महत्ता बढ़ गयी है। फलस्वरूप, प्रौढ़ शिक्षा का कार्य क्षेत्र भी व्यापक होता जा रहा है,
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प्रौढ़ शिक्षा के निहितार्थों को स्पष्ट करने के लिए भिन्न-भिन्न नामों का प्रयोग किया जाता रहा है। इसके नाम पर, विभिन्न देशों में, अनेक कार्यक्रम चलाये जाते रहे हैं। समय और व्यक्ति की आवश्यकता के अनुक्रम में, घटित होते परिवर्तनों के कारण इसकी संकल्पना में भी परिवर्तन होता रहा है। भारत में जहाँ निरक्षरता आज भी गम्भीर समस्या बनी है, इसका अर्थ प्रधानतः ‘साक्षरता’ से लिया गया है। क्रमशः यहाँ भी प्रौढ़ शिक्षा-अर्थ-परिधि में जागरूकता, व्यावहारिकता एवं साक्षरता इस ‘तत्व-त्रयी’ का समावेश किया गया है। इस प्रकार, समय-समय पर ‘प्रौढ़ शिक्षा’ की संकल्पना में बदलाव आता रहा।
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