प्रौढ़ शिक्षा के निहितार्थो को स्पष्ट करने के लिए समय-समय पर इसको कौन-कौन से नाम दिये गये?

प्रौढ़ शिक्षा के विभिन्न नाम

प्रौढ़ शिक्षा के निहितार्थो जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है, यह यह शिक्षा है जो व्यसकों को दी जाती है। इसके बारे में यह धारणा प्रचलित है कि यह निरक्षर लोगों को साक्षर बनाती है। पढ़ना, लिखना तथा गिनने का ज्ञान कराना इसका मुख्य कार्य है। समयानुसार इसकी इस धारणा में भी परिवर्तन होने लगा। इसको अब व्यापक रूप में देखा जाने लगा है और इसको निम्नांकित नामों से भी जाना जाता है।

1. समाज शिक्षा (Social Education)-

भारत के भूतपूर्व शिक्षामन्त्री स्व. अबुल कलाम आजाद ने ‘प्रौढ़ शिक्षा’ के स्थान पर ‘समाज-शिक्षा’ नाम का प्रयोग किया। अपनी पुस्तक ‘सोशल एजुकेशन’ में समाज-शिक्षा को परिभाषित करते हुए उन्होंने इसे मात्र साक्षरता तक सीमित नहीं माना, अपितु इसके अन्तर्गत साक्षरता के साथ-साथ प्रौढ़ों के विकास के लिए नागरिक शिक्षा, आर्थिक सुधार, स्वास्थ्य, भावनात्मक एकता एवं सौन्दर्य-बोध की शिक्षा को भी सम्मिलित किया। वस्तुतः यह प्रौढ़ शिक्षा ही है, जिसके निम्नांकित निहितार्थ संकल्पित किये गये हैं

  • समाज में वांछित परिवर्तन लाना।
  • व्यक्ति की श्रेष्ठानिमित्त उसके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं नैतिक जीवन का उन्नयन करना।
  • व्यक्तियों को श्रेष्ठतर कार्यकारिता, विश्राम, अवकाश-समय-उपयोग एवं मनोरंजन के लिए तैयार करना तथा
  • समुदाय को अपने निजी विकास के योग्य बनाना।

2. जन शिक्षा (People Education)-

जनसंख्या की दृष्टि से शीर्षस्थ देश चीन ने प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है। निरक्षरता को समाप्त करने के उद्देश्य से जो शिक्षा-आन्दोलन यहाँ चलाया गया, उसे ‘जन-शिक्षा’ के नाम से पुकारा गया। इसे प्रारम्भ करने का श्रेय डॉ. बेन को है, जिन्होंने जन सहयोग, सेवा और प्रेरणा के बल पर इस दिशा में सराहनीय प्रयत्न किया।

3.आजीवन शिक्षा (Life-Long Education)-

“आजीवन शिक्षा मनुष्य के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के लिए सतत चलने वाली (एक) सजृनात्मक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य हर प्रकार के अधिगम अनुभवों को समन्वित करना है।” आजीवन शिक्षा, वस्तुतः सीखने की एक रचनाधर्मी जीवन पर्यन्त प्रक्रिया है। जिसका लक्ष्य मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना है, उसके जीवनभर सीखते रहने की आन्तरिक जिज्ञासा को जाग्रत किये रखना है। इस प्रकार स्पष्ट है-आजीवन अधिगम एक सतत गतिशील प्रक्रिया है।

4. सामुदायिक शिक्षा (Community Education)-

अमेरिका के दक्षिणी देशों में “प्रौढ़ शिक्षा को सामुदायिक शिक्षा’ के नाम से जाना गया, जिसका संचालन सामुदायिक विद्यालयों द्वारा किया जाता है। इस शिक्षा का लक्ष्याद्देश्य पूरे समुदाय को साक्षर शिक्षित बनाते हुए, उनकी विशेषकर ग्रामीण परिवेश में रहने वाले व्यक्तियों की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दशाओं में सुधार लाना है, उन्हें स्वकीय विकास के लिए अभिप्रेरित करना है, बल्कि और स्पष्ट शब्दों में जनता द्वारा स्वयं ही अपने प्रत्यनों से ग्रामीण जीवन में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने का प्रयास ही सामुदायिक विकास है।

सामुदायिक शिक्षा सन्दर्भ में

विद्यालय एवं समुदाय की शिक्षा एवं विकास से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान शिक्षार्थी, शिक्षक एवं अभिभावक तीनों परस्पर मिलकर करते हैं। स्वाभाविक है इसका व्यापक प्रभाव सीखने वाले पर पड़ेगा।

5. जनता शिक्षण कार्यक्रम (Public Instruction Programme)-

सोवियत रूप में सन् 1919 में प्रसिद्ध विचारक लेनिन ने निरक्षरता उन्मूलन हेतु ‘जनता शिक्षण कार्यक्रम’ की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य रहा प्रत्येक शिक्षित नागरिक अनिवार्य रूप से अशिक्षित व्यक्तियों को शिक्षित बनायें। इसके प्रभावस्वरूप वहाँ के नागरिक शीघ्र ही साक्षर हो गये।

6. श्रमिक शिक्षा (Labour Education)-

भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर, नगर एवं औद्योगिक बस्तियों में रहने वाले श्रमिकों और उनके परिवार जनों के लिए भी सन् 1967 में प्रौढ़ शिक्षा की एक योजना बनायी, जिसे ‘श्रमिक शिक्षा’ के नाम से जाना गया। इस योजना की परिपूर्ति स्वरूप बम्बई और अहमदाबाद में ‘श्रमिक-विद्यापीठों’ की स्थापना की गयी। इनके माध्यम से श्रमिकों में साक्षरता, विकास तथा उनकी सामान्य समय की वृद्धि के लिए योजना निर्मित की गयी।

7. प्रसार-शिक्षा (Extension Education)-

“प्रसार-शिक्षा एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा ग्रामीण लोगों को, उनकी समस्याओं से अवगत कराकर, उन समस्याओं का सही समाधान करने की पद्धति एवं मार्ग बताया जाता है। इसके द्वारा ग्रामीण लोगों की केवल समस्याओं एवं विधियों का समाधान करना ही नहीं, अपितु लोगों में प्रगतिशील दिशा में कार्य करने की चेष्टा (प्रवृत्ति) उत्पन्न करना है।”

इसके आशय को और अधिक स्पष्ट करते हुए एल.डी. केलसे एवं सी.सी. हॉर्न ने कहा-प्रसार शिक्षा, स्कूल के बाहर की एक शिक्षा-पद्धति है, जिसमें बूढ़े, युवक एवं प्रौढ़ सभ (बेहतर) कार्य करने के द्वारा सीखते हैं। सह सरकार, लैण्ड ग्राण्ट कालेज तथा जनता के बीच सहयोगात्मक सम्बन्ध स्थापित करती है, जिसका उद्देश्य जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति निमित्त सेवाओं और शिक्षा की अभिप्रेरणा प्रदान करना है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य का विकास करना है।

इस प्रकार, स्पष्ट है कि यह शिक्षा विद्यालय को समुदाय के प्रति शिक्षण के लिए प्रेरित करती है, इसमें प्रौढ़ों को उनकी अभिरूचि एवं अभिवृत्ति के अनुसार ज्ञान एवं कौशल की शिक्षा | प्रदान की जाती है। विद्यालय, केवल शिक्षण कार्य तक सीमित न रहे, अपितु, प्रसार शिक्षा के द्वारा वे अपने शैक्षिक अनुभवों को निरक्षरों के द्वार तर पहुँचाये, यह इसका मूल उद्देश्य है।

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8. सतत शिक्षा (Continuing Education)

सतत शिक्षा कार्य क्षेत्र में, प्रौढ़ शिक्षा आधार के रूप में कार्य करती है। सतत शिक्षा, हर प्रकार से व्यक्ति के लिए ऐसे अवसर प्रदान करती है, जिससे कि वह अपने व्यवसाय, उत्तरदायित्व और विभिन्न सीमा क्षेत्रों में रहते हुए अपनी अभिरूचि एवं क्षमतानुसार शिक्षा का क्रम जारी रख सके। व्यक्ति की तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह शिक्षा ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में हुए नवीन कौशलों एवं तकनीकी साधनों को प्रस्तुत करती है।

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