‘प्रतिनिधि सरकार’ पर मिला के विचारों का वर्णन कीजिए।

प्रतिनिधि सरकारमिल के अनुसार, सच्चा प्रजातंत्र वह है जिसमें सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्य में भाग लें। सर्वोत्तम आदर्श शासन वह है जिसमें सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्य में भाग लें। सर्वोत्तम शासन वह है जिसमें सर्वोच्च नियंत्रण शक्ति या सम्प्रभुता पूरे समाज की योग्यतामुक्त इकाई में निहित हो और प्रत्येक व्यक्ति इस सम्प्रभुता के निर्माण में केवल योग ही न दे वरन् समय आने पर सार्वजनिक पद ग्रहण करे तथा शासन में भाग लेकर अपना कर्तव्य पूरा करे। पर चूंकि यह प्रयोग सम्भव नहीं है और आज के विशाल जनसंख्या वाले राज्यों में प्रत्यक्ष प्रजातंत्र नहीं चल सकता, अतः मिल की दृष्टि में सर्वोत्तम शासन अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र अथवा प्रतिनिधि शासन (Representative Government) ही होना चाहिए।

प्रतिनिधि-शासन का सिद्धान्त

मिल के अनुसार प्रतिनिध्यात्मक सरकार वह है जो निम्नलिखित तीन शर्तों को पूरा करे-

  1. वे लोग जिनके लिए ऐसी सरकार का निर्माण किया जाय। ऐसी सरकार को स्वीकार करने के इच्छुक हों या इतने अनिच्छुक न हों कि इसकी स्थापना में बाधा पैदा करें।
  2. ऐसी सरकार के स्थायित्व के लिए जो कुछ भी करना आवश्यक हो वह सब करने के इच्छुक और योग्य हो।
  3. ऐसी सरकार के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ऐसे लोगों से जो कुछ सरकार चाहे वह करने के लिए वे तत्पर और योग्य हो। शासन की जो आवश्यक शर्तें हों वे उन्हें भी पूरा करने के लिए तैयार हो।

प्रतिनिध्यात्मक सरकार में उपयुक्त तीन के अतिरिक्त कुछ और भी प्रमुख तत्त्व हैं-

  1. सम्पूर्ण या उनकी संख्या के बहुत बड़े भाग के लोगों का सरकार के कार्यों में सहयोग,
  2. सम्पूर्ण या उनकी संख्या के बहुत बड़े भाग के लोगों के हाथ में नियंत्रण शक्ति,
  3. समय-समय पर चुने गये प्रतिनिधियों द्वारा लोगों का प्रतिनिधित्व,
  4. अन्तिम नियंत्रण शक्ति का संविधान में स्थान और यदि संविधान लिखित न हो तो व्यावहारिक रूप से जनता द्वारा उसका प्रयोग,
  5. राज्य की सक्रिय राजनीति में नैतिक या स्वस्थ परम्पराएँ
  6. वे सभी तत्त्व जो एक अच्छी सरकार के लिए आवश्यक होते हैं जिनका वर्णन ऊपर किया जा चुका है,
  7. सरकार के अंगों में कार्यों का निश्चित बटवारा,
  8. एक संगठित विरोधी दल,
  9. आनुपातिक
  10. सार्वजनिक मताधिकार
  11. निष्पक्ष न्यायपालिका एवं
  12. अल्पसंख्यकों की रक्षा।

सही रूप में प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार को स्थिर रखने के लिए मिल ने उसके पीछे समाज के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया है। यदि जनता लापरवाह है और अपनी भूमिका के प्रति उदासीन है तो सर्वोत्तम प्रशासकीय तंत्र भी सम्भवतः उपयोगी नहीं होगा। इसलिए जन मत को हमेशा सतर्क रहना चाहिए तथा सरकार पर अपना नियंत्रण कायम रखना चाहिए। सेबाइन के अनुसार व्यक्ति और सरकार के बीच एक उदारवादी समाज के निर्माण की सूझ वास्तव में मिल की अपनी खोज थी मिल ने ऐसी प्रतिनिधि सरकार के निर्माण में विश्वास प्रकट किया जिसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता रह सके। उसकी मान्यता थी केवल संसद में सही प्रतिनिधित्व से ही काम नहीं चलता, उसमें बहुमत की निरंकुशता का भय विद्यमान रहता है।

इसलिए अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए वह पूर्ण सावधानी बरतना चाहता है और सरकार पर एक उदारवादी समाज का नियंत्रण आवश्यक समझा जाता है। वह प्रतिनिधित्व के बारे में भी निश्चित हो जाना चाहता है और सही रूप में समाज के प्रत्येक अंग व व्यवसाय के प्रतिनिधित्व का समर्थन करता है। वह अल्पमत के सुझावों को केवल इसलिए अस्वीकार करने के पक्ष में है कि उनके सुझाव यथार्थ में जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते। मिल संसद में संगठित विरोध के पक्ष में है। क्योंकि ऐसा न होने पर सरकार सही रूप में प्रतिनिधित्व न होकर केवल निरंकुश बहुमत पर आश्रित हो जायेगी। प्रशासकीय अंग अथवा कार्यपालिका की निरंकुशता पर अंकुश रखने के लिए वह एक सजग एवं सतर्क व्यवस्थापिका चाहता है जो कार्यपालिका के कार्यों की खुलकर आलोचना करे और जरूरत पड़ने पर अविश्वास मत पास कर उसे भंग करने में भी सक्षम हो।

मिल की मान्यता है कि चरित्रवान व्यक्ति ही राज्य की जीवन-शक्ति होते हैं और जिस शासन व्यवस्था में व्यक्तियों के विकास के समुचित अवसर उपलब्ध नहीं हैं वह शासन व्यवस्था उपयुक्त नहीं कही जा सकती चाहे प्रशासनिक दृष्टि से वह कितनी ही सक्षम और कुशल क्यों न हो । निरंकुश राजतंत्र शक्ति सम्पन्न और क्षमतापूर्ण होने पर भी इसलिए आदर्श नहीं माना जा सकता है कि उसमें व्यक्तियों के चारित्रिक विकास की अपेक्षा की जाती है। प्रतिनिधि शासन वाला लोकतंत्र श्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि अन्य किसी भी शासन व्यवस्था की अपेक्षा उसमें व्यक्ति के वैदिक और नैतिक विकास पर अधिक सम्भावना होती है।

प्रतिनिध्यात्मक सरकार के कार्य मिल के अनुसार निर्वाचित परिषद का कार्य शासन का नियंत्रण और निरीक्षण करना मात्र है। इस परिषद को सक्रिय रूप से कानून निर्माण अथवा शासन कार्य नहीं करने चाहिए। मिल ने प्रतिनिध्यात्मक सरकार के जिन मुख्य कर्त्तव्यों का उल्लेख किया है वे इस प्रकार हैं-

1.प्रतिनिधि शासन व्यक्तियों के विकास के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करे जिसमें व्यक्ति सत्य की खोज करके तदनुकूल अपने विचारों का निर्माण कर सके।

2. शासन ऐसे कानूनों का निर्माण करे जिसमें व्यक्तियों के चारिचिक विकास के योग्य वातावरण बन सके।

3. इस सम्बन्ध में राज्य द्वारा कानूनों का निर्माण कम से कम किया जाय क्योंकि कानून व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाते हैं।

उच्च न्यायालय की निरीक्षण और नियन्त्रण की शक्ति।

4. प्रतिनिधि सभा को इन महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन करना चाहिए। सरकार पर दृष्टि रखकर उस पर पूर्ण नियंत्रण रखना, सरकार के कार्यों पर प्रकाश डालना, उसके आपत्तिजनक कार्यों की समीक्षा करना एवं उनका औचित्य सिद्ध करना, विश्वासघाती शासकों को पदमुक्त कर उसके उत्तराधिकारियों को नियुक्त करना, सरकार के हेय कार्यों की निन्दा करना आदि संसद में जनता की या इसके किसी वर्ग की शिकायतों पर विचार-विमर्श एवं वाद-विवाद भी होना उपयोगी है।

5. मिल ने बेंथम की इस धारणा का खण्डन किया कि निर्वाचित संसद का प्रशासन पर प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण होना चाहिए। वह एक ओर कुशलता और क्षमता चाहता है और दूसरी ओर जन आलोचना का आकांक्षी। इसलिए प्रधानमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति का अधिकार संसद को देकर और स्थाई कर्मचारियों को मंत्रियों के अधीन रखकर वह लोकतंत्र एवं शासन- कुशलता का सम्मिश्रण करना चाहता है।

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