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प्रतिहार वंश पर संक्षिप्त टिप्पणी

गुर्जर प्रतिहार वंश राजपूतों का एक प्रसिद्ध वंश था। यह वंश गुर्जरी शाखा से सम्बन्धित होने के कारण इतिहास में गुर्जर-प्रतिहार कहा गया। इस वंश का प्रथम उल्लेख पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में मिलता है। मिहिरभोज का वालियर अभिलेख भी इस वंश के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। इस वंश की स्थापना हरिश्चन्द्र ने 6वीं शताब्दी में की थी परन्तु इस वंश का वास्तविक संस्थापक नाजमतत् प्रथम (730-756 ई.) था।

प्रतिहार वंश का इतिहास-

प्रतिहार वंश की दो शाखाएँ थी- प्रथम हरिश्चन्द्र (लगभग 500 ई.) का “”वंश तथा दूसरी नागभट्ट प्रथम (730 ई.) का वंश। यह वंश उज्जैन एवं कान्यकुब्ज के गुर्जर-प्रतिहारों का वंश भी कहा जाता है। प्रथम शाखा में हरिश्चन्द्र के अतिरिक्त नरमट, नागभट्ट, भोज, यशोवर्मन, सीलुक व काम आदि शासक हुए। जबकि द्वितीय शाखा (नागभट्ट वंश) में नागभट्ट प्रथम, करकुल, वत्सराज, नागभट्ट द्वितीय, रामभद्र, मिहिरभोज, महेन्द्रपाल प्रथम, भोज द्वितीय आदि शासक हुए। इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा मिहिरभोज या। सन् 1090 ई. में गहड़वाल वंश के चन्द्रदेव वंश ने अन्तिम शासक यशपाल की हत्या कर इस वंश का अन्त कर दिया।

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