प्रधानमंत्री की शक्ति एवं स्थिति की विवेचना कीजिए।

प्रधानमंत्री की शक्ति – भारतीय लोकतन्त्रात्मक के अन्तर्गत प्रधानमंत्री पद का विशेष महत्व है। प्रधानमंत्री को वास्तविक शासक, लोकतंत्र की धुरी, नक्षत्रों में चन्द्रमा, देश का हृदय स्थल, राजनीतिक भवन का मुख्य प्रस्तर व गुरुत्वाकर्षण का केन्द्र कहा जाता है। प्रधानमंत्री वास्तविक मुख्य कार्यपालिका है।

ब्रिटिश संविधान में प्रधानमंत्री का पद परम्परा पर आधारित है, लेकिन भारत में प्रधानमंत्री पद को संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। भारतीय संविधान में प्रधानमंत्री पद का बहुत संक्षेप में ही संविधान के अनुच्छेद 74, 75 व 78 में उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 74 में कहा गया है कि, “राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता और परामर्श देने के लिए एक मन्त्रि-परिषद्, होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।” अनुच्छेद 75 में कहा गया है, कि,” प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होगी और यह प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की करेगा।” अन्त में अनुच्छेद 78 में राष्ट्रपति के साथ व्यवहार के विषय में प्रधानमंत्री के तीन कर्तव्य बतलाये गये हैं।

प्रधानमंत्री का चयन व नियुक्ति

प्रधानमंत्री का चयन उस दल द्वारा किया जाता है जिसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त हो और फिर उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इस प्रकार दल द्वारा चयन पहले होता है और फिर उसकी नियुक्ति बाद में। 1946 में प्रधानमंत्री पद के लिए दो दावेदार हो सकते थे- पं. नेहरू और सरदार पटेल। इनमें महात्मा गांधी द्वारा पं. नेहरू को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया। इस प्रकार पं. नेहरू ने प्रधानमंत्री पद महात्मा गांधी के आशीर्वाद से प्राप्त किया। लेकिन वे अपने ही अधिकार से इस पर बने रहे। 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के बाद कांग्रेस दल में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो पं. नेहरू की सत्ता को चुनौती दे सकता। अतः प्रथम, द्वितीय और तृतीय आम चुनाव के बाद दल के द्वारा पं. नेहरू को दल के नेता के रूप में चयन और राष्ट्रपति द्वारा उनकी प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति मात्र एक औपचारिकता ही थी। 1950 से लेकर आज तक प्रधानमंत्री के चयन और नियुक्ति के प्रसंग में चार प्रकार की स्थितियाँ रहीं हैं। ये निम्न प्रकार हैं-

1.स्वयं जनता द्वारा प्रधानमंत्री का चयन

जब किसी एक नेता के नाम पर कोई राजनीतिक दल या दलीय गठबंधन लोकसभा में बहुमत प्राप्त करता है, चुनाव जीतता है, तब यह समझा जाता है कि स्वयं जनता ने प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर प्रधानमंत्री का चयन किया। 1952, 57 और 62 में स्वयं जनता ने प्रधानमंत्री पद के लिए पं. नेहरू का चयन किया था, 1971 तथा 1980 में श्रीमती गांधी और दिसम्बर 84 में राजीव गांधी का इस पद के लिए चयन भी स्वयं जनता ने किया था। 1999 में प्रधानमंत्री के चयन में भी जनता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2. आम सहमति के आधार पर प्रधानमंत्री का चयन

1964 में शास्त्री जी, 1967 में श्रीमती गांधी, 1977 में मोरारजी देसाई, दिसम्बर 89 में वी. पी. सिंह, जून ’91 में पी. वी. नरसिम्हा राव, मई 96 और अप्रैल 197 में क्रमश: देवगौड़ा और गुजराल ने आम सहमति के आधार पर प्रधानमंत्री पद प्राप्त किया था।

3. लोकसभा के बहुमत दल या बहुमत वाले गठबंधन में नेता पद के लिए चुनाव संघर्ष और प्रधानमंत्री का चयन

1966 में शास्त्री जी के निधन के बाद कांग्रेस संसदीय दल ने श्रीमती गांधी और मोरारजी देसाई दो उम्मीदवारों में से श्रीमती गांधी को नेता चुना था।3

4. लोकसभा में दलीय स्थिति स्पष्ट न होने या आकस्मिक रूप से प्रधानमंत्री का पद रिक्त हो जाने पर राष्ट्रपति द्वारा स्वविवेक के आधार पर प्रधानमंत्री का चयन

1979 में चरण सिंह और 90 में चन्द्रशेखर का प्रधानमंत्री पद पर चयन राष्ट्रपति द्वारा स्वविवेक के आधार पर ही किया गया। 1984 में श्रीमती गांधी के देहावसान के बाद राजीव गांधी का प्रधानमंत्री पद के लिए चयन लगभग इसी श्रेणी में आता है। लोकसभा चुनाव के तुरन्त बाद अप्रैल 96 में बाजपेयी की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति भी इसी श्रेणी में आती है।

प्रधानमंत्री के कार्य (Functions of the Indian Prime Minister)

सामान्य रूप से भारत के प्रधानमंत्री को निम्नांकित शक्तियां प्राप्त हैं या उसके कार्य निम्नांकित हैं-

(1) संवैधानिक कार्य

प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि यह शासन सम्बन्धी निर्णयों की सूचना राष्ट्रपति को दे यदि राष्ट्रपति किसी विषय पर प्रधानमंत्री से सूचना एवं परामर्श प्राप्त करना चाहे तो प्रधानमंत्री को सूचना एवं परामर्श देना पड़ेगा।

(2) मन्त्रिपरिषद् का निर्माण

राष्ट्रपतिमन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री के परामर्श से करता है। वस्तुतः प्रधानमंत्री ही मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति तो केवल मुहर लगाता है मन्त्रियों में विभागों का विभाजन भी उसी के द्वारा होता है। प्रधानमंत्री की इच्छा पर्यन्त ही कोई भी व्यक्ति मंत्रि-परिषद् का सदस्य रह सकता है। वह मन्त्रि-परिषद् के किसी भी सदस्य से त्यागपत्र मांग सकता है। प्रधानमंत्री के त्याग पत्र देने पर मंत्रि-परिषद् का जीवन समाप्त हो जाता है।

(3) मन्त्रि-परिषद् का सभापतित्व

प्रधानमंत्री कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता है। उसके आदेशानुसार ही मन्त्रि-परिषद की समस्त कार्यवाही सम्पन्न की जाती है।

(4) मन्त्रियों को एकता के सूत्र में बाँधना

मन्त्रिपरिषद् के समस्त सदस्यों को एकता के सूत्र में बाँधना प्रधानमंत्री का कार्य है। यदि किसी विषय पर मन्त्रियों में आपस में मतभेद उत्पन्न हो जाये, तो उसको दूर करना उसी का कार्य है।

(5) शासन की नीति का निर्माण करना

शासन के समस्त विभागों की नीति के निर्माण में उसकी इच्छा ही सर्वोपरि होती है। कोई भी मन्त्री उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य नहीं कर सकता। सरकार की नीतियों का वह अधिकृत प्रवक्ता होता है।

(6) नियुक्तियों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को परामर्श

राज्यों के राज्यपालों, सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, एटार्नी जनरल, राजदूत आदि उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर ही राष्ट्रपति करता है। व्यवहार में ये नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री द्वारा ही की जाती है।

(7) लोकसभा का नेतृत्व करना

प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत दल का नेता होने के कारण लोकसभा का नेता होता है। महत्वपूर्ण नीतियाँ संसद में उसी के द्वारा घोषित की जाती हैं। यदि अन्य मंत्री अपने भाषण या नीतियों से संसद को संतुष्ट नहीं कर पाते, तो प्रधानमंत्री ही संसद की सन्तुष्टि करता है।

मैकियावली की कानून सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिये।

(8) दल के नेता के रूप में कार्य

संसद के बहुमत दल का नेता होने के साथ-साथ प्रधानमंत्री अपने दलीय संगठन का नेता भी होता है। यह अपने दल की नीतियों एवं कार्यक्रमों को संसद में तथा संसद के बाहर जनता के समक्ष प्रस्तुत करता है।

(9) अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व

प्रधानमंत्री राष्ट्र का नेता होता है। वह देश की विदेश नीति का प्रमुख प्रवक्ता होता है। वैदेशिक नीति के बारे में उसकी घोषणा अन्तिम होती है। वह अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है तथा दूसरे देशों के महत्वपूर्ण नेताओं का स्वागत करता है तथा उनके समक्ष देश का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

देश का सर्वोच्च नेता

प्रधानमंत्री देश का सर्वोच्च नेता और शासक होता है। सिद्धान्त रूप में न सही, लेकिन व्यवहार में देश का समस्त शासन उसी की इच्छानुसार संचालित होता है। वह व्यवस्थापिका से अपनी इच्छानुसार कानून बनवा सकता है और संविधान में आवश्यक संशोधन करवा कर सर्वोच्च न्यायालय को भी बहुत कुछ सीमा तक अपनी इच्छानुसार चलने के लिए बाध्य कर सकता है।

प्रधानमंत्री की स्थिति

प्रधानमंत्री के उपरोक्त कार्यों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत के प्रशासन में प्रधानमंत्री की वही स्थित है, जो इंग्लैण्ड के शासन में प्रधानमंत्री की है। यह कार्यकारिणी और व्यवस्थापिका का नेतृत्व करता है परन्तु साथ ही साथ यह भी सत्य है कि प्रधानमंत्री की स्थिति और शक्ति उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करती है। “प्रधानमंत्री के पद का वही महत्व है, जो इस पर आसीन व्यक्ति इसे प्रदान करना चाहता है।” संवैधानिक रूप से तो प्रधानमंत्री की स्थिति संसद, अपने दल के अन्दर तथा अन्तर्राष्ट्रीय

मंचों पर निर्विवाद होती है परन्तु प्रधानमंत्री के पद की गरिमा उस व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करती है जो इस पद को सँभाले हुए है। वास्तव में प्रो. लॉस्की का यह कथन सत्य है, “प्रधानमंत्री के पद का यही महत्व है जो इस पद पर आसीन व्यक्ति इसे प्रदान करना चाहता है।

    Leave a Comment

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Scroll to Top