प्रबुद्ध निरंकुश शासक के रूप में फ्रेडरिक महान का उल्लेख कीजिए।

प्रबुद्ध निरंकुश शासक के रूप में फ्रेडरिक महान – अठारहवीं शताब्दी के प्रबुद्ध निरंकुश शासकों में फ्रेडरिक महान सर्वोपरि था। यद्यपि उसने एक निरंकुश शासक के रूप में समस्त शक्तियों को अपने हाथों में केन्द्रित कर रखा था परन्तु उसने सम्पूर्ण राष्ट्र के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। उसके अनुसार “राष्ट्र में राजा का वही स्थान है जो शरीर में मस्तिष्क का होता है।” परन्तु इसके साथ ही साथ वह स्वयं को प्रजा का ‘प्रथम सेवक’ कहता था। उसका विचार था कि राजा को कर्तव्य परायण, चरित्रवान एवं परिश्रमी होना चाहिए तथा राजा को प्रजा के धन का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि जो राजा ऐसा करता है वह घोर पाप करता है। उसने बिना किसी भेदभाव के लोगों की योग्यता के अनुसार उन्हें पद प्रदान किए। उसने शान्तिकाल में अपना पूर्ण ध्यान स प्रजा के हितार्थ सुधारों की ओर दिया। उसने देश के आर्थिक विकास के लिए नहरों का निर्माण करवाया तथा कृषकों को कृषि सम्बन्धी अनेक सुविधाएँ प्रदान की। उसने फसल के क्षतिग्रस्त होने पर कृषकों को बीज देने की व्यवस्था की तथा उन्हें भूमिकर में छूट प्रदान की। उसने व्यापार एवं उद्योग-धन्धों की प्रगति के लिए अनेक विदेशियों को प्रशा आमंत्रित किया तथा उनके द्वारा प्रशा के लोगों को विभिन्ना व्यवसायों में प्रशिक्षित करवाया।

उसने न्याय व्यवस्था में भी अनेक सुधार किए। उसने सम्पूर्ण प्रशा के लिए प्रचलित ‘ कानूनों को संग्रहीत करवाया। उसने न्याय निष्पादन में होने वाले विलम्ब का अन्त करने तथा न्यायालय प्रक्रिया को सरल बनाने की व्यवस्था की। अपराध को स्वीकार कराने के लिए संदिग्ध व्यक्तियों को जो कठोर यातनाएँ दी जाती थीं उनका अंत कर दिया। उसने देश की सम्पूर्ण जनता के लिए एक निष्पक्ष एवं शीघ्र न्याय-व्यवस्था प्रदान की। उसने पक्षपाती एवं कर्तव्य विमुख न्यायाधीशों को दण्ड देने की भी व्यवस्था की। इस प्रकार प्रशा में प्रधानता स्थापित कर उसे एक ‘न्यायिक राज्य’ बनाने का प्रयत्न किया। कानून की

फ्रेडरिक महान स्वयं शिक्षित होने के कारण अपनी प्रजा को भी शिक्षित बनाना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने देश में अनेक प्रारम्भिक स्कूल स्थापित किए। उसने साहित्यकारों एवं कलाकारों को प्रश्रय प्रदान किया। उसने बर्लिन में विज्ञान अकादमी की भी स्थापना की। उसने प्रजा के बौद्धिक विकास के लिए उन्हें लेखन, भाषण एवं प्रकाशन की कुछ स्वतन्त्रता भी प्रदान की। उसके अनुसार युवक शिक्षा प्रशासन के अनेक महत्वपूर्ण कार्यों में एक है।

उसने धर्म के क्षेत्र में सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। उसने देश में सभी धर्मों के लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। यद्यपि वह प्रोटेस्टेन्ट था परन्तु उसने जेसुइटों को ‘भी धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। उसका कथन था कि “यदि तुर्क भी मेरे देश में बसने के लिए आएँ तो मैं उनके लिए मस्जिदों का निर्माण करवा दूंगा। प्रत्येक व्यक्ति को अपने ढंग से स्वर्ग जाने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।” परन्तु वह यहूदियों के प्रति उदार नहीं हो सका।

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लाई ऐक्टन प्रबुद्ध निरंकुश के रूप में उसके कार्यों की समीक्षा करते हुए लिखते हैं कि “प्रबुद्ध निरंकुशता के युग में फ्रेडरिक महान प्रबुद्ध निरंकुशों में सर्वश्रेष्ठ था यह सभी शासकों एवं सुधारकों में सबसे अधिक परिश्रमी एवं अध्यवसायी था। उसके अनुसार राजा राज्य का प्रथम सेवक था। उसके शासनकाल में धर्म के स्थान पर दर्शन का प्रभाव बढ़ा। उसने राष्ट्र को चर्च से मुक्ति दिलाई जो पूर्णतः फ्रेडरिक की प्रवृत्ति के अनुकूल थी। वह सहिष्णु एवं उदार था।” इतिहासकार एरगान्ग का कथन है कि उसका शासन “जनता के लिए तथा जनता द्वारा न था।” वरन् “सब जनता के लिए था तथा जनता द्वारा कुछ नहीं था।”

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