आस्ट्रिया के जोजेफ द्वितीय (1780-1790 ई.) – यूरोप के प्रबुद्ध निरंकुश शासकों में आस्ट्रिया के जोजेफ द्वितीय का दूसरा प्रमुख स्थान है। उसने 1765 ई. में अपनी माता मारिया थेरेसा के साथ संयुक्त रूप से शासन किया परन्तु 1780 ई. में मारिया थेरेसा की मृत्योपरान्त वह सर्वसत्ताधारी शासक बन गया। राजा जोजेफ द्वितीय प्रबुद्ध निरंकुशवाद का प्रबल समर्थक तथा पोषक था। उसका कथन था कि “मैने दार्शनिकता को अपने साम्राज्य का नियामक बनाया है तथा तर्कपूर्ण सिद्धान्त आस्ट्रिया का नव निर्माण करेंगे।”
राजा जोजेफ द्वितीय ने स्थानीय संस्थाओं एवं सामन्तों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर प्रशासन का केन्द्रीयकरण करने का प्रयास किया। वह सामन्तों के विशेषाधिकारों को समाप्त कर सभी वर्गों में समानता स्थापित करने का भी इच्छुक था। यद्यपि इसमें उसे सफलता न प्राप्त हो सकी परन्तु उसने सभी अर्थ दासों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की। उसने सामन्तों तथा कृषकों पर समान कर लगाए। उसने सभी लोगों के लिए निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की। उसने प्रजा के आर्थिक विकास की दृष्टि से उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहित किया।
धार्मिक क्षेत्र में वह चर्च की रूढ़िवादिता एवं पोष के हस्तक्षेप को समाप्त करना चाहता था। वह चर्च को राज्य का एक विभाग बनाना चाहता था। पोप ने जब उसे अपने विचारों में परिवर्तन लाने को कहा तो राजा जोजेफ ने उसे उत्तर देते हुए कहा था कि “आप चर्च के अधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं तथा मैं राज्य के अधिकारों की रक्षा का समर्थक एवं पोषक हूँ।” जोजेफ द्वितीय ने धार्मिक क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन किए। विशेषों की नियुक्ति राज्य द्वारा होने लगी, चर्च की सम्पत्ति राज्याधीन कर ली गई, पूजा-पाठ की विधियों में परिवर्तन किया गया तथा अनेक मठ बन्द कर दिए गए। राज्य द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा दी जाने लगी। उसने सभी धर्मावलम्बियों को समान रूप से धार्मिक एवं राजनीतिक अधिकार प्रदान किए परन्तु इन धार्मिक सुधारों से कैथोलिक जनता उससे असंतुष्ट हो गई तथा साम्राज्य दुर्बल होने लगा।
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इस प्रकार राजा जोजेफ द्वितीय एक प्रबुद्ध निरंकुश शासक के रूप में आस्टिया में समान विधि संहिता, समाज में सभी वर्गों की समानता तथा धार्मिक सहिष्णुता स्थापित करना चाहता था परन्तु अपने उद्देश्यों में वह असफल रहा। उसकी असफलता का प्रमुख कारण सुधारों की व्यवहारिकता के सम्बन्ध में उसका अटल विश्वास तथा परम्पराओं एवं परिस्थितियों की उपेक्षा कर सुधारों को कार्यान्वित करना था। यही कारण था कि अपने उद्देश्यों के प्रति निष्ठावान होते हुए भी उसे असफलता प्राप्त हुई जिसकी पुष्टि उसकी समाधि पर लिखित इस वाक्य से हो जाती है कि “यह एक ऐसे मनुष्य की समाधि है जो अपने सुन्दरतम उद्देश्यों के होते हुए भी सभी क्षेत्रों में असफल रहा।”